Wednesday, 5 May 2021

'मैला आंचल' ugc net jrf hindi

'मैला आंचल' फणीश्वरनाथ रेणु का प्रथम उपन्यास है, जो 1954 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास का प्रकाशन उस समय हिंदी साहित्य में एक घटना माना गया था। ' मैला आंचल ' ही भारतीय साहित्य में रेणु के स्थायी महत्व का आधार बन गया है । 

'मैला आंचल' के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मई 1921 को बिहार के पूर्णिया जिला के औराही हिंगना गांव में हुआ था। उनके व्यक्तित्व का विकास केवल सृजनात्मक लेखक के रूप में ही नहीं एक सजग, सक्रिय नागिरक व देशभक्त के रूप में भी हुआ। 1942 के 'भारत छोड़ो' संग्राम में सक्रिय भागीदारी कर उन्होंने एक स्वाधीनता सेनानी के रूप में पहचान अपने यौवन में ही बनाई। स्वाधीनता की इस चेतना के साथ रेणु दमन व शोषण के आजीवन विरोधी रहे। अपने पड़ोसी नेपाल की जनता को राजशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए भी रेणु ने वहाँ की जनता द्वारा शुरू की गई सशस्त्र क्रांति व राजनीति में सक्रिय हिस्सा लिया। इसी कड़ी में 1985-88 की आपात स्थिति का उन्होंने कड़ा विरोध किया। आपात् स्थिति के विरोध में उन्होंने पद्मश्री की मानद् राष्ट्रीय उपाधि लौटा दी। उन्हें पुलिस यातना भी झेलनी पड़ी और जेल यात्रा भी करनी पड़ी। रेणु के संघर्ष को 23 मार्च 1988 को आपात् स्थिति के हटने में सफलता तो मिली लेकिन वे स्वयं बहुत देर जीवित नहीं रह पाए। रोग ने उनका शरीर जर्जर कर दिया था और 11 अप्रैल 1977 को उनका देहावसान हो गया। रेणु 1952-53 में भी दीर्घकाल तक रोगग्रस्त रहे थे। इसी कारण वे सक्रिय राजनीति से हटकर साहित्य सृजन की ओर अधिक झुके और साहित्य सृजन में भी 1954 में ' मैला आंचल के प्रकाशन ने उन्हें शीर्षस्थ हिंदी लेखकों में स्थान दिला दिया। 

'मैला आंचल' के बाद उनके कुछ और उपन्यास प्रकाशित हुए- 'परती परिकथा', दीर्घतपा', 'कलंक मुक्ति, 'जुलूस और 'पल्टूबाबू रोड' उनके बाद के उपन्यास हैं। रेणु जितने प्रसिद्ध उपन्यासकार हुए , लगभग उतने ही प्रसिद्ध वे कहानीकार भी हैं। 'ठुमरी' अगिनखोर', 'आदिम रात्रि की महक', 'एक श्रावणी दोपहरी की धूप', 'अच्छे आदमी' आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं। उनकी कहानी पर आधारित फिल्म 'तीसरी कसम' ने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दिलाई। फणीश्वरनाथ रेणु के कुछ संस्मरण भी प्रसिद्ध हुए हैं: 'ऋणकुल धनजल', ' वन-तुलसी की गंधी, 'श्रुत अश्रुत पूर्व' उनके संस्मरण हैं। मैला आंचल के प्रकाशन से हिंदी में आंचलिक उपन्यास की धारा का प्रारंभ भी माना जाता है, यद्यपि इससे पूर्व भी अंचल विशेष के आधार बनाकर हिंदी में उपन्यास रचना होती रही है, लेकिन आंचलिक उपन्यास प्रारंभ करने का श्रेय हिंदी में 'मैला आंचल' को ही जाता है। अपने प्रकाशन के चार दशक से ज्यादा समय बीत जाने पर भी 'मैला आंचल- आज भी हिंदी में आंचलिक उपन्यास के अप्रतिम उदाहरण के रूप में स्थिर है। 'मैला आंचल' का महत्व केवल एक आंचलिक उपन्यास होने तक ही सीमित नहीं है, यह हिंदी का व भारतीय उपन्यास साहित्य का एक अत्यंत श्रेष्ठ उपन्यास भी माना जाता है। इस अर्थ में 'मैला आंचल' का दर्जा क्लासिक रचना का है।

'मैला आंचल की भूमिका मेला आंचल, एक पांचलिक उपन्यास की कथानक है पूर्णिया। 'बिहार राज्य का एक जिला है। इसके एक ओर है नेपाल, दूसरी और पश्चिमी बंगाल। विभिन्न सीमा - रेखाओं से इसकी: मुकम्मल हो जाती है, जब हम दक्खिन में संथाल परगना और आगें मिथिला की सीमा-रेखाएं खींच देते हैं। मैंने इसके एक हिस्से ही गांव को- पिछड़े गांवों का प्रतीक मानकर - इस उपन्यास -क्षेत्र बनाया है। इसमें फूल भी हैं शूल भी, धूल भी है गुलाल भी, फीचड़ भी है चन्दन दरता भी है कुरूपता भी- मैं किसीसे भी दामन बचाकर निकल पाया इसकी सारी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ साहित्य की दह पर आ खड़ा हुआ हूँ पता नहीं अच्छा किया या बुरा।जो भी हो, निष्ठा में कमी महसूस नहीं करता। -फरणीश्वरनाथ रेणु

'गोदान' के बाद हिंदी के जो कुछ सर्वश्रेष्ठ उपन्यास माने जाते हैं, 'मैला आंचल' उनमें से एक है। 'मैला आंचलव अपने अन्य उपन्यासों में रेणु ने बिहार के मिथिला अंचल को आधार बनाकर अपने अंचल के दुःख-सुख, वहाँ के सहन-सहन, संस्कृति, लोकजीवन को अत्यंत कुशलता व कलात्मकता से औपन्यासिक स्वरूप प्रदान किया है। अपने अंचल को अपनी रचनाओं के केंद्र में रख कर प्रस्तुत करने के कारण फणीश्वरनाथ रेणु हिंदी में आंचलिक उपन्यास की परम्परा के प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित हुए। हिंदी उपन्यास का कोई भी अध्ययन रेणु के उपन्यासों विशेषतः ' मैला आंचल' के अध्ययन के बगैर अधूरा है

मैला आंचल में चर्चित विषयों में साहित्य में आंचलिकता की विशेषताएं व महत्व को समझना मिथिला प्रदेश की सामाजिक सांस्कृतिक ऐतिहासिक और पारिवारिक संबंधों को समझना तथा आज के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता को समझना।

अंधविश्वास और कुप्रथाओं का भयानक परिणीति तथा शिक्षा का महत्व को समझाना। स्त्री, पुरुष, किसान के प्रति विशेष दृष्टिकोण रखते हुए इनकी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना ही रेणु जी का उद्देश्य रहा।

 


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