Friday, 28 May 2021

काव्य में बिंब बिधान//UGC//NET JRF//HINDI

 

 

जिस प्रकार पारंपरिक कविता में छंद और अलंकार को काव्य का तत्त्व एवं गुण माना जाता था, उसी प्रकार आधुनिक कविता में प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए बिंब एवं प्रतीक आदि का प्रयोग किया जाता है । बिंब को अंग्रेजी में इमेज कहा जाता है । अर्थात् मूर्त कल्पना बिंब है ।

साहित्य में बिंब वह भाषिक और शैल्पिक उपकरण है जिसके द्वारा कोई रचनाकार अभिगृहीत प्रभावों का चित्रोपम संप्रेषण करता है अथवा अमूर्त का मूर्तिकरण करता है । इसी प्रकार अभ्यंतर के अमूर्त को बाह्यीकृत मूर्त में ढालने का दूसरा महत्त्वपूर्ण भाषिक उपकरण प्रतीक है प्रतीक को अंग्रेजी में सिंबल कहा जाता है जैसे 'कुर्सी' शब्द का प्रतीक है , एक विशेष वस्तु का

काव्य में प्रतीक अनेकार्थ सूचक होते हैं । जैसे- मुक्तिबोध के काव्य में ' बरगद ' मार्क्सवाद का और अज्ञेय के काव्य में ' बावरा अहेरी ' सूर्य का प्रतीक है । पाश्चात्य जगत के मनीषियों ने ' बिंब ' को काव्य के प्रधान तत्त्व को रूप में स्थान दिया है । पाश्चात्य विद्वानों का विश्वास है कि प्रत्येक मनुष्य के मन में कुछ इंद्रिय द्वारा अनुभव करने पर हमारे हृदय पर जो प्रभाव पड़ता है और उससे जिस प्रकार की मानस अभिव्यक्ति होती है, उसे बिंब कहते हैं ।

आधुनिक विज्ञान यह स्वीकार करता है कि हमारे सूक्ष्म विचार किसी स्थूल, मनोग्राह्य ऐंद्रिय गुणों से युक्त आधार पर उठते है । अमूर्त कहे जाने वाले विचारों के तल में भी स्पष्ट या अस्पष्ट, निश्चित मनस् चित्र रहता है जिसमें, रूप-रंग, रस, स्पर्श गंध आदि गुण रहते हैं । विज्ञान में इन मनसूचितों का विशेष प्रयोजन और महत्त्व न होने से हम इनकी चिंता नहीं करते । साहित्य इससे बहुत दूर है, इससे तो साहित्यिक कलाकार की सहज प्रतिभा अर्थों में रूप रंग, गति, गंध, स्पर्श, रस आदि को भरती है जिससे न केवल वे ग्रहण किए जा सकें अपितु वे अर्थ सजीव होकर अनुभूति को जाग्रत कर सकें । संक्षेप में, अर्थों में मूर्ततत्त्वोत्पादन साहित्य - सृजन के लिए आवश्यक है । कविता गंभीर अनुभूतियों को शब्दार्थ के माध्यम से मूर्तित करने का प्रयत्न और सत्य तो यह है कि मनुष्य में मूर्तिकरण की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कवियों और कलाकारों में इसकी मात्रा अधिक होती है ।

यह कल्पना के द्वारा ही संभव क्योंकि कल्पना एक ओर प्रतीकों के माध्यम से अमूर्त को मूर्त रूप देती है  और दूसरी ओर नई नई उद्भावनाओं को जाग्रत करने वाली मानसिक शक्ति को भी प्रेरित करती है । कहा भी गया है 'कल्पनाया: नवोद्भावनस्य शक्ति, कल्पना शक्तिः।'

स्पष्ट है कि जिस कवि में कल्पना शक्ति जितनी ही सूक्ष्म, सहज और स्वाभाविक होगी, काव्य का बिंब विधान उतना ही आकर्षक , प्रभावोत्पादक और सफल होगा । इसलिए आवश्यक है कि कल्पना विवेक द्वारा भावित हो ।

डॉ. नगेंद्र ने काव्य बिंब की परिभाषा देते हुए लिखा है - काव्य बिंब शब्दार्थ के माध्यम से कल्पना द्वारा निर्मित एक ऐसी मानसिक छवि है, जिसके मूल भाव की प्रेरणा रहती है । इस परिभाषा में नगेंद्र जी ने निम्नलिखित तथ्यों को स्वीकार किया है-

( 1 ) काव्य बिंब एक प्रकार का मानसिक चित्र है ।

( 2 ) काव्य बिंब का निर्माण शब्दार्थ और कल्पना के द्वारा होता है ।

( 3 ) काव्य बिंब के मूल में भाव की सन्निहित आवश्क है ।

इस प्रकार बिंब को काव्य का अनिवार्य गुण माना गया है । बिंब के कारण एक ओर तो अभिव्यक्ति में चित्रात्मकता आ जाती है और दूसरी ओर कवि का कथ्य अधिक प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त होता है। इसीलिए काव्य भाषा के लिए बिंब को महत्त्वपूर्ण माना जाता है ।

सुमित्रानंदन पंत ने भी काव्य के लिए बिंब की आवश्यकता पर बल देते हुए लिखा है- " कविता के लिए चित्र भाषा की आवश्यकता पड़ती है । उसके शब्द सस्वर होने चाहिए , जो बोलते हों , सेब की तरह जिनके रस की मधुर लालिमा भीतर न समा सकने के कारण बाहर झलक पड़े , जो अपने भावों का अपनी ही ध्वनि में आँखों के सामने चित्रित कर सकें , जो झंकार हों ! "

निष्कर्ष के रूप में बिंब विधान के लिए यह कहना युक्तिसंगत है कि काव्य का बिंब मानस की एक सजीव, सुंदर और सरस चित्र है, जिसमें कवि की भावना, अनुभूति और कल्पना मूर्त रूप धारण करती है । इस मनस् चित्र को बाहर की आँखों से न देखकर मन की आँखों से ही देखा जा सकता है क्योंकि कवि अपने काव्य में जिस बिंब की प्रतिष्ठा अथवा योजना करता है वह उसके मानव से उद्भूत और शब्दों और अर्थों के माध्यम से पाठक अथवा श्रोता के हृदय में उतरता है ।

इस प्रकार बिंब विधान काव्य को उत्कृष्टता का एक सबल आधार है । जिस कवि में उसकी परख और पकड़ जितनी ही अधिक होगी , वह उतना ही बड़ा कलाकार होगा , लेकिन बिंब को ग्रहण करने के लिए पाठक और

अरस्तू का अनुकरण ( अनुकृति सिद्धांत )UGC NET JRF HINDI//


 

प्लेटो के प्रमुख शिष्य थे अरस्तू। अरस्तू ने अपने दार्शनिक विचारों के आधार पर दो सिद्धात साहित्य जगत को दिए । अनुकरण सिद्धात और विरेचन सिद्धात।

उनका अनुकरण सिंहात उनके गुरू प्लेटो के अनुकरण सिद्धार से भिन्न है तथा उसे एक नया अर्थ प्रदान करता है । प्लेटो ने कविता की तुलना चित्रकला से की है परंतु अरस्तू गे कविता की तुलना संगीत से करते हुए स्पष्ट किया कि विकला में बस्तु जगत की अनुकृति न होकर स्थूल रूपाकार का अनुकरण किया जाता है । परंतु संगीत कला में मनुष्य की आंतरिका वासनाओं , वृत्तियों और भावनाओं को मूर्त किया आता है । सांगीत से तुलना करने से समष्ट है कि अरस्तु को अनुकरण का यापक और सूक्ष्म अई मान्य है । उसके लिए अनुकरण दृग्य वस्तु जगत की ल्यूल अनुरुति नही है । उसे अनुसार कवि अपनी बचाना में दृश्य जगत की वस्तुओं को जैसी है।  वैसी ही प्रस्तुत नाही करता । या तो वह उन्हें बेहतर रूप में प्रस्तुत करता है या हीनकर रूप में ।

उसकी दृष्टि में अनुकरण मात्र आकृति और लार का ही नहीं किया जाता यह आतरिक भागों और पत्तियों का भी किया जाता है । अरस्तू के अनुसार कवि के अनुसरण का विषय कर्मरत मनुष्य है । मनुष्य बाल्य जीवन के साथ ही मानसिक स्तर मी क्रियाशील होता है , उसके मानसिक किया कलापो का , उसकी मानसिक सधेड बुन का या मनोवृत्तियों के उत्कर्ष व अपकर्ष का चित्रण एक मनोवैज्ञानिक एप मनाशील प्रक्रिया है । कवि इसे अपनी रचनात्मक कल्पना द्वारा ही मूतं या चित्रित कर सकता है । पलम का चित्र निर्मित करने की प्रक्रिया में पलग को जब चित्रकार देखता है तो नेत्रों माध्यम से देव गया लयाकार पहले चित्रकार के मानसपटल पर अंकित होता है उसके बाद उसका मनोयिंग चित्रकार की कामना शक्ति के सहारे चित्र के रूप में आकार ग्रहण करता है । इसलिए उसे नकल या स्थूल अनुकरण कहकर हेय नहीं पहराया जा सकता ।

अरस्त्तू ने स्पष्ट कर दिया कि कारी और चित्रकार के कला माध्यम अलग अलग है । चित्रकार रूप और रंग के माध्यम से अनुकरण करता है , जबकि की भाषा , लय और सामजस्य के माध्यम से । जिस प्रकार संगीत में सामजस्य और लय का माप में केवल लय का उपयोग होता है , उसी प्रकार कायाकला में अनुकृति के लिए भाषा का प्रयोग होता है । यह भाषा गा मा पा दोनों में हो पाती है । इस स्तर पर यह संगीत कला के अभिया निकट है । भारतीय शब्दावली का प्रयोग करें तो कर सकते हैं कि अरस्तु के विचार से काम की आत्मा अनुक्त है ।

अरस्तू ने अनुकरण को प्रतिकृति न मानकर पुन सृजन अथवा पुनर्निमाण माना है । उसकी दृष्टि में अनुकरण नकल न होकर सर्जन प्रक्रिया है । इसमें सवेदना और आदर्श का मेल है । इन्ही के द्वारा कवि अपूर्णता को पूर्णता प्रदान करता है ।

अरस्तु के अनुसार तीन प्रकार की वस्तुओं में से किसी एक का अनुकरण होता है

1. जैसी ये थी या है । 2 जैसी दे कही या समझी जाती है । जैसी में होनी चाहिए ।

अरस्तु ने इन्हें प्रतीयमान , कमाय्य और आदर्श माना है । अरस्तू का अनुवाचरण संवेदनामय है । कल्पनायुका है शुद्ध प्रतिवाति नहीं ।

अरस्तू ने अनुकृति के माध्यान, विषय और विधान का विस्तार से विचार किया । यद्यपि सभी कलाओं का मूल नाव जनुकृति ही है, किंतु उन सबके माध्यन आदि के पारस्परिक अंतान के कारण ही वे एक दूसरी से प्रत्यक जी जाती है । अतः बाय के विशिष्ट अध्ययन के लिए उसके माध्यम आदि का ज्ञान अपेक्षित है ।  

अनुकृति के लिए वही माध्यम हो ऐसा आवशयक नहीं । भाषा का कोई भी रूप वाला अनुकृति या माध्यम बन सजाता है । कविता मात्र प्रयबद्ध प्रस्तुति नहीं है यदि ऐसा होता तो मौतिका या चिकित्साशास्त्र पी छदबद्ध प्रस्तुति भी कविता करताती । विषय काव्य में मानवीय क्रियाकलापों का जनुकरण होता है । काव्य के दो भेदों में से कामटी का लक्ष्य हीनतर रूप को प्रस्तुत करना होता है जबकि आसदी का लक्ष्य मध्यवर पित्रण करना । विधान - काव्य के विभिन्न रूपों में अनुकूल विषय एवं उनके माध्यम की समानता होते हुए भी उनमें परस्पर कि या शैली का आतर विद्यमान रहता है ।

अरस्तू ने सामान्यात तीन शैलियों का उल्लेख किया है –

1. जहाँ कपि कमी स्वयं विषय का वर्णन करता है , वही अपने पात्रों के मुंह से कहलाया देता है।

2. प्रारंभ से लेकर अंत तक कवि एक जैसा ही रूप रखे । ( आत्मानिवजनात्मक शैली )

1. कवि स्वयं दूर रहकर समरत पाने को नाटकीय शैली में प्रस्तुत करें । ( नाट्य रेली ) . अरस्तू के अनुकरण रिहात के महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार है

1. कविता जगत की अनुकृति है रामा अनुकरण मनुष्य को मूल प्रति है ।

2. अनुकरण में हमें शिक्षा मिलती है । बालक अपने से बड़ों की क्रियाए देखकर तथा उसका अनुकरण करके ही सीखता

3. अनुकरण की प्रक्रिया आनंददायक है । हम अनुकूट परतु में मूल का सादृश्य आनंद प्राप्त करते हैं ।

4. अनुकरण के माध्यम से गयमूलक या आरामूलक बस्तु को भी इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है जिससे आनंद की अनुभूति हो ।

5. काव्यकला सर्वोच्च अनुकरणात्मक कला है तथा अन्य सभी ललित कलाओं एप उपयोगी कलाओं से भीक महल्यपूर्ण है । नाटक कागकला का सबधिक उत्कृष्ट रूप । अरस्तू ने काय जी समीक्षा स्वतंत्र रूप से की है । प्लेटो की भांति दर्शन और राजनीति के दृष्टि से नहीं देखा ।

प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत//UGC NET JRF HINDI//



यूनान का महान दार्शनिक प्लेटो ( 428 ई.पू ) एक मौलिक चिंतक को रूप में विख्यात है । यह सुकरात का शिष्य था । अरस्तू इसका शिष्य है । होमर या समकालीनालेटो के समय में कवि को समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त था । वह ( कवि ) उपदेशक , मार्गदर्शक , संस्कृति का सरमक माना जाता था । रचनाएँ दि रिपब्लिक , दि स्टेट्समैन , दि लाग , श्योन , सिम्पोजियम । अनुकरण सिद्धांत प्लेटो के मत का सार—

1. कविता जगत की अनुकृति है, जगत स्वयं अनुकृति है अत कविता सत्य से दोगुनी दूर है ।

2. कविता भायों को तलित कर व्यक्ति को कुमार्गगामी बनाती है ।

3. कविता अनुपयोगी है । कार का महत्त्व एक मोघी से भी कम है ।

प्लेटो के अनुसार काव्य के प्रयोजन 1. सत्य का उदघाटन 2. मानव कल्याण एवं राष्ट्रोत्थान

3. आनंद प्रदान करना 4. शिक्षा देना

प्लेटो ने काव्य का विरोध चार दृष्टियों से किया---

1. नैतिक आधार

2. भावात्मक आधार

3. बौद्धिक आधार

4. शुद्ध उपयोगितावादी

प्लेटो काव्य का महत्त्व उसी सीमा तक स्वीकार करता है , जहां तक वाह गणराज्य के नागरिकों में सत्य , सदाचार की भावना को प्रतिष्ठित करने में सहायक हो ।

कला और साहित्य की कसौटी उसके लिए आनंद एवं सीवर्य न होकर उपयोगितावाद थी । वह कहता है- आमचमाती हुई स्वर्गजटित अनुपयोगी दाल से गोबर की उपायोगी टोकरी अधिक सुंदर है । उसको विचार से कपि या चित्रकार का महत्व माची या बढ़ाई से भी कम है , क्योंकि यह अति मात्र प्रस्तुत करता है ।

सत्य रूप तो जोवल विशार रूप में अलौकिया जगत में ही है । काष्ण मिथ्या जगत की मिथ्या अनुकृति है । इस प्रकार यह सत्य से दोगुना दुर है । कविता अनुकृति और सर्वथा अनुपयोगी है , इसलिए वह प्रशंसनीय नहीं अपितु दंडनीय है ।  वह कवि के तुलना में एक चिकित्सक , सैनिक या प्रशासक का महत्व अधिक मानता है ।

वह कहता है कि कवि अपनी रचना से लोगों की भावनाओं और वासनाओं को उडेलित कर समाज में दुर्बलता और अनाचार के योषण को भी अपराध करता है । कवि अपनी कविता से आनंद प्रदान करता है परंतु दुराचार एवं कुमार्ग की ओर प्रेरित करता है इसलिए राज्य में सुव्यवस्था हेतु उसे राज्य से निष्कासित कर देना चाहिए ।

उसका मानना था कि किसी समाज में सत्य , न्याय और सदाचार की प्रतिष्ठा तभी संभव है जब उस राज्य के निवासी वासनाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए विवेक एवं नीति के अनुसार आचरण करें ।

वह चुनौती देते हुए डामर से पूछना चाहता है कि क्या कविता से किसी को रोगमुक्त कर सकती है ? स्या कविता से कोई मुद्ध जीता जा सकता है ? क्या कविता ले श्रेष्ठ शासन व्यवस्था स्थापित की जा सकती है ?

प्लेटों के अनुसार मानय के व्यमितत्व के तीन आतरिक तत्त्व होते हैं- बौद्धिक ऊर्जस्वी एवं सतृष्ण ।

काव्य विराशी होने के बावजूद प्लेटों ने वीर पुरुषों के गुणों को उमारकर प्रत्युत किए जाने वाले श्या देवताओं के स्तोत्र वाले काव्य को महत्वपूर्ण एवं उचित माना है ।

Thursday, 27 May 2021

हिंदी साहित्य में अस्मिता तथा विमर्श शब्दों की अवधारँणा और इतिहास। UGC//NET JRF//

 

 

आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य में अस्मिता और विमर्श शब्दों का प्रयोग आज साधारण बात हो चुकी है। लोक साहित्य में इन शब्दों का महत्व आज बहुत बड़ा है। लोक साहित्य में आज खासकर स्त्री विमर्शदलित विमर्श और आदिवासी विमर्श को विशेष महत्व दिया जाता रहा है।

विमर्श और अस्मिता शब्द का अर्थइसके परिभाषा तथा महत्व को समझना आज बेहद जरूरी है।

इस विषय में अधिक जानकारी हेतु इस PDF को क्लिक करें।

 





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बी.ए.एच.डी.सी.सी.3

खंड -5 BAHD CC - 3 Block - 5

Odisha State Open University Sambalpur

BAHD BACHELOR OF ARTS ( HONOURS ) IN HINDI

हिंदी साहित्य का इतिहास ( भाग -2 ) अस्मिता विमर्श : स्त्री , दलित एवं आदिवासी

 

 

स्त्री विमर्श,

दलित विमर्श,

आदिवासी विमर्श,


100 बैस्ट MCQ/ प्रश्न/हिंदी साहित्य के इतिहास के UGC//NET JRF// PYQ/HINDI 

 

 

Ø रीतिकालीन कवियों का छंद निरूपण किससे प्रभावित है ?  

Ø कवियों का छेद निरूपण ' वृत रत्नाकर से प्रभावित है ।  

Ø भूषण को कवि भूषण की उपाधि किसने दी थी ?

Ø कवि रूद्र सिंह सोलंकी ने ।

Ø मुंशी प्रेमचंद को कबीर के बाद हिन्दी का सबसे बड़ा व्यगंकार किसने माना है ?

Ø डॉ. रामविलास शर्मा ने ।

Ø हिन्दी में प्रेमचंद की पहली कहानी कौनसी है ?

Ø सौत

Ø आधुनिक हिन्दी कहानी की जन्मदात्री पत्रिकाएँ कौनसी है ?

Ø सरस्वती, सुदर्शन, और इन्दु पत्रिकाएँ ।

Ø हिन्दी की पहली वैज्ञानिक कहानी कौनसी है ?

Ø चन्द्रलोक की यात्रा

Ø मोहन राकेश ने अपनी कहानियों में किसकी स्थिति को समेटा है ।

Ø भारत -विभाजन की मन स्थिति

Ø हिन्दी साहित्य में आख्यायिका शैली का प्रथम उपन्यास कौनसा है ?

Ø श्यामा स्वप्न उपन्यास । |

Ø कारवाँ एकांकी संग्रह कब प्रकाशित हुआ तथा इसमे कितने एकांकी संकलित है ।

Ø यह एकांकी संग्रह 1935 में प्रकाशित हुआ तथा इसमें 5 एकांकी संकलित है -श्यामा , एक साम्यहीन साम्यवादी , तान , प्रतिमा का विवाह लाटरी ।

Ø भारतेन्दु युगीन निबंधों में किसकी प्रधानता है ।

Ø आत्मीयता की प्रधानता ।

Ø बालकृष्ण भट्ट ने निबंध ' हिन्दी प्रदीप ' पत्रिका में किस शैली में लिखे है ।

Ø व्याख्यात्मक एवं विचारात्मक शैली में ।

Ø प्रेमचन्द के उपन्यास ' रंगभूमि का संपादन किया ? जैनेन्द्र ने  

Ø हिंदी यात्रा साहित्य का जनक ?

Ø राहुल सांकृत्यायन

Ø हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यासों का प्रमुख स्वर है ?

Ø मानवतावाद

Ø चन्द्रकांता संतति उपन्यास कितने भागों में है ।

Ø 4 भाग

Ø जैनेन्द्र का लघु उपन्यास ?

Ø मुक्तिबोध ( साहित्य अकादमी पुरस्कार )

Ø जैनेन्द्र का ऋषभचरण जैन के सहलेखन में लिखित उपन्यास ?

Ø तपोभूमि

Ø पाप और पुन्य की समस्या पर आधारित भगवती चरण वर्मा का उपन्यास ?

Ø चित्रलेखा

Ø तीन पीढ़ियों की कथा को समेटे हुए भगवतीचरण वर्मा का उपन्यास ?

Ø भूले बिसरे चित्र

Ø टेढ़े मेढ़ें रास्ते किस कोटि का उपन्यास है ? राजनैतिक

Ø आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का साहित्य नामक प्रथम निबंध कब प्रकाशित हुआ ?

Ø सन् 1904 में सरस्वती पत्रिका में ।

Ø विचार विधी 1930 के बाद किस नाम से प्रकाशित हुआ था ?

Ø चिंतामणि भाग एक एव दो के नाम से -भाषा और शैली की दृष्टि से किसे कलात्मक निबंध का जन्म दाता कहा जाता है ?

Ø आचार्य रामचन्द्र शुक्ल को ।

Ø हिन्दी के हास्य व्यंगात्मक निबंधकारो में सर्वश्रेष्ट कौन है ?

Ø कवि हरिशंकर परसाई ।

Ø हिन्दी का प्रथम अनूदित नाटक कौनसा है ?

Ø हिन्दी रंगमंच के जन्मदाता कौन है ?

Ø भारतेन्दु हरिशचन्द्र ।

Ø हिन्दी का पहला अभिनीत नाटक कौनसा है ?

Ø जानकी मंगल ।

Ø देसी रियासतों के कुचक्रो के जीवन की झाँकी किस नाटक में व्यक्त की है ।

Ø भारतेन्दु के " विषस्य विषमौषधम " नाटक में ।

Ø प्रसाद जी की प्रथम नाटक रचना कौनसी है ?

Ø राज्यश्री ( 1915 ) मे ।

Ø लक्ष्मीनारायण मिश्र ने अपने नाटकों में का विषय किसको बनाया है ?

Ø नारी समस्या को ।

Ø मोहन राकेश ने हिन्दी नाटकों में किस युग का आरम्भ किया ?

Ø हिन्दी नाटकों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाकर एक नये युग का आरम्भ किया ।

Ø हिन्दी का प्रथम मौलिक नाटक कौनसा है ?

Ø आनन्द रघुनंदन ( 1833-45 )

Ø हिन्दी में समस्या नाटकों कस जन्मदाता किसे माना जाता है ?

Ø लक्ष्मीनारायण मिश्र को ।  

Ø औरंगजेब की आखिरी रात ' नाटक के लेखक कौन है ?

Ø डॉ. रामकुमार वर्मा का ।

Ø सेठ गोविन्ददास ने किन विषयो पर एकांकी की रचना की थी ?

Ø सामाजिक, राजनीतिक एवं सामयिक विषयो पर

Ø जगदीश चन्द्र माधुर ने एकांकीयों में किस पर प्रहार किया ?

Ø सामाजिक विषमताओं, बाह्य आडम्बरो, एवं दुर्बल नैतिक मान्यताओं पर प्रहार किया ।

Ø गिरिजाकुमार माथुर के एकांकी को किन वर्गों में रखा गया है ?

Ø ऐतिहासिक , प्रतीकात्मक और सांस्कृतिक वर्गों में

Ø चतुरसेन शास्त्री ने अपनी एकांकि में इतिहास के उज्जवल पक्ष को प्रस्तुत करते हुए किस महत्व को प्रतिपादित किया है  त्याग एवं बलिदान के महत्व को प्रतिपादित किया है ।

Ø आधुनिक चेतना से सम्पृक्त प्रमुख एकांकिकार कौन -कौनसे है ?

Ø डॉ. जयलाल नलिन, विष्णु प्रभाकर, डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल, विनोद रस्तोगी, सत्येंद्र शरत आदि ।

Ø हिन्दी का प्रथम रेडियो नाटक कोनसा है ?

Ø राधा कृष्ण नाटक

Ø डॉ. हजारी प्रसाद ने हिन्दी का प्रथम उपन्यास किसे माना है ?

Ø भारतेन्दु द्वारा रचित ' पूर्ण प्रकाश " और चन्द्रप्रभा " उपन्यास को प्रथम माना है ।

Ø सौ सुजान एक सुजान नामक उपन्यास में किसका वर्णन किया गया है ?

Ø नितिपरक एवं उपदेशात्मकता का वर्णन

Ø देवकीनन्दन खत्री के " भूतनाथ ' उपन्यास को किसने पूरा किया ?

Ø उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने ।

Ø तुलसीदास के जीवन पर अमृतलाल नागर द्वारा लिखित उपन्यास ?

Ø 'मानस का हंस '

Ø भारत का गोर्की कहा जाता है ?

Ø अमरकांत को

Ø यशपाल का विभाजन पर आधारित उपन्यास ?

Ø झूठा सच ( 2 भाग : 1. वतन और देश -1958,2- देश का भविष्य - 1960 )

Ø ' झूठा सच ' उपन्यास के किस भाग में शरणार्थी समस्या है ?

Ø दुसरे भाग में

Ø आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने त्रिवेणी में किन तीन महाकवियों की समीक्षाएँ प्रस्तुत की हैं ?

Ø तुलसी,सूर,जायसी

Ø आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार इनमें एक ऐसा कवि है, जिसका ' वियोग वर्णन , वियोग वर्णन के लिए ही है , परिस्थिति के अनुरोध से नहीं ?

Ø कबीर

Ø रीतिकाल में राम काव्य की रचना किसने की ?

Ø सेनापति ने

Ø भारतेंदु युग में प्रकृति चित्रण करने वाले कवि है ?

Ø ठाकुर जगर्मोहन

Ø दिवेदी युग में प्रकृति चित्रण करने वाले कवि है ?

Ø श्रीधर पाठक

Ø भारतेंदु के गुरु थे ?

Ø राजा शिव प्रसाद सितारे हिन्द

Ø भारतेंदु के काव्य गुरु थे ?

Ø पंडित लोकनाथ

Ø सुकवि की उपाधि प्राप्त थी ?

Ø अम्बिकादत्त व्यास

Ø छायावाद का प्रवर्तन किया ?

Ø मुकुटधर पाण्डेय ने

Ø सुमित्रानंदन पंत का मूल नाम था ?

Ø गोसाई दत्त

Ø प्रेम और सौदर्य का कवि कहा जाता है ।

Ø जयशंकर प्रसाद को

Ø त्रिधारा में रचना है ?  

Ø सुभद्राकुमारी चौहान

Ø नंददुलारे वाजपेयी ने छायावाद का जनक माना है ?

Ø सुमित्रानंदन पंत को

Ø छायावाद का ब्रहा, कहा जाता है ।

Ø प्रसाद को

Ø छायावाद का विष्णु कहा जाता है ?

Ø पंत को

Ø छायावाद का महेश ( शिव ) , कहा जाता है ?

Ø निराला को

Ø छायावाद की शक्ति कही जाती है ?

Ø महादेवी वर्मा

Ø पंत की काव्य यात्रा के तीन सोपान है ?

Ø छायावादी , प्रगतिवादी , अध्यात्मवादी

HINDI UGC NET MCQ/PYQ PART 10

HINDI UGC NET MCQ/PYQ हिन्दी साहित्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी-- " ईरानी महाभारत काल से भारत को हिन्द कहने लगे थे .--पण्डित रामनरेश त्रिप...