Thursday, 13 May 2021

 देवनागरी लिपि की उत्पत्ति// वैशिष्ट्य// सुधार//UGC/NET/JRF/HINDI

ब्राह्मी की उत्तरी शैली से 4-5वीं सदी में गुप्त लिपि तथा गुप्त लिपि से छठी सदी में कुटिल लिपि विकासित हुई है । इसी कुटिल लिपि से 9 वीं सदी के लगभग नागरी के प्राचीन रूप का विकास हुआ, जिसे प्राचीन नागरी कहते हैं ।

देवनागरी लिपि के नाम के विषय में अनेक मत हैं , जो इस प्रकार हैं_-

(1)   प्रसिद्ध बौद्धग्रन्थ ' ललित - विस्तार ' में वर्णित ' नागलिपि ' से ' नागरी ' नामकरण हुआ ।

(2)   नगरों में प्रचलित होने से ' देवनागरी ' नाम पड़ा ।

(3)   पाटलिपुत्र को ' नागर ' और चन्द्रगुप्त को ' देव ' कहने के कारण देवनागरी ' नामकरण किया गया ।

(4)   श्री आर ० श्याम शास्त्री के अनुसार, “ देवताओं की प्रतिमाओं के बनने के पूर्व उनकी उपासना सांकेतिक चिह्नों द्वारा होती थी , जो कई प्रकार के त्रिकोणादि यन्त्रों के मध्य में लिखे जाते थे । वे यन्त्र देवनागर 'कहलाते है , और उनके मध्य लिखे जाने वाले अनेक प्रकार के सांकेतिक चिह्न वर्ण माने जाने लगे । इसी से उनका नाम 'देवनागरी' हुआ ।"

(5)   गुजरात के नागर ब्राह्मणों के नाम पर 'नागरी' नाम पड़ा ।

(6)   डॉ० धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार मध्य युग के स्थापत्य की एक शैली का नाम नागर होने से 'नागरी ' नाम पड़ा ।

(7)   देवनागरी का सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात के राजा जयभट्ट ( 7 वीं -8 वीं सदी ई . ) के एक शिलालेख में हुआ है ।

 

 

देवनागरी लिपि का वैशिष्ट्य

Ø देवनागरी लिपि आक्षरिक है ।

Ø देवनागरी में एक वर्ण के लिए ध्वनि है अर्थात् प्रत्येक अक्षर उच्चरित होते है ।

Ø देवनागरी की वर्णमाला का वर्णक्रम वैज्ञानिक है ।

 

देवनागरी लिपि में सुधार

Ø सर्वप्रथम बालगंगाधर तिलक ने सन् 1904 ई ० में अपने पत्र ' केसरी ' के लिए 1926 टाइपों की छटाई करके 190 टाइपों का एक फाँट , जिसे ' तिलक फाँट ' भी कहते हैं , बनाकर देवनागरी लिपि सुधार का आरम्भ किया ।

Ø सर्वप्रथम महाराष्ट्र के सावरकर बन्धुओं ने ' ' की बारह खड़ी तैयार की तथा महात्मा गाँधी के ' हरिजन सेवक ' में इसका प्रयोग हुआ ।

Ø सर्वप्रथम डॉ ० श्याम सुन्दर दास ने पंचमाक्षर ( ङ् , , , , म् ) के स्थान पर अनुस्वार के प्रयोग का प्रस्ताव रखा ।

Ø डॉ० गोरखप्रसाद ने मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ लिखने का प्रस्ताव रखा । श्रीनिवास ने सुझाव दिया कि महाप्राण वर्णों के बदले अल्पप्राण वर्गों के नीचे कोई चिह्न लगा दिया जाए जिससे वर्गों की संख्या में कमी आएगी ।  

Ø हिन्दी साहित्य सम्मेलन के इन्दौर के 24 वें अधिवेशन में सन् 1935 ई ० में महात्मा गाँधी के सभापतित्व में ' नागरी लिपि सुधार समिति का गठन किया गया ।

Ø नागरी लिपि सुधार समिति के संयोजक काका कालेलकर थे । सम्मेलन में कुल 14 सुझावों को स्वीकार किया गया था ।

Ø नागरी प्रचारिणी सभा ने सन् 1945 ई ० में नागरी लिपि सुधार हेतु एक समिति का गठन किया ।

Ø उत्तर प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई , 1947 में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में नागरी लिपि सुधार समिति का निर्माण किया ।  

Ø इस समिति की कुल 9 बैठकें हुई तथा समिति ने 25 मई , 1949 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की । नरेन्द्र देव समिति की रिपोर्ट के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 28-29 नवम्बर सन् 1953 ई ० में नागरी लिपि सुधार सम्बन्धी सुझाओं पर विचार करने के लिए लखनऊ में ' लिपि सुधार - परिषद ' का गठन किया और विभिन्न राज्यों के मन्त्रियों और विद्वानों को परिषद में आमन्त्रित किया ।

Ø उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित ' लिपि सुधार परिषद ' की बैठक की अध्यक्षता तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने की थी ।  

Ø डॉ० सुनीति कुमार चटर्जी ने कतिपय परिवर्तनों के साथ देवनागरी लिपि के स्थान पर रोमन लिपि को स्वीकार कर लेने का सुझाव दिया था ।

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