Thursday, 13 May 2021

आदिकाल/प्रतिनिधि कवि/प्रसिद्ध ग्रंथ/UGC/NET/JRF/HINDI SHAHITYA

 वीरगाथा-काल के प्रतिनिधि कवि का परिचय दीजिए ।

पृथ्वीराज चौहान के समकालीन, सामन्त और दरबारी कवि चन्दवरदायी वीरगाथा काल के प्रतिनिधि कवि थे । विद्वानों के अनुसार ये भी पृथ्वीराज के जन्म के सं . 1206 वि. में पैदा हुए थे । ये जगात गोत्र के भट्ट ब्राह्मण थे । इनका जन्म - स्थान लाहौर था । इन्हें षड् भाषा व्याकरण , काव्य , साहित्य आदि का ज्ञान था । ये सभा , युद्ध , आखेट तथा यात्रादि में सदा महाराज पृथ्वीराज के साथ ही रहते थे । जब शहाबुद्दीन गौरी पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर गजनी ले गया तो चन्दवरदायी भी ' पृथ्वीराज रासो ' का रचना कार्य अपने पुत्र जल्हण को सौंपकर उन्हीं के साथ गजनी चल दिये " पुस्तक जल्हण हत्थ दै चलि गज्जनि नृप काज । " रचना - हिन्दी के प्रथम प्रबन्ध - काव्य ' पृथ्वीराज रासो ' की रचना चन्दवरदायी ने की , जिसकी प्रामाणिकता आज भी विद्वानों के लिए विवाद का विषय बना हुआ है ।

आदिकाल के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ का परिचय दीजिए ।  

वीरगाथा - काल के प्रतिनिधि कवि चन्दवरदायी द्वारा रचित हिन्दी का प्रथम महाकाव्य ' पृथ्वीराज रासो ' वीरगाथा - काल की सर्वश्रेष्ठ रचना है । इसकी प्रामाणिकता भले ही विद्वानों के बीच विवादग्रस्त रही हो , किन्तु इस महाकाव्य का काव्य सौन्दर्य सभी ने एकमत से स्वीकार किया है । इस महाकाव्य के चरितनायक पृथ्वीराज चौहान हैं । संयोगिता स्वयंवर के प्रसंग में शृंगार रस की अविरल धारा बही है , तो चरित - नायक द्वारा लड़े गये युद्धों में वीर रस मूर्तिमान हो उठा है । रासोकार ने अपने इस काव्य ग्रन्थ में प्रायः सभी अलंकारों का प्रयोग किया है और 68 प्रकार के छन्द प्रयुक्त किये हैं । इसकी भाषा हिन्दी , गुजराती तथा राजस्थानी का मिला - जुला रूप है । यह रासो - ग्रन्थ हिन्दी की अमूल्य निधि है ।

निर्गुण भक्ति काव्य धारा के प्रमुख कवियों के नाम एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिये ।  

निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं ( 1 ) नामदेव - नामदेव के पद । ( 2 ) कबीर - ' साखी ' , ' सबद ' , ' रमैनी ' , ' बीजक ' । ( 3 ) धर्मदास - पदों की रचना । ( 4 ) दादूदयाल – ' हरडेवाणी ' एवं ' अंग - वध ' । ( 5 ) सुन्दरदास – ' सुन्दर - ग्रन्थावली ' तथा ' सुन्दर - विलास अथवा सवैया '। ( 6 ) मलूकदास – ' रतनखान ' और ' ज्ञान - बोध ' । ( 7 ) नानक - ' गुरु ग्रन्थसाहब ' । ( 8 ) संत रैदास – ' रैदास की बानी '

वीसलदेव रासो - वीसलदेव रासो के रचयिता नरपति नाल्ह ने इस ग्रन्थ की रचना सं . 1212 विक्रमी में की थी । इस ग्रन्थ के चरितनायक विग्रहराज चतुर्थ एक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं , किन्तु अन्य रासो काव्यों की भाँति इसमें भी अनेक ऐतिहासिक भ्रान्तियाँ हैं जो यह प्रमाणित करती हैं कि इस ग्रन्थ में तथ्य कम हैं और कल्पना अधिक है । वीसलदेव रासो की रचना यद्यपि आदिकाल में हुई है तथापि अन्य रासो काव्यों की भाँति यह वीरगाथात्मक कृति न होकर एक विरह काव्य है , जिसका मूलरूप वस्तुतः ' गेय काव्य ' का था । गेय काव्य होने के कारण ही इसका स्वरूप परिवर्तित होता रहा । वीसलदेव रासो आदिकाल की एक श्रेष्ठ काव्यकृति है , जिसे चार खण्डों में विभक्त किया गया है । प्रथम खण्ड में अजमेर के राजा विग्रहराज चतुर्थ ( वीसलदेव ) का परेमारवंशी राजा भोज की कन्या राजमती से विवाह दिखाया गया है । द्वितीय खण्ड में रानी के व्यंग्य से रुष्ट राजा के उड़ीसा चले जाने की कथा है । बारह वर्ष तक वीसलदेव उड़ीसा में रहता है और उसके विरह में रानी राजमती अत्यधिक वेदना का अनुभव करती है । रानी का यह विरह वृत्तान्त तृतीय खण्ड में अलंकृत किया गया है । चतुर्थ खण्ड में इन दोनों के पुनर्मिलन का वृत्तान्त है । वीसलदेव रासो 125 छन्दों की एक प्रेमपरक रचना है जिसमें सन्देश रासक की भाँति विरह की प्रधानता है । विरह के स्वाभाविक चित्रण के साथ - साथ संयोग के मर्मस्पर्शी चित्र भी इसमें अंकित किये गये हैं । कवि ने प्रकृति के रमणीय चित्र अंकित करके इस काव्यकृति के महत्त्व को द्विगुणित कर दिया है । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने वीसलदेव रासो की भाषा को राजस्थानी ' माना है जिसका व्याकरण अपभ्रंश के अनुरूप है ।

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