Tuesday, 11 May 2021

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के उपयोगी कथनःugc net jrf most imp PYQ

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के उपयोगी कथनः

विलक्षण बात यह है कि आधुनिक गद्य साहित्य की परम्परा का प्रवर्तन नाटक से हुआ। यदि प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है, तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता।

इस वेदना को लेकर उन्होंने हृदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखी, जो लोकोत्तर हैं । कहाँ तक वे वास्तविक अन्नुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना , यह नहीं कहा जा सकता।

छायावाद का केवल पहला अर्थात मूल अर्थ लिखकर तो हिन्दी काव्य - क्षेत्र में चलने वाली सुश्री महादेवी वर्मा, इनकी रहस्यवादी रचनाओं को देख चाहेतो यह कहे कि इनकी मधुवर्षा के मानस प्रचार के लिए रहस्यवाद का परदा मिल गया अथवा यों कहें कि इनकी सारी प्रणयानुभूति सीम पर से कूदकर असीम पर जा रही।  

शुक्ल जी जयशंकर प्रसाद की कृति 'आंसू' को ' श्रृंगारी विप्रलम्भकहा है ।  प्रसाद जी ने अपना क्षेत्र प्राचीन हिन्दू काल के भीतर चुना और प्रेमी जी ने मुस्लिम काल के भीतर ।

प्रसाद के नाटकों में स्कन्दगुप्त श्रेष्ठ है और प्रेमी के नाटकों में रक्षाबन्धन । इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी । ( चिंतामणि त्रिपाठी के बारे में )भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी । इस ग्रंथ को इन्होंने वास्तव में आचार्य के रूप में लिखा है, कवि के रूप में नहीं । ( महाराजा जसवंत सिंह के ग्रंथ ' भाषा भूषण ' के बारे में )

बिहारी सतसई के संदर्भ में--इसका एक एक दोहा हिन्दी साहित्य में एक-एक रत्न माना जाता है । इनके दोहे क्या हैं , रस के छोटे छोटे छींटे हैं । इसमें तो रस के ऐसे छीटे पड़ते हैं जिनसे हृदय कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है ।  

जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह मुक्तक की रचना में सफल होगा ।  

बिहारी की भाषा चलती होने पर भी साहित्यिक है ।  कविता उनकी श्रृंगारी है , पर प्रेम की उच्च भूमि पर नहीं पहुंचती, नीचे ही रह जाती है ।

मतिराम के संदर्भ में-- इनका सच्चा कवि हृदय था । रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों सरल व्यंजना नहीं मिलती

"प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और वीर पथिक तथा जंबादानी का दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ ।  

घनानंद के लिए -- "भाषा के लक्षक एवं व्यंजक बल की सीमा कहां तक है इसकी पूरी परख इन्हीं को थी ।

"रीतिकाल के कवियों में यह बड़े ही प्रतिभा संपन्न कवि थे ।

आचार्य देव के लिए-- आचार्य शुक्ल के अनुसार बोधा एक रसिक कवि थे ।  

हिंदी रीति ग्रंथों की अखंड परंपरा एवं रीति काल का आरंभ आचार्य शुक्ल चिंतामणि से मांगते हैं।  

केशव को "कठिन काव्य का प्रेत" शुक्ल ने उनकी क्लिष्टता के कारण कहा है ।

शुक्ल ने प्रथम आचार्य चिंतामणि को माना है । रीतिकाल नामकरण आचार्य शुक्ल का दिया हुआ है । उन्होंने मध्यकाल के दूसरे भाग को रीतिकाल कहा है ।

आचार्य शुक्ल का प्रथम निबंध साहित्य है जो 1904 ईस्वी में सरस्वती में प्रकाशित हुआ था ।

 

शुक्ल के चिंतामणि वर्तमान में चार खंड है ।

प्रथम खंड में 17 और द्वितीय खंड में तीन निबंध है । आचार्य शुक्ल को कलात्मक निबंध का जनक माना जाता है । आचार्य शुक्ल को निबंध सम्राट कहा जाता है ।

आचार्य शुक्ल ने प्रताप नारायण मिश्र और बालकृष्ण भट्ट की तुलना एडिशन और स्टील से की है ।  इनका हृदय कवि का, मस्तिष्क आलोचक का और जीवन अध्यापक का था।

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