गोस्वामी तुलसीदासःहिंदी साहित्य भक्तिकाल के प्रमुख कवि/रामचरितमानस/विनयपत्रिका/गीतावली/UGC/NET JRF/PYQ
तुलसी की प्रमुख कृतियों का परिचय—
1. रामचरितमानस - तुलसी की अक्षय कीर्ति का आधार उनके द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस
रामचरितमानस की रचना का प्रारंभ अयोध्या में संवत् 1631
बि. ( 15741
) में हुआ और उसे 2 वर्ष 7 माह में समाप्त किया । इसका कुछ अंश विशेषत : किष्किंधाकाड
काशी में रखा गया । रामचरितमानस की रचना पूरी करने के बाद तुलसी काशी में रहने लगे
थे तथा अनेक शास्त्रज्ञ विद्वानों से उनका शास्त्रार्थ हुआ था । प्रसिद्ध विद्वान
मधुसूदन सरस्वती से भी इनका शास्त्रार्थ हुआ था और उनाने तुलसी की प्रशंसा को थी ।
रामचरितमानस की
रचना अवधी भाषा में दोहा - चौपाई शैली में हुई है । यह रामकथा पर आधारित महाकाव्य
है जिसमें सात कांड है -1. बालकाड 2. अयोध्याकांड 3. अरण्यकांड 4. किष्किंधाकांड 5. सुंदरकांड 6. लंकाकांड और 7. उत्तरकांड ।
रामचरितमानस के राम लोकरक्षक हैं । वे शक्ति , शील एवं सौंदर्य के भंडार है - रचना कौशल , प्रबंध पटुता , सहदयता की दृष्टि से रामचरितमानस हिंदी काव्य में
सर्वश्रेष्ठ है । इसमें कथा काव्य के सभी अवयवों का उचित सामंजस्य है ।
रामचरितमानस की सबसे बड़ी विशेषता है कवि द्वारा कथा के
मार्मिक स्थलों की पहचान करना । ऐसे मार्मिक प्रसंग है - पुष्प वाटिका में सीता -
राम का मिलन , रामवनगमन , दशरथ मरण , चित्रकूट प्रसंग , वन मार्ग में राम , लक्ष्मण शक्ति आदि ।
रामचरितमानस में प्रसंगानुकूल भाषा का प्रयोग है । कहीं
कोमल तो कहीं कठोर योजना जो पूर्णतः रसानुकूल भी है । भाषा में आनुप्रासिकता एवं
अलोकारिकता भी दिखाई पड़ती है । रामचिरतमानस में श्रृंगार रस का शिष्ट एवं
मर्यादित वर्णन है । इस ग्रंथ में वे एक श्रेष्ठ कवि के साथ - साथ एक उपदेशक के
रूप में भी सामने आते हैं । रामचरितमानस में सर्वत्र समन्वय की विराट चेष्टा की गई
है । शैव और वैष्यात निर्गुण और सगुण का समन्वय , ज्ञान और भक्ति का समन्वय , राजा और प्रजा का समन्वय , ज्ञान और भक्ति का समन्वय , राजा और प्रजा का समन्वय सब कुछ इस ग्रंथ में है । इसीलिए
आचार्य हजारोप्रसाद द्विवेदी ने कहा है- "लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय
करने का अपार धैर्य लेकर आया हो । उनका सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है ।"
तुलसी की भक्ति भावना निर्गुण भक्तों की रहस्यमयी भक्ति
नहीं है अपितु वह सीधी सादी सरल एवं सहज है। उनके रान कण - कण में व्याप्त हैं और
सर्वजन सुलभ हैं । उत्तरकांड में तुलसी ने ज्ञान- भक्ति का जो विवेचन किया है.जा
उन्हें उच्चकोटि का विद्वान सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है । रामचरितमानस में लय
लंब सांगारूपकों को जो योजना की गई है वह कवि की विद्वता एवं भाषाधिकार को व्यजित
करती है ।
तुलसी में अपने समय में प्रचलित सभी काव्य शैलियों में
रचनाएँ प्रस्तुत की है । उन्हें ब्रजभाषा और अवधी दोनों काव्य भाषाओं पर समान अधिकार
प्राप्त था । विनयपत्रिका, कवितावली एवं दोहावली जैसे ग्रंथ उन्होंने ब्रजभाषा में ही
लिया है। उनकी विविध रचनाओं में निम्न शैलियों का प्रयोग हुआ है-
1. रामचरितमानस दोहा-चौपाई शैली
2. विनयपत्रिका गीति शैली
3. गीतावली कवित्त - सर्वया शैली
4. कवितावली पद-शैली
5. दोहावली दोहा शैली
6. बरवै रामायण बरवै शैली
तुलसी भाषा के पंडित थे । संस्कृत पर उनका पूर्ण अधिकार था
। रामचरितमानस की स्तुतियाँ सस्कृत में रचित है । विनय पत्रिका के प्रारंभिक पदों
में संस्कृत पद उपन्यास है । वह भी इस बात का प्रमाण है ध्यान देने योग्य बात या है कि सूरदास की
रचना में संस्कृत की कोमलकांत पवावली और अनुप्रासों की वह छटा नहीं है जो कवितावली
ज्य का इतिहास नोट कवियों की तुलसी की रचना में दिखाई पड़ती है । आचार्य शुक्ल
ने तुलसी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा है- "गोस्वामी जी के
प्रादुर्भाव को हिंदी काव्य की शक्ति का पूर्व प्रसार इनकी रचनाओं में पहले - पहल
दिखाई पड़ा ।"
गीतावली की रचना संभवतः तुलसी में सूरदास जी के अनुकरण पर
की है , क्योंकि
सूर की बाललीला के पद और गोतावाली में राम की बाललीला के पदों में बहुत कुछ साम्य
दिखाई पड़ता है ।
गोस्वामी जी शास्वत विद्वान थे, किंतु उनको शब्द - योजना संस्कृत गर्भित, साहित्यिक होते हुए भी परम एवं कोमलकांत पदावली से युक्त है
।
तुलसी का रामचरितमानस उत्तर भारत इतना लोकप्रिय हुआ है कि
या हिंदुओं के पूजाघरों में स्थान पाता है लोग अमंगल को शाति हेतु उसका पारायण
करते है तथा उसके अवर पात का आपस करवाते है । व्यभिागत साधना के साथ ही लोकधर्म की
अत्यंत उज्ज्वल छटा भी रामचरितमानस में विद्यमान है ।
आचार्य शुक्ल के शब्दों में "भारतीय जनता का
प्रतिनिधि कवि यदि किसी को कह सकते है तो तुलसीदास को रामचरितमानस के राम एक आदर्श
चरित्र हैं , मर्यादा पुरुषोत्तम है । समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए
आदर्श भावहार को कसोटी राम का चरित्र है । वे एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श स्वामी, आदर्श शिष्य, आदर्श राजा के रूप में समाज के सम्मुख 'आदर्श' प्रस्तुत करते हैं। इसीलिए राम का चरित्र मानदंड बन गया है
। रामचरितमानम मानव व्यवहार का दर्पण हो तथा शुक्ल जी ने अपनी आलोचना पद्धति में
तुलसी को एक ऐसा पैमाना माना है जिससे वे अन्य कवियों की नाप जोख करते दिखाई पड़ते
हैं । रामचरितमानस में तुलसी ने राम राज्य का वर्णन करते हुए आदर्श शासन व्यवस्था
पर भी प्रकाश डाला है ।"
2. विनयपत्रिका - तुलसीदास की रचनाओं विनय पत्रिका का महत्वपूर्ण स्थान है ।
इस काय गंथ में 279 पद है तथा यह ब्रजभाषा में लिखी गई है । तुलसी के राम को जानने
के लिए रामचरितमानस पढ़ना चाहिए और तुलसी को जानने के लिए विनयपत्रिका ।
भक्तिभावना की दृष्टि से या गंध अद्वितीय है । इस ग्रंथ का प्रधान स है - शांत रस
।
सूरदास की पद शैलो में इस ग्रंथ को रचना तुलसी ने की है ।
ये पद विभिन्न राग रागिनियों में निबद्ध किए गए है जिनमें प्रमुख राग विलाखल , राग रामकली , राग बसंत , राग भैरव , रोग केदार , राग कानारा , राग टोडी , राग सोरठ , राग , मल्हार आदि ।
कलियुग से संतप्त होकर तुलादास ने एक पत्रिका ' राम के दरबार में भेजने के लिए लिखी है और ने चाहते हैं कि
माता सीता इसे राम के सम्मुख प्रस्तुत करें । यदि कृपालु राम ने मेरो प्रार्थना
सुन लो तो बिगाड़ो हुई बात भी बन जाएगी ।
विनयपत्रिका का निर्माण मुक्तक गेय पदों में हुआ है तथापि
उसमें एक 'पत्र' जैसी प्रबंधात्मकता भी विद्यमान है । विनयपत्रिका के पदों
में आत्मनिवेदन , शरणागति को कामना , मन को भर्त्सना , दैन्य आदि भावों को सुंदर व्यजना हुई है । तुलसी की भक्ति
दास्यभाव को है । जिसका मूल आधार दैन्य है । विनयपत्रिका में तुलसी के दार्शनिक
विचारों की अभिव्यक्ति भी हुई है । वे विशिष्टद्वैत दर्शन के अनुरूप अपनो
मान्यताओं व्यक्त करते है । विनयपत्रिका के कुछ प्रसिद्ध पद इस प्रकार है
1. अबली नसानी अब न नहीं ।
2. केशव कहि न जाय का कहिए ।
3. ऐसी मूलता या मन की ।
4. जो निज मन परिहर विकारा ।
5. श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुण ।
6. तू दयाल दीन हाँ तू वानि हाँ भिखारी ।
7. सुनि सीता पति सील सुभात ।
8. जाके प्रिय न राम वैदेही ।
9. राम कहतु चलु राम कहत चालु राम कहतु चलु भाई रे ।
10. कबहुंकि हाँ यह रहनि रहौंगो ।
तुलसी की भक्ति पद्धति को विनयपत्रिका पढ़कर ही समझा जा सकता है । नवधा भक्ति का स्वरूप विनयपत्रिका उपलब्ध होता है ।
3. गीतावली- गीतावली भी गीतिकाव्य शैली में सात काडों में रचित काव्य ग्रंथ है जिसमें
रामकथा के मधुर प्रसंगों का गान मुक्तक शैली में किया गया है । राम के सौंदर्य, शील , शक्ति का सुंदर चित्रण इस एक ग्रंथ में हुआ है। गीतावली में
राम के बाल रूप की झाँकी अकित करते हुए वात्सल्य रस का सुंदर विधान किया गया है ।
वात्सल्य के संयोग एवं वियोग दोनों पक्षों का सुंदर निरूपण इस ग्रंथ में है ।
शृंगार रस के मधुर चित्र भी इसमें अंकित हैं ।
यथा " दुलह राम सीय दुलही री "
गीतावली की रचना सरस ब्रजभाषा में हुई है जिसमें संस्कृत के
तत्सम शब्दों की बहुलता है । गीतावली के वात्सल्य वर्णन पर सूरदास बाल वर्णन का
प्रभाव परिलक्षित होता है । उपमा , रूपक एवं उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग करते हुए भावों की
कलात्मक अभिव्यक्ति तुलसी ने की है ।
4. कवितावली - कवितावली की रचना ' कवित्त सवैया ' शैली में हुई है । यह भी मुक्तक काव्य ग्रंथ है जिसमें
कवित्त , सवैया
और छप्पय इन तीन छंदों का प्रयोग हुआ है । इसे तुलसी की अंतिम कृति माना जाता है ।
इसमें भी सात कांड हैं , किंतु प्रबंधत्व नहीं है । रामकथा से संबंधित कवित्त
लकाकांड तक संकलित है । तथा तुलसी के निजी जीवन एवं तत्कालीन समाज की दशा से
संबंधित कवित्त उत्तरकांड में हैं । कवितावली के प्रारंभ में राम के बाल रूप की
झांकी को चित्रित करने वाले कवित्त बड़े सुंदर बन पड़े हैं ।
यथा अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन मंदिर में बिहरै ।
रामकथा के सरस मार्मिक स्थलों का चुनाव इस काव्य कृति में
भी किया गया है । राम सीता के विवाह के अवसर का यह कवित्त शृंगार भावना से ओत -
प्रोत हैं
दूलह श्री रघुनाथ बर्न दुलही सिय सुंदर माँदर माही ।
इसी प्रकार ग्राम वधुओं को सीता ने राम का परिचय अपने पति
के रूप में कितनी सांकेतिक भाषा में दिया है " तरिछ करि नैन दै सैन तिन्ह
. समुझाई कडू मुसकाई चलो । "
अलंकारों का सुंदर प्रयोग कवितावली में किया गया है ।
यधा - उत्प्रेक्षा का एक उदाहरण देखिए अनुराग तड़ाग में
भानु उदै विगसी मला मंजुल कंज कली । संदेह अलंकार का उदाहरण देखिए
तुलसी सुरस चाप कैचों दामिनी कलाप , कैंधो कली मेरु त कसानु सरि भारी है ।
अतः साक्ष्य के लिए कवितालली का आभार लेकर तुलसी संबंधी
जीवन वृत्त को बाज की गई है । इसमें तुलसी की दुरावस्था,तत्कालीन
अकाल,महामारी,अधर्म,पाप,अत्याचार आदि का सुंदर चित्रण किया गया है। कवितावली भी
ब्रजभाषामें लिखी गई है,किंतु उसमें अवधी,बागंला,ऱाजस्थानी अरबी फारसी के शब्द भी
मिल जाते हैं।।
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