Thursday, 13 May 2021

राजभाषा हिन्दी/संविधान के भाषाएँ UGC/NET/JRF/HINDI/MCQ/PYQ


14 सितम्बर , 1949 ई ० को भारत के संविधान में हिन्दी को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गई।

भारतीय संविधान के भाग -17 में अनुच्छेद 343-351 तक राजभाषा का संविधान में प्रावधान किया गया है तथा संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई हैं । जो निम्नलिखित हैं - 1. असमिया 2. बंगला 3. बोडो 4. डोगरी 5. गुजराती 6. हिन्दी 7. कन्नड़ 8. कश्मीरी 9. कोंकणी 10. मैथिली 11.मलयालम 12. मणिपुरी 13. मराठी 14. नेपाली 15. उड़िया 16. पंजाबी 17. संस्कृत 18. सन्थाली 19. सिन्धी 20. तमिल 21. तेलगु 22. उर्दू ।

मूल संविधान में 14 भाषाएँ थीं । संविधान ( 21 वाँ संशोधन ) अधिनियम , 1967 द्वारा सिन्धी के जोड़े जाने पर यह संख्या 15 हो गई थी । 71 वें संशोधन अधिनियम , 1992 से कोंकणी , नेपाली और मणिपुरी को सम्मिलित कर दिए जाने पर यह संख्या 18 हो गई है । 92 वें संशोधन अधिनियम 2003 ने इसमें बोडो , डोगरी , मैथिली और सन्थाला को सम्मिलित कर दिया गया है । जिससे अब यह संख्या बढ़कर 22 हो गई है ।

संविधान में हिन्दी भाषा सम्बन्धी उपबन्धः-

अनुच्छेद 343- संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी तथा भारतीय अंकों का रूप अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा । किन्तु संविधान में अनुमति प्रदान की गई कि 15 वर्ष की अवधि अर्थात् 1965 ई ० तक अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता रहेगा तथा इस अवधि की समाप्ति के बाद भी संसद विधि द्वारा अंग्रेजी भाषा या अंकों के देवनागरी रूप का ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग कर सकेगी जो विधि में विनिर्दिष्ट किया जाय ।

अनुच्छेद 344- राष्ट्रपति पाँच वर्ष के बाद और उसके बाद हर 10 वर्ष समाप्ति पर राजभाषा आयोग का गठन करेगा । आयोग का कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को निम्नलिखित के बारे में सिफारिश करे -1.शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग ।

2. शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी के प्रयोग पर निर्बन्धन ।  

3. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में और संघ की और राज्य की अधिनियमितियों के उनके अधीन बनाए गए अधीनस्थ विधान के पाठों में प्रयोग की जाने वाली भाषा ।  

4. संघ के किसी एक या अधिक विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंकों के रूप ।

5. संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा ।

आयोग से यह अपेक्षा की गई कि वह भारत की औद्योगिक सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक ध्यान रखेगा ।

अनुच्छेद 345- किसी राज्य का विधान मण्डल , विधि द्वारा , उस राज्य में इस्तेमाल होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिन्दी को उस राज्य के सभी या किन्हीं शासकीय प्रयोजनों के लिए अंगीकार कर सकता है । जब तक ऐसा नहीं किया जाता , अंग्रेजी का प्रयोग उसी प्रकार किया जाता रहेगा जिस प्रकार उससे ठीक पहले किया जा रहा था ।

अनुच्छेद 346 - संघ में शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किए जाने के लिए तत्समय प्राधिकृत भाषा अर्थात् अंग्रेजी एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच तथा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की भाषा होगी । यदि दो या अधिक राज्य यह करार करते हैं कि उन राज्यों के बीच पत्रादि की भाषा हिन्दी होगी तो ऐसे पत्रादि के लिए उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा ।

अनुच्छेद 347-  यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह माँग करे कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को उस राज्य में दूसरी भाषा के रूप में मान्यता दी जाए तो राष्ट्रपति उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में शासकीय प्रयोजन के लिए उस भाषा को मान्यता देने का उपबन्ध कर सकता है ।  

अनुच्छेद 348- जब तक संसद विधि द्वारा उपबन्ध न करे , तब तक उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में सभी कार्यवाहियाँ अंग्रेजी भाषा में होगी । इसके अलावा संघ तथा राज्यों के स्तरों पर सभी विधेयकों , संशोधनों , अधिनियमों , अध्यादेशों , आदेशों , नियमों , विनियमों तथा उपनियमों के प्राधिकृत पाठ भी केवल अंग्रेजी में ही होंगे । लेकिन किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिन्दी भाषा के प्रयोग को या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त किसी भाषा के प्रयोग को प्राधिकृत कर सकेगा । लेकिन अनिवार्य है कि निर्णय डिक्रियाँ तथा आदेश अंग्रेजी में ही दिये जाते रहेंगे ।

अनुच्छेद 349- संविधान के प्रारम्भ से 15 वर्ष की अवधि के दौरान प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिए उपबन्ध करने वाला कोई विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति , जोकि वह राजभाषा आयोग तथा भाषा समिति के प्रतिवेदन पर विचार करके देगा , के बाद ही संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है ।

अनुच्छेद 350-1. प्रत्येक व्यक्ति किसी शिकायत को दूर करने के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को , यथास्थिति , संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा ।

2. किसी राज्य में भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा के लिए उचित प्रबन्ध किया जाएगा ।

3. भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी नियुक्त करेगा । यह अधिकारी उस वर्ग के भाषायी हितों की रक्षोपायों से सम्बन्धित राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देगा तथा राष्ट्रपति इसे संसद में रखवाएगा और सम्बन्धित राज्यों की सरकारों को भिजवाएगा ।

अनुच्छेद 351- संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार करे , उसका विकास करे ताकि वह भारत की मिली - जुली संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्ताक्षेप किए बिना आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं के प्रयुक्त रूप शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो , वहाँ उसके शब्द - भण्डार के लिए मुख्यतया संस्कृत से और गौणतया अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे ।

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