Wednesday, 5 May 2021

UGC NET HINDI नदी के द्वीप---अज्ञेय

 


नदी के द्वीप

हम नदी के द्वीप हैं ।

हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्रोतस्विनी बह जाय ।

वह हमें आकार देती है ।

हमारे कोण गलियाँ अन्तरीप उभार सैकत कूल ,

सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं ।

 माँ है वह । है इसी से हम बने हैं ।

किन्तु हम हैं द्वीप । हम धारा नहीं हैं ।

स्थिर समर्पण है हमारा । हम सदा से द्वीप है स्रोतस्विनी के ।

किन्तु हम बहते नहीं है । क्योंकि बहना रेत होना है ।

हम बहेंगे तो रहेंगे ही नहीं ।

पैर उखड़ेंगे । प्लवन होगा । ढहेंगे । सहेंगे । बह जायेंगे ।

और फिर हम चूर्ण होकर भी कभी क्या धार बन सकते ?

रेत बनकर हम सलिल को तनिक गॅदला ही करेंगे

अनुपयोगी ही बनायेंगे ।

द्वीप हैं हम यह नहीं है शाप । यह अपनी नियति है ।

हम नदी के पुत्र हैं । बैठे नदी की क्रोड़ में ।

वह बृहद् भूखण्ड से हमको मिलाती है ।

और वह भूखण्ड अपना पितर है ।

नदी तुम बहती चलो ।

भूखण्ड से जो दाय हमको मिला है मिलता रहा है ।

माँजती संस्कार देती चलो

यदि ऐसा कभी हो

तुम्हारे आह्लाद से या दूसरों के किसी स्वैराचार से अतिचार से

तुम बढ़ो प्लावन तुम्हारा घरघराता उठे

यह स्रोतस्विनी कर्मनाशा कीर्तिनाशा घोर

काल - प्रवाहिनी बन जाय

तो हमें स्वीकार है वह भी । उसी में रेत होकर

फिर छनेंगे हम । जमेंगे हम । कहीं फिर पैर टेकेंगे ।

कहीं फिर भी खड़ा होगा नये व्यक्तित्व का आकार ।

मात : उसे फिर संस्कार तुम देना । " ( हरी घास पर क्षण भर से )

 

प्रस्तुत कविता नवीन प्रतीकों को समाहित किये हुये है । नदी - सामाजिक चेतना प्रवाह को प्रतीक भूखण्ड समाज का प्रतीक तथा द्वीप व्यक्ति चेतना का प्रतीक है । कलगी बाजरे को कविता के समान यह नदी के द्वीप भी अज्ञेय की अत्यन्त प्रसिद्ध कविता है । नदी के द्वीप कविता में व्यक्ति - चेतना के अस्तित्व तथा संरक्षण का प्रश्न परन्तु इस कविता में स्वेच्छा से अपने जागृत तथा दीप्त व्यक्ति का व्यापक समष्टि को अर्पण है । यह द्वीप सामान्य द्वीप नहीं जन पनडुब्बा समिधा मधु गोरस अंकुर तथा अनेक रूपों में कवि ने उसको विशिष्टता एवं अद्वितीयता का उल्लेख किया है उसे ब्रह्म प्रकृति स्वयंभू कहा है । अपने ऐसे तेजस्वी एवं विश्वास दीप्त व्यक्ति का यह स्वेच्छा से किया गया समाज के प्रति अर्पण है । द्वीप कवि के तेजस्वी व्यक्ति - बोध का प्रतीक तथा पंक्ति समाज या समष्टि का प्रतीक है । व्यक्तिबोध के माध्यम से समष्टि - बोध की अनुभूति स्पष्ट की गयी है । विश्व वेदना की पूरित दो आँखें ही कवि को समष्टि - वेदना से परिचित करा देती है । हमारा व्यष्टि - बोध ही हमें समष्टि बोध तक पहुँचा सकता है बशर्ते वह इतना प्रशस्त हो कि समष्टि उसमें प्रतिबिम्बित हो सके । प्यार और दुलार की नई अनभूतियों को लिए ऋतुराज का आगमन हो गया है । ऋतुराज के आगमन के सहज उल्लास समूचे परिवेश का अत्यन्त आवेगपूर्ण चित्रण किया गया है । दर्द मनुष्य को माँजता है । उसका नया संस्कार करता है । उसे उदार एवं शुभ - चेता बनाता है । दर्द पाप नहीं है । दर्द के वैशिष्ट्य का आकलन पीड़ा भोग के महत्त्व का आकलन इस कविता में हुआ है । सागर तट की साँझ चन्द्रमा की किरणें नीला अपलक आकाश कवि का दर्द के वैशिष्ट्य की सही अनुभूति देते हैं । अत्यन्त मार्मिक भावपूर्ण एवं सशक्त प्रस्तुत कविता है । विधाता द्वारा सूर्य समूची धरती को जीवन देता है परन्तु मनुष्य के रचे हुए सूर्य ( अणु बम ) ने समूची मनुष्यता को भाप बनाकर सोख लिया । हीरोशिमा की धरती पर मानव की जली छायाएँ लिखी हुई हैं । प्रस्तुत कविता अज्ञेय की अत्यन्त प्रसिद्ध एवं चर्चित कविता है ।

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