Saturday, 15 May 2021

काव्य लक्षण ग्रंथ/प्रपद्यवाद/नकेनवाद/UGC/NET/JRF HINDI SHAHITYA

 लक्षण ग्रंथ किसे कहते हैं ?

उत्तर- लक्षण ग्रंथ को काव्य शास्त्रीय ग्रंथ भी कहा जाता है जिस ग्रंथ में काव्य अथवा कविता से संबंधित तत्वों - रस , अलंकार , रीति , वृत्ति , ध्वनि , गुण , दोष आदि का विवेचन किया जाता है । उसे लक्षण ग्रंथ कहते हैं ।

काव्य - प्रकाश , साहित्य - दर्पण , रस - गंगाधर , कुवलयानन्द , चन्द्रालोक , रस मीमांसा आदि लक्षण ग्रंथ ही हैं ।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने रीतिकाल के रीति ग्रंथों को लक्षण ग्रंथ कहा है । हिंदी रीति ग्रंथों की परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली।रीति काल का आरंभ उन्हीं से मानना चाहिए उपर्युक्त बातों पर ध्यान देने से स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी में लक्षण ग्रंथ की परिपाटी पर रचना करने वाले जो सैकड़ों कवि हुए थे , वे आचार्य कोटि में नहीं आ सकते।वे वास्तव में कवि ही थे । उनमें आचार्य के गुण नहीं थे ।

 

प्रपद्यवाद ( 1956 ई ० )

प्रपद्यवाद का प्रवर्तन नलिन विलोचन शर्मा ने सन् 1956 में प्रकाशित ' नकेन के प्रपद्य ' संकलन से किया । प्रपद्यवाद को ' नकेनवाद ' भी कहा जाता है क्योंकि इसमें बिहार के तीन कवि नलिन विलोचन शर्मा , केशरी कुमार और नरेश के नाम के प्रथम अक्षरों को आधार मानकर ' नकेन ' बनता है ।

प्रपद्यवाद और प्रयोगवाद में मूल अंतर यह है कि प्रपद्यवाद ' प्रयोग ' को साध्य मानता है जबकि प्रयोगवाद ' प्रयोग ' को साधन मानता है ।

आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने 'प्रवद्यवाद' के संबंध में लिखा है, "नकेनवाद जिसे उसके हिमायतियों ने प्रपद्यवाद भी कहा है , वास्तव में , प्रयोगशीलता का एक अतिवाद था । प्रयोगवाद के प्रवक्ताओं ने जो कुछ नया कहा था, उससे सन्तुष्ट न होकर उसे एक तार्किक सीमा तक पहुँचाने का कार्य नकेन नामक संग्रह की भूमिकाओं में दिखाई पड़ा था । " सन 1952 में नरेश के सम्पादकत्व में प्रकाशित पत्रिका ' प्रकाश ' में नकेनवादियों ने प्रपद्यवाद को तथाकथित ' प्रयोग दश - सूत्री ' घोषित किया।

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