आचार्य शुक्ल के कथन---
छायावाद का सामान्यतः अर्थ हुआ प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यंजना
करने वाली छाया के रुप में अप्रस्तुत का कथन। "
"छायावाद का केवल पहला अर्थात मूल अर्थ लिखकर तो हिंदी
काव्यक्षेत्र में चलने वाली श्री महादेवी वर्मा ही है । "
'पंत, प्रसाद, निराला
इत्यादि और सब कवि पतीकपद्धति या चित्रभाषा शैली की दृष्टि से ही छायावादी कहलाए ।'
"अन्योक्ति
पद्धति का अवलंबन भी छायावाद का एक विशेष लक्षण हुआ । "
'छायावाद
का चलन द्विवेदी काल की रूखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ था ।"
'लाक्षणिक
और व्यंजनात्मक पद्धति का प्रगल्भ और प्रचुर विकास छायावाद की काव्यशैली की असली विशेषता
है ।
"छायावाद की प्रवृति अधिकतर प्रेमगीतात्मक है । ' जयशंकर
प्रसाद की कृति आंसू को श्रृंगारी विपलंभ कहा है।
आचार्य शुक्ल ने फुटकर... ज्ञानाश्रयी शाखा और प्रेमाश्रयी शाखा
नामकरण आचार्य रामचंद्र शुक्ल की देन है ।
"यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी
है और कवि की आवुकता का परिचय देती है..
सुदामा चरित के लिए-- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने त्रिवेणी में
तीन महाकवियों की समीक्षाएँ प्रस्तुत की है सूरदास तुलसीदास और जायसी की"
वात्सल्य के क्षेत्र में जितना अधिक उदघाटन सुर ने अपनी बंद
आंखों नहीं । इन क्षेत्रों का तो वे कोना - कोना झांक आए ।
कवि ने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भूषण को हिन्दू जाति का प्रतिनिधि
कवि कहा है, छत्रशाल और शिवाजी की वीरतापूर्ण रचनाओं के कारण ।
आचार्य शुक्ल में घनानंद को साक्षात रस मूर्ति कहा है ।
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