आचार्य शुक्ल ने घनानन्द को साक्षात रस मूर्ति कहा है ? प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और वीर पथिक तथा ज़बांदानी का दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ । ? भाषा के लक्षक एवं व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है , इसकी पूरी परख इन्हीं को थी । ? भाषा के लक्ष्य एवं व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है इसकी पूरी परख घनानन्द को ही थी ।
आचार्य शुक्ल के अनुसार बोधा एक रसिक
कवि थे ।
चिन्तामणि के बारे में ? हिन्दी रीति ग्रंथों की
अखंड परम्परा एवं रीति काल का आरम्भ आचार्य शुक्ल चिन्तामणि से मानते हैं । ? शुक्ल ने हिन्दी का प्रथम
आचार्य चिन्तामणि को माना है । ? हिन्दी रीति - गों की परम्परा चिन्तामणि त्रिपाठी से चली । अतः
रीतिकाल का आरम्भ उन्हीं से मानना चाहिए ।
केशव को कवि हृदय नहीं मिला था । उनमे
वह सहदयता और भावुकता भी न थी जो एक कवि में होनी चाहिए । प्रबंधकाव्य रचना के योग्य न तो केशव में अनुभूति
ही थी , न शक्ति । वे वर्णन वर्णन के लिए करते थे , न कि प्रसंग या अवसर की अपेक्षा से
। केशव की रचना को सबसे अधिक विकृत और अरुचिकर
करने वाली वस्तु है आलंकारिक चमत्कार की प्रवृति , जिसके कारण न तो भावों की प्रकृत व्यंजना
के लिए जगह बचती है , न सच्चे हृदयग्राही वस्तुवर्णन के लिए । ? केशव को ' कठिन काव्य का प्रेत ' शुक्ल ने उनकी क्लिष्टता
के कारण कहा है । आचार्य शुक्ल ने केशवदास को भक्ति काल में सम्मिलित किया है । ? प्रकृति के नाना रूपों
के साथ केशव के हृदय का सामंजस्य कुछ भी न था ।
पन्तजी की रहस्यभावना स्वाभाविक है
. साम्प्रदायिक ( डागमेटिक ) नहीं । ऐसी रहस्यभावना इस रहस्यमय जगत् के नाना रुपों
को देख प्रत्येक सहृदय व्यक्ति के मन में कभी - कभी उठा करती है। 'गुंजन' में भी पन्तजी की रहस्यभावना
अधिकतर स्वाभाविक पथ पर पाई जाती है अध्यापक पूर्णसिंह? पन्तजी की रहस्यभावना
स्वाभाविक है , साम्प्रदायिक ( डागमेटिक ) नहीं । ऐसी रहस्यभावना इस रहस्यमय जगत् के नाना रुषों
को देख प्रत्येक सहदय व्यक्ति के मन में कभी - कभी उठा करती है । ' गुंजन में भी पन्तजी की
रहस्यभावना अधिकतर स्वाभाविक पथ पर पाई जाती है ।
अध्यापक पूर्णसिंह की लाक्षणिकता हिन्दी गदय साहित्य में नयी चीज थी
..... भाषा और भाव की एक नयी विभूति उन्होंने सामने रखी । वक्तृत्वकला का ओज एवं प्रवाह
तथा चित्रात्मकता व मूर्तिमत्ता , इनकी शैली के दो विशिष्ट गुण हैं । संक्षेप में अतिअल्पमात्रा में निबंधों का लेखन करते
हुए भी अध्यापक पूर्णसिंह ने हिन्दी निबन्धकला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी
है ।
शुक्ल जी भारतीय पुनरुत्थान युग की
उन परिस्थितयों की उपज थे , जिन्होंने राजनीति महात्मा गांधी . कविता में रवीन्द्रनाथ ठाकुर
, जयशंकर प्रसाद आदि को
उत्पन्न किया । -नामवर सिंह
रामविलास शर्मा ने सही लिखा है कि
प्राचीन साहित्यशास्त्री स्थायी भावों को रसरूप में प्रकट करके साहित्यिक प्रक्रिया
का अंत निष्क्रियता में कर देते थे । शुक्ल जी ने भाव की मौलिक व्याख्या करके निष्क्रिय
रस - निष्पति की जड़ काट दी है ।
हिन्दी साहित्य में कविता के क्षेत्र
में जो स्थान निराला का रहा और उपन्यास के क्षेत्र में
जो स्थान प्रेमचन्द का रहा, आलोचना के क्षेत्र में
वही स्थान 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' का है ... आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और हिन्दी आलोचना , डॉ . रामविलास शर्मा ।।
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