देवनागरी लिपि की उत्पत्ति// वैशिष्ट्य// सुधार//UGC/NET/JRF/HINDI
ब्राह्मी की उत्तरी शैली से 4-5वीं सदी में गुप्त लिपि तथा
गुप्त लिपि से छठी सदी में कुटिल लिपि विकासित हुई है । इसी कुटिल लिपि से 9 वीं
सदी के लगभग नागरी के प्राचीन रूप का विकास हुआ,
जिसे प्राचीन नागरी
कहते हैं ।
देवनागरी लिपि के नाम के विषय में अनेक मत हैं ,
जो इस प्रकार हैं_-
(1) प्रसिद्ध बौद्धग्रन्थ '
ललित - विस्तार '
में वर्णित '
नागलिपि '
से '
नागरी '
नामकरण हुआ ।
(2) नगरों में प्रचलित होने से '
देवनागरी '
नाम पड़ा ।
(3) पाटलिपुत्र को ' नागर ' और चन्द्रगुप्त को ' देव ' कहने के कारण ‘ देवनागरी ' नामकरण किया गया ।
(4) श्री आर ० श्याम शास्त्री के अनुसार,
“ देवताओं की प्रतिमाओं
के बनने के पूर्व उनकी उपासना सांकेतिक चिह्नों द्वारा होती थी ,
जो कई प्रकार के
त्रिकोणादि यन्त्रों के मध्य में लिखे जाते थे । वे यन्त्र देवनागर 'कहलाते है , और उनके मध्य लिखे जाने वाले अनेक प्रकार के सांकेतिक चिह्न
वर्ण माने जाने लगे । इसी से उनका नाम 'देवनागरी' हुआ ।"
(5) गुजरात के नागर ब्राह्मणों के नाम पर 'नागरी' नाम पड़ा ।
(6) डॉ० धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार मध्य युग के स्थापत्य की एक
शैली का नाम नागर होने से 'नागरी ' नाम पड़ा ।
(7) देवनागरी का सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात के राजा जयभट्ट ( 7
वीं -8 वीं सदी ई . ) के एक शिलालेख में हुआ है ।
देवनागरी लिपि का
वैशिष्ट्य—
Ø
देवनागरी
लिपि आक्षरिक है ।
Ø
देवनागरी
में एक वर्ण के लिए ध्वनि है अर्थात् प्रत्येक अक्षर उच्चरित होते है ।
Ø
देवनागरी
की वर्णमाला का वर्णक्रम वैज्ञानिक है ।
देवनागरी
लिपि में सुधार—
Ø
सर्वप्रथम
बालगंगाधर तिलक ने सन् 1904 ई ० में अपने पत्र '
केसरी '
के लिए 1926 टाइपों
की छटाई करके 190 टाइपों का एक फाँट , जिसे ' तिलक फाँट ' भी कहते हैं , बनाकर देवनागरी लिपि सुधार का आरम्भ किया ।
Ø
सर्वप्रथम
महाराष्ट्र के सावरकर बन्धुओं ने ' अ ' की बारह खड़ी तैयार की तथा महात्मा गाँधी के '
हरिजन सेवक '
में इसका प्रयोग हुआ
।
Ø
सर्वप्रथम
डॉ ० श्याम सुन्दर दास ने पंचमाक्षर ( ङ् , ज , ण , न , म् ) के स्थान पर अनुस्वार के प्रयोग का प्रस्ताव रखा ।
Ø डॉ० गोरखप्रसाद ने मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ
लिखने का प्रस्ताव रखा । श्रीनिवास ने सुझाव दिया कि महाप्राण वर्णों के बदले
अल्पप्राण वर्गों के नीचे कोई चिह्न लगा दिया जाए जिससे वर्गों की संख्या में कमी
आएगी ।
Ø
हिन्दी
साहित्य सम्मेलन के इन्दौर के 24 वें अधिवेशन में सन् 1935 ई ० में महात्मा गाँधी
के सभापतित्व में ' नागरी लिपि सुधार समिति का गठन किया गया ।
Ø
नागरी
लिपि सुधार समिति के संयोजक काका कालेलकर थे । सम्मेलन में कुल 14 सुझावों को
स्वीकार किया गया था ।
Ø
नागरी
प्रचारिणी सभा ने सन् 1945 ई ० में नागरी लिपि सुधार हेतु एक समिति का गठन किया ।
Ø
उत्तर
प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई , 1947 में आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में नागरी लिपि
सुधार समिति का निर्माण किया ।
Ø
इस
समिति की कुल 9 बैठकें हुई तथा समिति ने 25 मई ,
1949 को अपनी रिपोर्ट
प्रस्तुत की । नरेन्द्र देव समिति की रिपोर्ट के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 28-29
नवम्बर सन् 1953 ई ० में नागरी लिपि सुधार सम्बन्धी सुझाओं पर विचार करने के लिए
लखनऊ में ' लिपि सुधार - परिषद ' का गठन किया और विभिन्न राज्यों के मन्त्रियों और विद्वानों
को परिषद में आमन्त्रित किया ।
Ø
उत्तर
प्रदेश सरकार द्वारा गठित ' लिपि सुधार परिषद ' की बैठक की अध्यक्षता तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ ० सर्वपल्ली
राधाकृष्णन ने की थी ।
Ø
डॉ०
सुनीति कुमार चटर्जी ने कतिपय परिवर्तनों के साथ देवनागरी लिपि के स्थान पर रोमन
लिपि को स्वीकार कर लेने का सुझाव दिया था ।
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