Tuesday, 11 May 2021

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के/UGC/NET/JRF/HINDI SHAHITYA/कथन

 आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार मलिक मुहम्मद जायसी... प्रेमगाथा की परंपरा में पदमावत सबसे प्रौढ़ और सरस है ।  यही प्रेममार्गी सूफी कविर्या की प्रचुरता की समाप्ति समझनी चाहिए।

शेख नबी के लिए "सूफी आख्यान काव्यों की अखंडित परपरा की यहीं समाप्ति मानी जा सकती है "

नूर मुहम्मद कृत के लिए  नूर मुहम्मद को हिंदी भाषा में कविता करने के कारण जगह - जगह इसका सबूत देना पड़ा है कि वे इस्लाम के पक्के अनुयायी थे । इस परंपरा में मुसलमान कवि हुए हैं ।

केवल एक हिंदू मिला है - आचार्य शुक्ल ने किसकी तरफ इशारा किया है - सूरदास की तरफ " जनता पर जो प्रभाव पड़ा हो पर उक्त गद्दी के भक्त शिष्यों ने सुंदर - सुंदर पदों द्वारा जो मनोहर प्रेम संगीत धारा बहाई उसने मुरझाते हुए हिंदू जीवन को सरस और प्रफुल्लित किया " .

 श्री बल्लभाचार्य जी के लिए ' सूर की बड़ी भारी विशेषता है नवीन प्रसंगों की उद्भावना"

 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार तुलसीदास के गुरु थे नरहर्यानंद

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने तुलसीदास का जन्म स्थान माना है- राजापुर रामचरितमानस को " लोगों के हृदय का हार " कहा है आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने गोस्वामी जी की भक्ति पदधति की सबसे बड़ी विशेषता है उसकी सर्वागपूर्णता "

रामचरितमानस में तुलसी केवल कवि रूप में ही नहीं उपदेशक के रूप में भी सामने आते हैं । " गोस्वामी जी के रचे 12 ग्रंथ प्रसिद्ध हैं जिनमें 5 बड़े और 7 छोटे हैं ।

कबीर आदि संतो को नाथपंथियों से जिस प्रकार साखी और बानी शब्द मिले उसी प्रकार साखी और बानी के लिए बहुत कुछ सामग्री और सधुक्कड़ी भाषा भी । ' ' वीरगीत के रुप मे हमे सबसे पुरानी पुस्तक बीसलदेवरासो मिलती है । " ' बीसलदेवरासो मै काव्य के अर्थ में रसायण शब्द बार बार आया है । अतः हमारी समझ में इसी रसायण शब्द से होते - होते रासो हो गया है ।"  

बीसलदेव रासो में आए 'बारह से बहोतरा" का स्पष्ट अर्थ 1212 है । ' यह घटनात्मक काव्य नहीं है , वर्णनात्मक है। बिसलदेव रासो के लिए ' भाषा की परीक्षा करके देखते हैं तो वह साहित्यिक नहीं है , राजस्थानी है ।

बिसलदेव रासो के लिए 'अपभ्रश के योग से शुद्ध राजस्थानी भाषा का जो साहित्यिक रूप था वह डिंगल कहलाता था । "  

ये हिंदी के प्रथम महाकवि माने जाते हैं और इनका पृथ्वीराज रासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य है ।

चंद्रबरदाई के लिए * भाषा की कसौटी पर यदि ग्रंथ को कसते हैं तो और भी निराश होना पड़ता है क्योंकि वह बिल्कुल बेठिकाने । उसमें व्याकरण आदि की कोई व्यवस्था नहीं है।

पृथ्वीराजरासो के लिए "विद्यापति के पद अधिकतर अंगार के ही है जिनमें नायिका और नायक राधा - कृष्ण है ।विद्यापति को कृष्ण भक्तों की परंपरा में ना समझना चाहिए । ' " आध्यात्मिक रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गए है ।

 

विद्यापति के पर्दा के संबंध में " मोटे हिसाब से वीरगाथाकाल महाराज हम्मीर की समय तक ही समझना चाहिए ।

भक्तिकाल " कबीर ने अपनी झाड़- फटकार के द्वारा हिंदुओं और मुसलमानों की कट्टरता को दूर करने का जो प्रयास किया वह अधिकतर चिढ़ाने वाला सिद्ध हुआ , इदय को स्पर्श करने वाला नहीं । इस कहानी के दवारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत प्रेम का स्वरूप दिखाया है ।

 

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