Friday, 28 May 2021

अरस्तू का अनुकरण ( अनुकृति सिद्धांत )UGC NET JRF HINDI//


 

प्लेटो के प्रमुख शिष्य थे अरस्तू। अरस्तू ने अपने दार्शनिक विचारों के आधार पर दो सिद्धात साहित्य जगत को दिए । अनुकरण सिद्धात और विरेचन सिद्धात।

उनका अनुकरण सिंहात उनके गुरू प्लेटो के अनुकरण सिद्धार से भिन्न है तथा उसे एक नया अर्थ प्रदान करता है । प्लेटो ने कविता की तुलना चित्रकला से की है परंतु अरस्तू गे कविता की तुलना संगीत से करते हुए स्पष्ट किया कि विकला में बस्तु जगत की अनुकृति न होकर स्थूल रूपाकार का अनुकरण किया जाता है । परंतु संगीत कला में मनुष्य की आंतरिका वासनाओं , वृत्तियों और भावनाओं को मूर्त किया आता है । सांगीत से तुलना करने से समष्ट है कि अरस्तु को अनुकरण का यापक और सूक्ष्म अई मान्य है । उसके लिए अनुकरण दृग्य वस्तु जगत की ल्यूल अनुरुति नही है । उसे अनुसार कवि अपनी बचाना में दृश्य जगत की वस्तुओं को जैसी है।  वैसी ही प्रस्तुत नाही करता । या तो वह उन्हें बेहतर रूप में प्रस्तुत करता है या हीनकर रूप में ।

उसकी दृष्टि में अनुकरण मात्र आकृति और लार का ही नहीं किया जाता यह आतरिक भागों और पत्तियों का भी किया जाता है । अरस्तू के अनुसार कवि के अनुसरण का विषय कर्मरत मनुष्य है । मनुष्य बाल्य जीवन के साथ ही मानसिक स्तर मी क्रियाशील होता है , उसके मानसिक किया कलापो का , उसकी मानसिक सधेड बुन का या मनोवृत्तियों के उत्कर्ष व अपकर्ष का चित्रण एक मनोवैज्ञानिक एप मनाशील प्रक्रिया है । कवि इसे अपनी रचनात्मक कल्पना द्वारा ही मूतं या चित्रित कर सकता है । पलम का चित्र निर्मित करने की प्रक्रिया में पलग को जब चित्रकार देखता है तो नेत्रों माध्यम से देव गया लयाकार पहले चित्रकार के मानसपटल पर अंकित होता है उसके बाद उसका मनोयिंग चित्रकार की कामना शक्ति के सहारे चित्र के रूप में आकार ग्रहण करता है । इसलिए उसे नकल या स्थूल अनुकरण कहकर हेय नहीं पहराया जा सकता ।

अरस्त्तू ने स्पष्ट कर दिया कि कारी और चित्रकार के कला माध्यम अलग अलग है । चित्रकार रूप और रंग के माध्यम से अनुकरण करता है , जबकि की भाषा , लय और सामजस्य के माध्यम से । जिस प्रकार संगीत में सामजस्य और लय का माप में केवल लय का उपयोग होता है , उसी प्रकार कायाकला में अनुकृति के लिए भाषा का प्रयोग होता है । यह भाषा गा मा पा दोनों में हो पाती है । इस स्तर पर यह संगीत कला के अभिया निकट है । भारतीय शब्दावली का प्रयोग करें तो कर सकते हैं कि अरस्तु के विचार से काम की आत्मा अनुक्त है ।

अरस्तू ने अनुकरण को प्रतिकृति न मानकर पुन सृजन अथवा पुनर्निमाण माना है । उसकी दृष्टि में अनुकरण नकल न होकर सर्जन प्रक्रिया है । इसमें सवेदना और आदर्श का मेल है । इन्ही के द्वारा कवि अपूर्णता को पूर्णता प्रदान करता है ।

अरस्तु के अनुसार तीन प्रकार की वस्तुओं में से किसी एक का अनुकरण होता है

1. जैसी ये थी या है । 2 जैसी दे कही या समझी जाती है । जैसी में होनी चाहिए ।

अरस्तु ने इन्हें प्रतीयमान , कमाय्य और आदर्श माना है । अरस्तू का अनुवाचरण संवेदनामय है । कल्पनायुका है शुद्ध प्रतिवाति नहीं ।

अरस्तू ने अनुकृति के माध्यान, विषय और विधान का विस्तार से विचार किया । यद्यपि सभी कलाओं का मूल नाव जनुकृति ही है, किंतु उन सबके माध्यन आदि के पारस्परिक अंतान के कारण ही वे एक दूसरी से प्रत्यक जी जाती है । अतः बाय के विशिष्ट अध्ययन के लिए उसके माध्यम आदि का ज्ञान अपेक्षित है ।  

अनुकृति के लिए वही माध्यम हो ऐसा आवशयक नहीं । भाषा का कोई भी रूप वाला अनुकृति या माध्यम बन सजाता है । कविता मात्र प्रयबद्ध प्रस्तुति नहीं है यदि ऐसा होता तो मौतिका या चिकित्साशास्त्र पी छदबद्ध प्रस्तुति भी कविता करताती । विषय काव्य में मानवीय क्रियाकलापों का जनुकरण होता है । काव्य के दो भेदों में से कामटी का लक्ष्य हीनतर रूप को प्रस्तुत करना होता है जबकि आसदी का लक्ष्य मध्यवर पित्रण करना । विधान - काव्य के विभिन्न रूपों में अनुकूल विषय एवं उनके माध्यम की समानता होते हुए भी उनमें परस्पर कि या शैली का आतर विद्यमान रहता है ।

अरस्तू ने सामान्यात तीन शैलियों का उल्लेख किया है –

1. जहाँ कपि कमी स्वयं विषय का वर्णन करता है , वही अपने पात्रों के मुंह से कहलाया देता है।

2. प्रारंभ से लेकर अंत तक कवि एक जैसा ही रूप रखे । ( आत्मानिवजनात्मक शैली )

1. कवि स्वयं दूर रहकर समरत पाने को नाटकीय शैली में प्रस्तुत करें । ( नाट्य रेली ) . अरस्तू के अनुकरण रिहात के महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार है

1. कविता जगत की अनुकृति है रामा अनुकरण मनुष्य को मूल प्रति है ।

2. अनुकरण में हमें शिक्षा मिलती है । बालक अपने से बड़ों की क्रियाए देखकर तथा उसका अनुकरण करके ही सीखता

3. अनुकरण की प्रक्रिया आनंददायक है । हम अनुकूट परतु में मूल का सादृश्य आनंद प्राप्त करते हैं ।

4. अनुकरण के माध्यम से गयमूलक या आरामूलक बस्तु को भी इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है जिससे आनंद की अनुभूति हो ।

5. काव्यकला सर्वोच्च अनुकरणात्मक कला है तथा अन्य सभी ललित कलाओं एप उपयोगी कलाओं से भीक महल्यपूर्ण है । नाटक कागकला का सबधिक उत्कृष्ट रूप । अरस्तू ने काय जी समीक्षा स्वतंत्र रूप से की है । प्लेटो की भांति दर्शन और राजनीति के दृष्टि से नहीं देखा ।

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