Wednesday, 5 May 2021

Ugc Net/Jrf kya hai..?

NTA UGC का NET EXAM क्या है?

 

 

 

उच्च शिक्षा और उसके बाद जब एक अभ्यार्थी किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का सपना देखता है, तो यह परीक्षा उसकी एक पहली पहल है। v

इस परीक्षा के उत्तीर्ण के बाद प्रतिभागी को यह अवसर मिल जाता है कि वह किसी भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी के खाली हुए प्रोफेसर के पद पर आवेदन कर सकते हैं अन्यथा नहीं।v

इस परीक्षा के माध्यम से प्रतिभागी की योग्यता को परखा जाता है।v

एक अभ्यार्थी देश के किसी भी कोने से इसका आवेदन कर सकते हैं और इस परीक्षा के लिए आनलाइन ही आवेदन किया जा सकता है।v

यह परीक्षा UGC वर्ष में दो बार आयोजित करते है।v

(जून और दिसंबर के महीने में)।

यह परीक्षा पूर्णतः NTA (NATIONAL TESTING AGENCY) द्वारा ONLINE CONDUCT किया जाता है।

इस परीक्षा का न्युनतम योग्यता एम.ए. होता हैं (प्रथम वर्ष के बाद से आवेदन कर सकते है)।v

 

NET और JRF में अंतर क्या हैं-

कॉलेज या यूनिवर्सिटी में Assistant Professor के पद के लिए अभ्यार्थी को Ph.D करना भी जरुरी है।

UGC के इसी NET की परीक्षा में अच्छें अंक प्राप्त होने पर (टॉप रैंक में आने पर) अभ्यार्थी को Ph.D में उनके शोध कार्य को सही ढंग से करने के लिए UGC स्कॉलरशिप की सुविधा प्रदान करती हैं, जिसे JRF कहा जाता है।v

यह  JRF (Junior Research Fellowship) की स्कॉलरशिप टॉप रैंक में आने वाले लगभग 6% अभ्यार्थी को दिया जाता हैं और इसके नीचे के अंक प्राप्त अभ्यार्थी को केवल NET का प्रमाऩपत्र प्रदान किया जाता है।v

JRF के बाद अभ्यार्थी को किसी भी यूनिवर्सिटी में Ph.D के लिए admission लेना होता है, जिसके बाद उनकी स्कॉलरशिप शुरु हो जाती है।v

Ph.D करते करते भी अभ्यार्थी किसी भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी के रिक्त Assistant Professor पद के लिए आवेदन कर सकते है।v

 JRF की समयसीमा लगभग 5 की वर्ष होती है।v

 GENERAL अभ्यार्थियों के लिए 30 वर्षों तक यह JRF  की सुविधा होती है।  v

 OBC-NC, SC से संबंधित उम्मीदवार और महिला आवेदकों ने 5 साल तक की छूट दी जाती है।v

 

 समानताः-v

(नोटः NET या JRF होने पर कोई भी अभ्यार्थी किसी भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी के रिक्त Assistant Professor पद के लिए आवेदन कर सकते है)

 


UGC NET HINDI नदी के द्वीप---अज्ञेय

 


नदी के द्वीप

हम नदी के द्वीप हैं ।

हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाय ।

वह हमें आकार देती है ।

हमारे कोण गलियाँ अन्तरीप उभार सैकत कूल ,

सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं ।

 माँ है वह । है इसी से हम बने हैं ।

किन्तु हम हैं द्वीप । हम धारा नहीं हैं ।

स्थिर समर्पण है हमारा । हम सदा से द्वीप है स्रोतस्विनी के ।

किन्तु हम बहते नहीं है । क्योंकि बहना रेत होना है ।

हम बहेंगे तो रहेंगे ही नहीं ।

पैर उखड़ेंगे । प्लवन होगा । ढहेंगे । सहेंगे । बह जायेंगे ।

और फिर हम चूर्ण होकर भी कभी क्या धार बन सकते ?

रेत बनकर हम सलिल को तनिक गॅदला ही करेंगे

अनुपयोगी ही बनायेंगे ।

द्वीप हैं हम यह नहीं है शाप । यह अपनी नियति है ।

हम नदी के पुत्र हैं । बैठे नदी की क्रोड़ में ।

वह बृहद् भूखण्ड से हमको मिलाती है ।

और वह भूखण्ड अपना पितर है ।

नदी तुम बहती चलो ।

भूखण्ड से जो दाय हमको मिला है मिलता रहा है ।

माँजती संस्कार देती चलो

यदि ऐसा कभी हो

तुम्हारे आह्लाद से या दूसरों के किसी स्वैराचार से अतिचार से

तुम बढ़ो प्लावन तुम्हारा घरघराता उठे

यह स्रोतस्विनी कर्मनाशा कीर्तिनाशा घोर

काल - प्रवाहिनी बन जाय

तो हमें स्वीकार है वह भी । उसी में रेत होकर

फिर छनेंगे हम । जमेंगे हम । कहीं फिर पैर टेकेंगे ।

कहीं फिर भी खड़ा होगा नये व्यक्तित्व का आकार ।

मात : उसे फिर संस्कार तुम देना । " ( हरी घास पर क्षण भर से )

 

प्रस्तुत कविता नवीन प्रतीकों को समाहित किये हुये है । नदी - सामाजिक चेतना प्रवाह को प्रतीक भूखण्ड समाज का प्रतीक तथा द्वीप व्यक्ति चेतना का प्रतीक है । कलगी बाजरे को कविता के समान यह नदी के द्वीप भी अज्ञेय की अत्यन्त प्रसिद्ध कविता है । नदी के द्वीप कविता में व्यक्ति - चेतना के अस्तित्व तथा संरक्षण का प्रश्न परन्तु इस कविता में स्वेच्छा से अपने जागृत तथा दीप्त व्यक्ति का व्यापक समष्टि को अर्पण है । यह द्वीप सामान्य द्वीप नहीं जन पनडुब्बा समिधा मधु गोरस अंकुर तथा अनेक रूपों में कवि ने उसको विशिष्टता एवं अद्वितीयता का उल्लेख किया है उसे ब्रह्म प्रकृति स्वयंभू कहा है । अपने ऐसे तेजस्वी एवं विश्वास दीप्त व्यक्ति का यह स्वेच्छा से किया गया समाज के प्रति अर्पण है । द्वीप कवि के तेजस्वी व्यक्ति - बोध का प्रतीक तथा पंक्ति समाज या समष्टि का प्रतीक है । व्यक्तिबोध के माध्यम से समष्टि - बोध की अनुभूति स्पष्ट की गयी है । विश्व वेदना की पूरित दो आँखें ही कवि को समष्टि - वेदना से परिचित करा देती है । हमारा व्यष्टि - बोध ही हमें समष्टि बोध तक पहुँचा सकता है बशर्ते वह इतना प्रशस्त हो कि समष्टि उसमें प्रतिबिम्बित हो सके । प्यार और दुलार की नई अनभूतियों को लिए ऋतुराज का आगमन हो गया है । ऋतुराज के आगमन के सहज उल्लास समूचे परिवेश का अत्यन्त आवेगपूर्ण चित्रण किया गया है । दर्द मनुष्य को माँजता है । उसका नया संस्कार करता है । उसे उदार एवं शुभ - चेता बनाता है । दर्द पाप नहीं है । दर्द के वैशिष्ट्य का आकलन पीड़ा भोग के महत्त्व का आकलन इस कविता में हुआ है । सागर तट की साँझ चन्द्रमा की किरणें नीला अपलक आकाश कवि का दर्द के वैशिष्ट्य की सही अनुभूति देते हैं । अत्यन्त मार्मिक भावपूर्ण एवं सशक्त प्रस्तुत कविता है । विधाता द्वारा सूर्य समूची धरती को जीवन देता है परन्तु मनुष्य के रचे हुए सूर्य ( अणु बम ) ने समूची मनुष्यता को भाप बनाकर सोख लिया । हीरोशिमा की धरती पर मानव की जली छायाएँ लिखी हुई हैं । प्रस्तुत कविता अज्ञेय की अत्यन्त प्रसिद्ध एवं चर्चित कविता है ।

'मैला आंचल' ugc net jrf hindi

'मैला आंचल' फणीश्वरनाथ रेणु का प्रथम उपन्यास है, जो 1954 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास का प्रकाशन उस समय हिंदी साहित्य में एक घटना माना गया था। ' मैला आंचल ' ही भारतीय साहित्य में रेणु के स्थायी महत्व का आधार बन गया है । 

'मैला आंचल' के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मई 1921 को बिहार के पूर्णिया जिला के औराही हिंगना गांव में हुआ था। उनके व्यक्तित्व का विकास केवल सृजनात्मक लेखक के रूप में ही नहीं एक सजग, सक्रिय नागिरक व देशभक्त के रूप में भी हुआ। 1942 के 'भारत छोड़ो' संग्राम में सक्रिय भागीदारी कर उन्होंने एक स्वाधीनता सेनानी के रूप में पहचान अपने यौवन में ही बनाई। स्वाधीनता की इस चेतना के साथ रेणु दमन व शोषण के आजीवन विरोधी रहे। अपने पड़ोसी नेपाल की जनता को राजशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भी रेणु ने वहाँ की जनता द्वारा शुरू की गई सशस्त्र क्रांति व राजनीति में सक्रिय हिस्सा लिया। इसी कड़ी में 1985-88 की आपात स्थिति का उन्होंने कड़ा विरोध किया। आपात् स्थिति के विरोध में उन्होंने पद्मश्री की मानद् राष्ट्रीय उपाधि लौटा दी। उन्हें पुलिस यातना भी झेलनी पड़ी और जेल यात्रा भी करनी पड़ी। रेणु के संघर्ष को 23 मार्च 1988 को आपात् स्थिति के हटने में सफलता तो मिली लेकिन वे स्वयं बहुत देर जीवित नहीं रह पाए। रोग ने उनका शरीर जर्जर कर दिया था और 11 अप्रैल 1977 को उनका देहावसान हो गया। रेणु 1952-53 में भी दीर्घकाल तक रोगग्रस्त रहे थे। इसी कारण वे सक्रिय राजनीति से हटकर साहित्य सृजन की ओर अधिक झुके और साहित्य सृजन में भी 1954 में ' मैला आंचल के प्रकाशन ने उन्हें शीर्षस्थ हिंदी लेखकों में स्थान दिला दिया। 

'मैला आंचल' के बाद उनके कुछ और उपन्यास प्रकाशित हुए- 'परती परिकथा', दीर्घतपा', 'कलंक मुक्ति, 'जुलूस और 'पल्टूबाबू रोड' उनके बाद के उपन्यास हैं। रेणु जितने प्रसिद्ध उपन्यासकार हुए , लगभग उतने ही प्रसिद्ध वे कहानीकार भी हैं। 'ठुमरी' अगिनखोर', 'आदिम रात्रि की महक', 'एक श्रावणी दोपहरी की धूप', 'अच्छे आदमी' आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं। उनकी कहानी पर आधारित फिल्म 'तीसरी कसम' ने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दिलाई। फणीश्वरनाथ रेणु के कुछ संस्मरण भी प्रसिद्ध हुए हैं: 'ऋणकुल धनजल', ' वन-तुलसी की गंधी, 'श्रुत अश्रुत पूर्व' उनके संस्मरण हैं। मैला आंचल के प्रकाशन से हिंदी में आंचलिक उपन्यास की धारा का प्रारंभ भी माना जाता है, यद्यपि इससे पूर्व भी अंचल विशेष के आधार बनाकर हिंदी में उपन्यास रचना होती रही है, लेकिन आंचलिक उपन्यास प्रारंभ करने का श्रेय हिंदी में 'मैला आंचल' को ही जाता है। अपने प्रकाशन के चार दशक से ज्यादा समय बीत जाने पर भी 'मैला आंचल- आज भी हिंदी में आंचलिक उपन्यास के अप्रतिम उदाहरण के रूप में स्थिर है। 'मैला आंचल' का महत्व केवल एक आंचलिक उपन्यास होने तक ही सीमित नहीं है, यह हिंदी का व भारतीय उपन्यास साहित्य का एक अत्यंत श्रेष्ठ उपन्यास भी माना जाता है। इस अर्थ में 'मैला आंचल' का दर्जा क्लासिक रचना का है।

'मैला आंचल की भूमिका मेला आंचल, एक पांचलिक उपन्यास की कथानक है पूर्णिया। 'बिहार राज्य का एक जिला है। इसके एक ओर है नेपाल, दूसरी और पश्चिमी बंगाल। विभिन्न सीमा - रेखाओं से इसकी: मुकम्मल हो जाती है, जब हम दक्खिन में संथाल परगना और आगें मिथिला की सीमा-रेखाएं खींच देते हैं। मैंने इसके एक हिस्से ही गांव को- पिछड़े गांवों का प्रतीक मानकर - इस उपन्यास -क्षेत्र बनाया है। इसमें फूल भी हैं शूल भी, धूल भी है गुलाल भी, फीचड़ भी है चन्दन दरता भी है कुरूपता भी- मैं किसीसे भी दामन बचाकर निकल पाया इसकी सारी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ साहित्य की दह पर आ खड़ा हुआ हूँ पता नहीं अच्छा किया या बुरा।जो भी हो, निष्ठा में कमी महसूस नहीं करता। -फरणीश्वरनाथ रेणु

'गोदान' के बाद हिंदी के जो कुछ सर्वश्रेष्ठ उपन्यास माने जाते हैं, 'मैला आंचल' उनमें से एक है। 'मैला आंचलव अपने अन्य उपन्यासों में रेणु ने बिहार के मिथिला अंचल को आधार बनाकर अपने अंचल के दुःख-सुख, वहाँ के सहन-सहन, संस्कृति, लोकजीवन को अत्यंत कुशलता व कलात्मकता से औपन्यासिक स्वरूप प्रदान किया है। अपने अंचल को अपनी रचनाओं के केंद्र में रख कर प्रस्तुत करने के कारण फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी में आंचलिक उपन्यास की परम्परा के प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित हुए। हिंदी उपन्यास का कोई भी अध्ययन रेणु के उपन्यासों विशेषतः ' मैला आंचल' के अध्ययन के बगैर अधूरा है

मैला आंचल में चर्चित विषयों में साहित्य में आंचलिकता की विशेषताएं व महत्व को समझना मिथिला प्रदेश की सामाजिक सांस्कृतिक ऐतिहासिक और पारिवारिक संबंधों को समझना तथा आज के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता को समझना।

अंधविश्वास और कुप्रथाओं का भयानक परिणीति तथा शिक्षा का महत्व को समझाना। स्त्री, पुरुष, किसान के प्रति विशेष दृष्टिकोण रखते हुए इनकी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना ही रेणु जी का उद्देश्य रहा।

 


HINDI UGC NET MCQ/PYQ PART 10

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