Wednesday, 26 May 2021

 हिंदी नवजागरण की अवधारणा//UGC//NET JRF//HINDI SHAHITYA.

 

19 वीं शताब्दी में भारतीय समाज संक्रमण के जिस तीव्र दौर से गुजरा, उसे कुछ चिंतक पुनजागरण कहते हैं, कुछ पुनरुत्थान तो कुछ अन्य नवजागरण । ये सभी शब्द इतिहास के प्रति विशेष दृष्टिकोण को प्रकट करते हैं । पुनरुथान ' पुन : ' तथा ' उत्थान ' से मिलकर बना है, जिसका तात्पर्य है फिर उठ खड़े होना । जो विचारक अतीत को स्वर्णकाल मानते हैं और वर्तमान से असंतुष्ट होकर अतीत को ही पुन : लौटा लाना चाहते हैं, वे पुनरुत्थानवाद । कहलाते हैं । कुछ विचारकों के अनुसार आर्य समाज का नारा ' वेदों की ओर लौटो ' ऐसे ही दृष्टिकोण का प्रतिपादन करता है, हालॉक आर्यसमाजी इसकी भिन्न व्याख्या करते हैं । पुनर्जागरण का अर्थ है फिर में जागना । यह शब्द रेनेसा ( Renaissance ) का अनुवाद है । यूरोप में प्राचीन काल श्रेष्ठ था जबकि मध्यकाल अंधकार का समय था । इसलिए यह नारा काफी अर्थपूर्ण था । इसका तात्पर्य है कि हम अतीत में जागे हए । फिर सो गए थे , अब पुन : जागने का समय आ गया है । कुछ लोग भारतीय समाज की व्यासपा इसी राख्न म कात है । उनका तर्क है कि प्राचीन काल स्वर्णिम युग था जहाँ दर्शन , साहित्य व विज्ञान का सर्वोच्च विकास हुआ किंतु इस्लामी आक्रमण के बाद भारतीय समाज पतनोन्मुखी हो गया । अब पुनः आगने का समय आ गया है ।

मैथिलीशरण गुप्त की 'भारत भारती' प्रायः इसी भाव को लेकर लिखी गई है । कुछ आधुनिक विचारक भारतीय सामाजिक परिप्रेक्ष्य में इन दोनों को ही अपर्याप्त मानते हैं तथा एक भिन्न दृष्टिकोण ' नवजागरण ' का प्रतिपादन करते हैं। इनका अर्थ है - नए तरीके से जागना । इसमें निहित है कि पहले भी हम जागे हुए थे किंतु अब जागने का दृष्टिकोण बदल गया है । यह व्याख्या मध्यकाल के इतिहास को इस्लाम व हिंदुत्त्व को टकरावट नहीं मानती और न ही उसे अंधकार या पतन का काल मानती है । डॉ . रामविलास शर्मा इत्यादि चिंतकों ने 19 वीं शताब्दी के सुधार आदोलनों की व्याख्या हेतु इसी शब्द को उचित माना है ।

नवजागरण एक विशेष प्रकार के सांस्कृतिक संक्रमण का दौर है जिसमें कोई समाज किसी अन्य संस्कृति से टकरा कर नए दृष्टिकोण से जीने का प्रयास करता है। जिन देशों के पास गौरवमय अतीत है, उनमें अतीत की स्मृतियाँ भी नवजागरण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनती हैं । शेष समाजों में अन्य संस्कृतियों से परिचित होना और उनकी तुलना में अपना मूल्यांकन करना नवजागरण का कारण बनता है ।

डॉ . रामस्वरूप चतुर्वेदी के शब्दों में कहें तो नवजागरण दो संस्कृतियों की टकराहट से उत्पन्न रचनात्मक ऊर्जा है । इस कजाँ के प्रभावस्वरूप दोनों संस्कृतियाँ एक-दूसरे को अचाइयाँ गहण करना चाहती हैं और अपनी बुराइयाँ छोड़ना चाहती हैं यही संपूर्ण सांस्कृतिक प्रक्रिया समाज के इतिहास में नवजागरण कहलाती है ।

भारतीय समाज के इतिहास में ऐसे दो जागरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहे हैं । पहला जागरण मध्यकाल से संबंधित है । जब भारत में इस्लाम का आगमन हुआ । इस्लामी संस्कृति समतामूलक किंतु कट्टर धार्मिक विचारों पर आधारित थी , जबकि भारतीय संस्कृति धार्मिक लचीलेपन किंतु विषमतामूलक सामाजिक संरचना पर आधारित थी । इन दोनों को टकरावट से भक्तिकालीन जागरण हुआ और सामाजिक संस्कृति उद्भूत हुई । संस्कृतियाँ पहले टकराती हैं , फिर तटस्य होती है और अंत में धीरे - धीरे परिचित होकर परस्पर घुल - मिल जाती हैं । घुलने - मिलने का यही स्तर सामाजिक संस्कृति को जन्म देता है ।

19 वीं शताब्दी का नवजागरण हिंदी साहित्य के इतिहास का दूसरा जागरण है जिसमें एक और भारतीय सामाजिक संस्कृति है तो दूसरी ओर पाश्चात्य संस्कृति । इस समय भारतीय संस्कृति अध्यात्म - प्रधान व मध्यकालीन दौर से गुजर रही थी जबकि पाश्चात्य संस्कृति वैज्ञानिक तथा मशीनी क्रांति के आधार पर भौतिकवाद तथा पूंजीवाद का प्रतिनिधित्व कर रही थी । उसका आध्यात्मिक पक्ष तुलनात्मक रूप से कमजोर था । उसके पास वैज्ञानिक तार्किक शिक्षा थी , इहलौकिक मानसिकता थी , समानता , स्वतंत्रता , न्यास व अधुत्व के आधुनिक आदर्श थे जो तत्कालीन भारतीय समाज के लिए अनर्जित थे । इन दोनों को टकराहट में भारतीय संस्कृति में आधुनिक शिक्षा व भौतिकता सोखी तो पाश्चात्य संस्कृति यहाँ के अध्यात्म से प्रभावित हुई ।

किसो साहित्य में नवजागरण को चेतना कुछ विशेष रूपों में दिखाई पड़ती है । ये इस प्रकार है-

1. आत्ममूल्यांकन का भाव नवजागरण का केंद्रीय भात है क्योंकि इसरी संस्कृति से परिचित होने पर समाज उसकी तुलना में आत्म मूल्यांकन करता है । इसके साथ - साथ आत्म आलोचना तथा आत्म परिष्कार जैसी मानसिकता भी नवजागरण में अनिवार्यतः पनपती है , क्योंकि अपनी कमियों को पहचान कर उन पर चोट करना तथा कुछ नई चीजें सीखना इस स्थिति में स्वाभाविक होता है ।

2. अपने अतीत के प्रति रोमानी योध भी नवजागरण में सामान्यतः दिखता है क्योंकि समाज को रचनात्मक आधुनिक काल :प्रेरणा देने के लिए ऐतिहासिक या मिथकीय प्रसंग बेहद कारगर भूमिका निभाते हैं । यहाँ इतिहास तटस्थ रूप में नहीं आता बल्कि एक आदर्श तथा रोमानियत भरे रूप में प्रयुक्त होता है ।

3. जो संस्कृति हमारे समक्ष उपस्थित है, उसके सकारात्मक तत्वों को ग्रहण करने की चेतना नवजागरण में काफी प्रमुख होती है । 19 वीं सदी के नवजागरण में यूरोपीय संस्कृति के जिन तत्वों का प्रभाव दिखता है, ते हैं - वैज्ञानिक तार्किक शिक्षा, आधुनिक व इहलोकवादी दृष्टिकोण, समानता, स्वतन्त्रता, न्याय व बंधुत्व जैसे सामाजिक- राजनीतिक आदर्श इत्यादि । जहाँ जहाँ साहित्य में ये तत्व नजर आते हैं . वे सभी बिंदु नवजागरण के प्रभाव के रूप में देखे जाते हैं।

 

1857 की राज्यक्रांति को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया गया है । मेरठ में मंगल पांडे के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया गया जिसने अंग्रेजों को यह बता दिया कि अब भारतीयों को बहुत दिनों तक दबाकर नहीं रखा जा सकता । कविता में स्वदेश प्रेम , राष्ट्रीय चेतना , नए विषयों की ओर उन्मुखता दिखाई देने लगी । कविता रीतिकालीन परिवेश से मुक्त होकर नवयुग का द्वार खोलने लगी ।

19 वीं शताब्दी का नवजागरण हिंदी साहित्य के इतिहास का दूसरा जागरण है जिसमें एक आर भारतीय सामाजिक संस्कृति है तो दूसरी ओर पाश्चात्य संस्कृति । इस समय भारतीय संस्कृति अध्यात्म प्रधान व मध्यकालीन दौर से गुजर रही थी जबकि पाश्चात्य संस्कृति वैज्ञानिक तथा मशीनी क्रांति के आधार पर भौतिकवाद तथा पूंजीवाद का प्रतिनिधित्व कर रही थी ।

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