भाषा की परिभाषा/ हिंदी भाषा की विशेषता/ UGC/NET/JRF/PYQ/MCQA
'भाषा ' शब्द संस्कृत भाष् धातु से निष्पन्न है जिसका अर्थ है -'भाष व्यक्तायां वाचि' अर्थात् उक्त वाणी। ' भाष्यते व्यक्तवाग् रूपेण अभिव्यज्यते इति भाषा'
अर्थात् भाषा उसे
कहते है जो व्यक्त वाणी के रूप में अभिव्यक्ति की जाती है ।
भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों ने भाषा की परिभाषा निम्न
ढंग से प्रस्तुत कीः-
भारतीय विद्वानः-
"व्यक्ता वाचि वर्णा येषा त इमे व्यक्तवाचः "
अर्थात् जो वाणी वर्गों में व्यक्त हो उसे भाषा कहते हैं ।
-------पतंजलि ।
"भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली भाँति प्रकट
कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकते हैं ।---- कामता प्रसाद'
गुरु'
।
“मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और
मति का आदान - प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है उसे
भाषा कहते है । " --- डॉ० श्याम सुन्दरदास ।
"भाषा मनुष्यों की उस चेष्टा या व्यापार को कहते है ,
जिससे मनुष्य अपने
उच्चारणोपयोगी शरीरावयवों से उच्चारण किये गये वर्णात्मक या व्यक्त शब्दों द्वारा
अपने विचारों को प्रकट करते हैं।" --- डॉ . मंगलदेव शाखी ।
"जिन ध्वनि चिह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार -
विनिमय करता है , उनको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं । " ----- बाबू राम
सक्सेना
"अर्थवान, कण्ठोद्गीर्ण ध्वनि - समष्टि ही भाषा है । " - सुकुमार
सेन ।
“भाषा निश्चित प्रयत्न के फलस्वरूप मनुष्य के मुख से निःसृत
वह सार्थक ध्वनि समष्टि है, जिसका विश्लेषण और अध्ययन हो सके । " --- डॉ० भोलानाथ
तिवारी ।
“भाषा यादृच्छिक, रूढ़ उच्चारित संकेत की वह प्रणाली है जिसके माध्यम से
मनुष्य परस्पर विचार - विनिमय सहयोग अथवा भावाभिव्यक्ति करते है । " -----
आचार्य देवेन्द्र नाथ शर्मा
"ध्वन्यात्मक - शब्दों द्वारा हृद्गत भावों तथा
विचारों का प्रकटीकरण ही भाषा है ।" ---- डॉ० पाण्डुरंग दामोदर गुले ।
पाश्चात्य विद्वानः---
"भाषा और कुछ नहीं है ,
केवल मानव की चतुर
बुद्धि द्वारा आविष्कृत एक ऐसा उपाय है जिसकी मदद से हम अपने विचार सरलता और तत्परता
से दूसरों पर प्रकट कर सकते हैं और जो चाहते हैं कि इसकी व्याख्या प्रकृति की उपज
के रूप में नहीं , बल्कि मनुष्य कृत पदार्थ के रूप में करना उचित है । —
मैक्समूलर ।
"ध्वन्यात्मक - शब्दों द्वारा विचारों का प्रकटीकरण ही
भाषा है ।-----हेनरी स्वीट ।
"भाषा उस स्पष्ट ,
सीमित तथा सुसंगठित
ध्वनि को कहते हैं जो अभिव्यंजना के लिए नियुक्त की जाती है । " ---- क्रोचे
"भाषा एक प्रकार का चिह्न है ,
चिह्न से तात्पर्य उन
प्रतीकों से है , जिनके द्वारा मनुष्य अपमा विचार दूसरों पर प्रकट करता है ।
ये प्रतीक भी कई प्रकार के होते हैं । जैसे नेत्रग्राहा ,
श्रोतग्राह्य एवं
स्पर्शग्राह्य । वस्तुत : भाषा की दृष्टि से श्रोतग्राह्य प्रतीक ही सर्वश्रेष्ठ
हैं । "----- वांद्रेये
“मनुष्य ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा अपना विचार प्रकट करता है
। मानव मस्तिष्क वस्तुत : विचार प्रकट करने के लिए ऐसे शब्दों का निरन्तर उपयोग
करता है । इस प्रकार के कार्य - कलाप को ही भाषा की संज्ञा दी जाती है । " ---ओत्तो
येस्पर्सन ।
"विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त एवं स्पष्ट
ध्वनि संकेतों का व्यवहार किया जाता है , उन्हें भाषा कहते हैं ।'–
गार्डिनर ।
"भाषा यादृच्छिक ध्वनि संकेतों की वह प्रणाली है जिसके
माध्यम से मानव परस्पर विचारों का आदान - प्रदान करता है ।" - ब्लॉख तथा
ट्रेगर ।
"भाषा यादृच्छिक ध्वनि - संकेतों की वह पद्धति है
जिसके द्वारा मानव समुदाय परस्पर सहयोग एवं विचार विनिमय करते हैं । " -
स्नुतेवाँ ..
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