जयशंकर प्रसाद और कामायनी /ugc/net/jrf/hindi shahitya......
कामायनी जैसा काव्य उनकी दार्शनिक अंतर्दृष्टि की अभिव्यकि है । उनकी
अंतःसमाधि इतनी प्रबल थी कि उन्होंने भारी से भारी विरोध का कभी कोई जवाब ना दिया
। सब कुछ पचाने की उनकी क्षमता एक मिसाल है । कलाओं से प्रसाद को गहरा अनुराग था ।
संगीत के वे विरल पारखी थे । सिद्धेश्वरी बाई इस स्वीकार किया है । चित्रकला,
मूर्तिकला और पुरातत्त्व में उनकी गहरी रुचि थीं । उन्होंने
सारना जाकर बौद्ध मूर्तियों का अध्ययन किया था । शायद इसी समरुचि के कारण राय कृष्णदास
उन अभिन्न थे ।
कामायनी वह कृति है जो प्रसाद को हिंदी के बीसवीं शती के सबसे बड़े कवि के रूप
में प्रतिष्ठित करती है । इस कृति में सृष्टि के जन्म और विकास की कथा है ; परंतु पूरा काव्य रूपक में चलता है जहां श्रद्धा,
इड़ा , मनु आदि पात्र भी हैं और प्रतीक भी । कर्म सौंदर्य ,
भाव सौंदर्य और ज्ञान सौंदर्य की त्रिवेणी इसमें प्रवाहित
होती है । कर्म से संघर्ष, श्रद्धा से ज्ञान, व्यक्ति मन से विश्व मन, आनंद से परम आनंद की ओर अग्रसर कृति में शैव दर्शन अपनी काव्य
सत्ता पाता है । भाव सौंदर्य, विचार सौंदर्य, कला सौंदर्य , जीवन सौंदर्य को अपने ध्येय में धरे हुए यह कृति जीवन के
पतन,
भाव विकार, संघर्ष, दुख और यातना को अनुस्यूत करते हुए जो विराट जीवन और उदात्त
जीवन का सृष्टि राग रचती है, वह इस कृति को अनुपम बनाता है । अपने पूरे काव्यात्मक
सौष्ठव में कामायनी हिंदी साहित्य की एक निधि है । इसका अर्थ यह नहीं कि इस कृति
में कोई दोष नहीं है ।
कामायनी को केवल आधुनिक युग की श्रेष्ठ कृति ही नहीं माना जाता बल्कि जीवन
काव्य तथा छायावाद के उपनिषद् का दर्जा दिया जाता है आज जिधर दृष्टि जाती है ,
उधर अविश्वास , संकीर्णता , स्वार्थ , दम्भ , अतृप्ति , और आकुलता दिखाई देती है । वे इस बात को भली - भाँति जान गए
थे कि जीवन को इस विषमता से निकालना है , क्योंकि नकारों , अतृप्तियों , अनवरत व्यथाओं के दंश सहकर जीवन नहीं जिया जा सकता । जीवन
को सम्यक् रूप देने के लिए आवश्यक है कि इन प्रश्नों ,
समस्याओं और स्थितियों से निजाता पायी जाये । इसी उदात्त
उद्देश्य को ध्यान में रखकर उन्होंने कामायनी में समरसता के सिद्धांत का प्रतिपादन
किया है । जब तक मनुष्य स्वत्व से उपर उठकर परहित के संदर्भ में सोचेगा नहीं तब तक
आत्मस्थिती को नहीं प्राप्त कर सकता यह संदेश वे कामायनी के माध्यम से समस्त
आधुनिक समाज को देने का प्रयास करते हैं ।
आज जब की मनुष्य धर्मवाद , संस्कृतिवाद , भाषावाद राष्ट्रवाद , प्रांतवाद , स्त्रीवाद , आंबेडकरवाद जैसे कई वादों में विभक्त होकर मानवतावाद को
तिलांजली दे रहा है तब प्रसाद द्वारा प्रतिपादित समरसता का दर्शन निश्चित ही फलदाई
हो सकता है । इसी आशा - अपेक्षा के साथ प्रस्तुत इकाई में कामायनी में अभिव्यक्त
महाकाव्यत्मकता , इतिहास और कल्पना , रूपकत्व , समरसता
दर्शन और छायावादी काव्य प्रवृत्तियों के आधारपर कामायनी का मूल्यांकन इन मुद्दों
पर विस्तार से प्रकाश डालने की कोशिश की हैकामायनी की कथावस्तु - कामायनी प्रसाद
की अंतिम काव्यकृति है । इसे छायावाद , रहस्यवाद का प्रातिनिधिक काव्य और आधुनिक हिन्दी साहित्य का
सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य माना जाता है । कामायनी की कथा का आधार पौराणिक एवं
ऐतिहासिक है । ऋग्वेद और शतपथ ब्राह्मण में वर्णित जलप्लावन की घटना से लेकर
पुराणों में बिखरी हुई सामग्री का अध्ययन , वर्षों तक चिन्तन , मनन कर कवि ने इसकी रचना की है । अपनी कल्पना द्वारा
इन्होंने अनेक स्थलोंपर कथा में परिवर्तन भी किए हैं । अंतिम भाग में उनकी मौलिकता
विशेष दर्शनीय है । इसमें कुल पंद्रह सर्ग हैं , जिनके शीर्षक स्थान , घटना या पात्र के नाम पर न रखकर मानसिक वृत्तियों के नाम से
रखे गए हैं । उन मानसिक वृत्तियों का क्रम ऐसा रखा गया है जैसा कि मनुष्य के विकास
का होता है । कुछ का संबंध पुरुष से है , कुछ का नारी से है और कुछ का दोनों से हैं ।
प्रसाद ने इस रचना में मनु के माध्यम से युग - युग के मानव का और श्रध्दा के
माध्यम से युग - युग की नारी का मनोवैज्ञानिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास
किया है । बीसवीं शताब्दी की महनीय उपलब्धि के रूप में कामायनी दार्शनिक ,
सांस्कृतिक , मनोवैज्ञानिक और कलात्मक वैशिष्टय का समीकृत रूप लेकर आई है
। '
चिन्ता ' सर्ग से लेकर “ आनन्द ' सर्ग तक की यात्रा करता हुआ यह काव्य हिमगिरी की एक चेतनता
से समरस होनेवाले मनु के जीवन का इतिहास है । इसके प्रमुख पात्र मनु ,
श्रद्धा और इडा हैं , जो इच्छा , क्रिया और ज्ञान के प्रतिनिधि हैं ।
कामायनी एक साथ मनु और श्रध्दा की , पुरूष और नारी की एवं मनोभावों के विकास की कथा है ।
कामायनी की कथा एक अवलंब ( आधार ) माना है । “ कामायनी में भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की साहित्यिक
व्याख्या प्रस्तुत की गई है और इस बहाने विश्व की वर्तमान समस्याओं का समाधान प्रस्तुत
करने की कोशिश की गई है ।" इसके अनेक दृष्टिकोणों को समझना ही कामायनी की
वास्तविकता को समझना है । इसमें बहुत ही कम पात्र हैं ,
संक्षेप में जगत् की झाँकी , मनोभावों का सुन्दर चित्रण किया गया है । कलात्मक भूमिका पर
भी कामायनी का गौरव और महत्व असंदिग्ध है । भाषा , प्रतीक और बिम्ब की दृष्टि से कामायनी का कला वैभव छायावाद
की समस्त विशेषाओं का निदर्शक है , तो भावात्मक भूमिका पर उसमें आए रस,
प्रेम, प्रकृति, सौंदर्य, आनन्द, मानवता और जीवन के निर्माणकारी मूल्यों का विनियोग हुआ हैं
। रूपक - प्रयोग , मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य के कारण तो कामायनी और भी महनीय हो गयी है ।
तात्पर्य यह है कि कामायनी प्रसाद के जीवनानुभवों का निचोड है ,
उनके समस्त चिन्तन का काव्यात्मक निष्कर्ष है ।
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