काव्य में बिंब बिधान//UGC//NET JRF//HINDI
जिस प्रकार पारंपरिक कविता में छंद और अलंकार को काव्य का तत्त्व एवं गुण माना
जाता था,
उसी प्रकार आधुनिक कविता में प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए
बिंब एवं प्रतीक आदि का प्रयोग किया जाता है । बिंब को अंग्रेजी में इमेज
कहा जाता है । अर्थात् मूर्त कल्पना बिंब है ।
साहित्य में बिंब वह भाषिक और शैल्पिक उपकरण है जिसके
द्वारा कोई रचनाकार अभिगृहीत प्रभावों का चित्रोपम संप्रेषण करता है अथवा अमूर्त
का मूर्तिकरण करता है । इसी
प्रकार अभ्यंतर के अमूर्त को बाह्यीकृत मूर्त में ढालने का दूसरा महत्त्वपूर्ण
भाषिक उपकरण प्रतीक है प्रतीक को अंग्रेजी में सिंबल कहा जाता है जैसे 'कुर्सी' शब्द का प्रतीक है , एक विशेष वस्तु का ।
काव्य में प्रतीक अनेकार्थ सूचक होते हैं । जैसे- मुक्तिबोध के काव्य में ' बरगद ' मार्क्सवाद का और अज्ञेय के काव्य में ' बावरा अहेरी ' सूर्य का प्रतीक है । पाश्चात्य जगत के मनीषियों ने ' बिंब ' को काव्य के प्रधान तत्त्व को रूप में स्थान दिया है । पाश्चात्य विद्वानों का विश्वास है कि प्रत्येक मनुष्य
के मन में कुछ इंद्रिय द्वारा अनुभव करने पर हमारे हृदय पर जो प्रभाव पड़ता है और
उससे जिस प्रकार की मानस अभिव्यक्ति होती है, उसे बिंब कहते हैं ।
आधुनिक विज्ञान यह स्वीकार करता है कि हमारे सूक्ष्म विचार किसी स्थूल, मनोग्राह्य ऐंद्रिय गुणों से युक्त आधार पर उठते है ।
अमूर्त कहे जाने वाले विचारों के तल में भी स्पष्ट या अस्पष्ट, निश्चित मनस् चित्र रहता है जिसमें, रूप-रंग, रस, स्पर्श गंध आदि गुण रहते हैं । विज्ञान में इन मनसूचितों का विशेष प्रयोजन और
महत्त्व न होने से हम इनकी चिंता नहीं करते । साहित्य इससे बहुत दूर है, इससे तो साहित्यिक कलाकार की सहज प्रतिभा अर्थों में रूप
रंग,
गति, गंध,
स्पर्श, रस आदि को भरती है जिससे न केवल वे ग्रहण किए जा सकें अपितु
वे अर्थ सजीव होकर अनुभूति को जाग्रत कर सकें । संक्षेप में, अर्थों में मूर्ततत्त्वोत्पादन साहित्य - सृजन के लिए
आवश्यक है । कविता गंभीर अनुभूतियों को शब्दार्थ के माध्यम से मूर्तित करने का
प्रयत्न और सत्य तो यह है कि मनुष्य में मूर्तिकरण की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है
कवियों और कलाकारों में इसकी मात्रा अधिक होती है ।
यह कल्पना के द्वारा ही संभव क्योंकि कल्पना एक ओर प्रतीकों के माध्यम से अमूर्त
को मूर्त रूप देती है और दूसरी ओर नई नई
उद्भावनाओं को जाग्रत करने वाली मानसिक शक्ति को भी प्रेरित करती है । कहा भी गया
है 'कल्पनाया: नवोद्भावनस्य शक्ति, कल्पना शक्तिः।'
स्पष्ट है कि जिस कवि में कल्पना शक्ति जितनी ही सूक्ष्म, सहज और स्वाभाविक होगी, काव्य का बिंब विधान उतना ही आकर्षक , प्रभावोत्पादक और सफल होगा । इसलिए आवश्यक है कि कल्पना
विवेक द्वारा भावित हो ।
डॉ. नगेंद्र ने काव्य बिंब की परिभाषा देते हुए लिखा है - काव्य बिंब शब्दार्थ
के माध्यम से कल्पना द्वारा निर्मित एक ऐसी मानसिक छवि है, जिसके मूल भाव की प्रेरणा रहती है । इस परिभाषा में नगेंद्र
जी ने निम्नलिखित तथ्यों को स्वीकार किया है-
( 1 ) काव्य बिंब एक प्रकार का मानसिक चित्र है ।
( 2 ) काव्य बिंब का निर्माण शब्दार्थ और कल्पना के द्वारा होता है ।
( 3 ) काव्य बिंब के मूल में भाव की सन्निहित आवश्क है ।
इस प्रकार बिंब को काव्य का अनिवार्य गुण माना गया है । बिंब के कारण एक ओर तो
अभिव्यक्ति में चित्रात्मकता आ जाती है और दूसरी ओर कवि का कथ्य अधिक प्रभावशाली
ढंग से अभिव्यक्त होता है। इसीलिए काव्य भाषा के लिए बिंब को महत्त्वपूर्ण माना
जाता है ।
सुमित्रानंदन पंत ने भी काव्य के लिए बिंब की आवश्यकता पर बल देते हुए लिखा
है- " कविता के लिए चित्र भाषा की आवश्यकता पड़ती है । उसके शब्द सस्वर
होने चाहिए , जो बोलते हों , सेब की तरह जिनके रस की मधुर लालिमा भीतर न समा सकने के
कारण बाहर झलक पड़े , जो अपने भावों का अपनी ही ध्वनि में आँखों के सामने चित्रित
कर सकें , जो झंकार हों ! "
निष्कर्ष के रूप में बिंब विधान के लिए यह कहना युक्तिसंगत है कि काव्य का
बिंब मानस की एक सजीव, सुंदर और सरस चित्र है, जिसमें कवि की भावना, अनुभूति और कल्पना मूर्त रूप धारण करती है । इस मनस् चित्र को बाहर की आँखों
से न देखकर मन की आँखों से ही देखा जा सकता है क्योंकि कवि अपने काव्य में जिस
बिंब की प्रतिष्ठा अथवा योजना करता है वह उसके मानव से उद्भूत और शब्दों और अर्थों
के माध्यम से पाठक अथवा श्रोता के हृदय में उतरता है ।
इस प्रकार बिंब विधान काव्य को उत्कृष्टता का एक सबल आधार है । जिस कवि में
उसकी परख और पकड़ जितनी ही अधिक होगी , वह उतना ही बड़ा कलाकार होगा , लेकिन बिंब को ग्रहण करने के लिए पाठक और
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