आचार्य रामचंद्र शुक्ल के कथन--
बिहारी सतसई के लिए "इसका एक
एक दोहा हिंदी साहित्य में एक एक रत्न माना जाता है। इसमै तो रस के ऐसे छींटे पड़ते
हैं जिनसे हृदय कलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है"
बिहारी सतसई के लिए ' यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत
वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है"
बिहारी सतसई के लिए "जिस कवि
मै कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समाहार शक्ति जितनी अधिक होगी उतनी ही वह
मुक्तक की रचना में सफल होगा"
बिहारी के लिए "बिहारी की भाषा
चलती होने पर भी साहित्यिक है।" कविता उनकी श्रृंगारी है, पर प्रेम की उच्च भूमि
पर नहीं पहुंचती, नीचे ही रह जाती है"
बिहारी के लिए भाषा इनकी बड़ी स्वाभाविक, चलती और व्यंजना पूर्ण
होती थी-मंडन के लिए इनका सच्चा कवि हदय था।
मतिराम के लिए 'रीतिकाल के प्रतिनिधि
कवियों में पदमाकर को छोड़ और किसी कवि में इनके जैसी चलती भाषा और सरल व्यंजना नहीं
मिलती"
मतिराम के लिए "उनके प्रति भक्ति
और सम्मान की प्रतिष्ठा हिंदू जनता के हृदय में उस समय भी थी और आगे भी बराबर बनी रही
या बढ़ती गई"
भूषण के लिए "भूषण के वीर रस
के उदगार सारी जनता के हृदय की संपत्ति हुए"
भूषण के लिए "जिसकी रचना को जनता
का हृदय स्वीकार करेगा उस कवि की कीर्ति तब तक बराबर बनी रहेगी, जब तक स्वीकृति बनी राहेगी"
भूषण के लिए शिवाजी और छत्रसाल की
वीरता का वर्णनों को कोई कवियों की झूठी खुशामद नहीं कह सकता-
भूषण के लिए "वे हिंदू जाति के
प्रतिनिधि कवि हैं। छंदशास्त्र पर इनका - सा विशद निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया
है।
सुखदेव मिश्र के लिए ये आचार्य और
कवि दोनों रूपों में हमारे सामने आते हैं –
देव के लिए ' कवित्वशक्ति और मौलिकता
देव में खूब थी पर उनके सम्यक स्फूर्ण में उनकी रुधि विशेष प्रायः बाधक हुई है
शुक्ल जी ने 'शब्दसागर की भूमिका के
लिए' हिंदी साहित्य का विकास' लिखा उसी तरह श्यामसुंदर
दास ने हिंदी भाषा का विकास' लिखा। श्यामसुंदर दास की यह इच्छा थी कि दोनों भूमिकाएं संयुक्त
रूप से प्रकाशित हो और लेखक के रूप में दोनों का नाम छपे। शुक्ल जी ने इसका घोर विरोध
किया। यह कहा जाता है कि सभा में लाठी के बल पर रात में अयोध्यासिंह उपाध्याय जाकर
इतिहास पर शुक्ल जी का नाम छपवाया।
श्यामसुंदर दास ने आत्मकथा में यह
स्वीकार करते हुए लिखा भी है कि आचार्य शुक्ल ने शब्दसागर बनाया और शब्दसागर ने आचार्य
शुक्ल को।
शुक्ल के इतिहास का ढाँचा चिंतन पर
आधारित था। शुक्ल जी की मृत्यु पर जैसी शोक कविता निराला ने लिखी है, वैसी आज तक किसी की मृत्यु
पर नहीं लिखी गई है।
"कथा साहित्य में जो कार्य प्रेमचद
ने किया है, काव्यक्षेत्र में जो कार्य निराला ने किया है वहीं कार्य आलोचना के क्षेत्र में
रामचन्द्र शुक्लजी ने किया है।"
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कविता क्या
है, साहित्य काव्य में रहस्यबाद
आदि निबंधों से सैद्धांतिक समीक्षा का सूत्रपात किया।
शुक्ल ने पहली बार रसविवेचन को मनोवैज्ञानिक
आधार दिया। रस मीमांसा में रस के शास्त्रीय विवेचन की मौलिक व्याख्या प्रस्तुत की।
"लोकहृदय में हृदय के लीन होने की दशा का नाम ही रसदशा है।"
शुक्ल सूरदास को शुक्ल ने प्रेम का
जिसके अंतर्गत पालन एवं रंजन आते हैं, कवि माना है और तुलसीदास को करुणा
का जिसके अंतर्गत लोकरक्षा का भाव आता है ।
तुलसीदास शुक्लजी के आदर्श कवि है।तुलसी
को ही केंद्रबिंदु मै रखकर शुक्लजी ने अपनी आलोचना के मानदंड निश्चित किये।
शुक्लजी के अनुसार रामकथा के भीतर
कई स्थल मर्मस्पर्शी है । जिसमें सबसे मर्मस्पर्शी रामवनगमन प्रसंग।
जायसी को रामचन्द्र शुक्ल ने सूफी
कवि होते हुए भी भक्तों की कोटि में परिगणित किया है ।
जायसी और सूफी कवियों की जिस विशेषता
ने शुक्लजी को सबसे अधिक प्रभावित किया है , वह है- प्रकृति वर्णना -- शुक्लजी
श्रीधर पाठक और रामनरेश त्रिपाठी को सही अर्थों में स्वच्छंदतावादी कवि माना है।
No comments:
Post a Comment