घनानंद//रीतिमुक्त धारा के शृंगारी कवि।UGC.NET.JFR.HINDI SHAHITYA
घनानंद रीतिमुक्त धारा के प्रमुख शृंगारी कवि हैं । इनका जन्म 16850
ई. और मृत्यु नादिरशाह के आक्रमण के समय 17392
में हुई । ये दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के यहाँ मीर
मुशी थे और जाति के कायस्थ थे । ये ' सुजान ' नामक वेश्या से प्रेम करते थे । एक दिन दरबार के कुक्रियों
ने बादशाह से कहा कि मोर मुशी साहब गाते बहुत अच्छा हैं। जब बादशाह ने इन्हें गाना
सुनाने को कहा तो ये टालमटोल करने लगे । सुजान को बुलाया गया और उसके एकबार कहने
की देर थी, घनानंद ने उसकी और मुंह करके और बादशाह की ओर पीठ करके गाना सुनाया ।
बादशाह इनके गाने पर तो प्रसन्न हुआ किंतु इनकी बेअदबी पर इतना नाराज हुआ कि उसने
इन्हें शहर से बाहर निकल जाने का हुक्म दे दिया । जब इन्होंने सुजान से अपने साथ
चलने को कहा तो उसने इनकार कर दिया । इस पर इन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया और ये
वृंदावन आकर निम्बार्क सम्प्रदाय के वैष्णव हो गए । नादिरशाह के आक्रमण के समय हुए
कत्लेआम में ये मारे गए । लोगों ने नादिरशाह के सैनिकों से कहा कि वृंदावन में
बादशाह का मीर मुंशी रहता है उसके पास बहुत सा माल होगा । सिपाहियों ने इन्हें जा
घेरा और उनसे ' तर , तर , जर '
, ( अर्थात् धन धन , धन ) कहा तो इन्होंने शब्द को उलटकर रज . रज , रज ' कहकर तीन मुट्ठी धूल उन पर फेंकी । सैनिकों ने क्रोध से इनका हाथ काट डाला और
इनकी मृत्यु हो गई ।
घनानंद की कविता में ' सुजान ' शब्द का बारबार प्रयोग हुआ है जो कहीं तो कृष्णवाची है तो
कहीं '
सुजान ' नामक उस वेश्या के लिए है जो इनकी प्रेयसी थी । घनानंद के
लिखे पाँच ग्रंथों का पता चलता है –
1. सुजान सागर, 2. विरहलीला, 3. लोकसार, 4. रसकेलिवल्ली, और 5. कृपाकांड ।
आचार्य शुक्ल के अनुसार, इसके अतिरिक्त इनके कवित्त और सवैयों के फुटकर संग्रह
भी मिलते हैं जिनमें 150 से लेकर 400 तक छंद
संकलित हैं । डॉ. नगेंद्र के अनुसार, घनानंद के कुछ उपलब्ध कवित्त - सवैयों की संख्या 752
है , पदों की संख्या 1,057 तथा दोहे - चौपाइयों की संख्या 2,354 है ।
घनानंद के विषय में अन्य उल्लेखनीय तथ्य इस प्रकार है—
1. प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और धीर पथिक तथा अबादानी का ऐसा
दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ ।
2.भाषा पर जैसा अचूक अधिकार घनानंद का था वैसा और किसी कति का
नहीं ।
3.घनानंद उन विरले कवियों में हैं जो भाषा की लाक्षणिक पदावली
की शक्ति से परिचित हैं । आचार्य शुक्ल के अनुसार- '' भाषा के लक्षण एवं व्यंजक बल की सीमा कहाँ तक है, इसकी पूरी
परख इन्हीं को थी ।"
4. घनानंद ने यद्यपि संयोग और बियोग दोनों का चित्रण किया है
तथापि इनका वियोग वर्णन अति प्रसिद्ध है । घनानंद के वियोग वर्णन अति प्रसिद्ध हैं
। घनानद के वियोग वर्णन में बिहारी की तरह बाहरी ताप की नाप - जोख नहीं है अपितु
जो कुछ हलचल है, वह
भीतर की है ।
5. घनानंद अतर्वृत्तियों के निरूपक कवि हैं । वियोग में हदय
अंतर्मुखी हो जाता है । विरह वेदना में हृदय की पीड़ा, छटपटाहट एवं कसका कितनी बढ़ जाती है, इसका पता पनानर के कवित्त सवैयों में प्रमुखता से चलता है ।
6. लाक्षणिक मूर्तिकला एवं प्रयोग वैचित्र्य को जो छटा घनानंद
की भाषा में दिखाई पहती है, वह बाद में आधुनिक काल की छायावादी कविता में ही
उपलब्ध होती है, अन्यत्र
नहीं ।
घनानंद की कविता के कुछ सरस उदाहरण प्रस्तुत है-
1.
अति
सूची सनेह को मारग हैं, जह'नेकु सयानप बांक नहीं ।
वहां सांचे चले तजि
आपुनपी,
झिझके कपटी जो निसाँक नहीं ।।
2.
परकारज
देह को धारै फिरी , परजन्य जधारथ है - दरसौ ।
निधि नौर सुधा के
समान करो , सबही
विधि सुंदरता सरसौ।
3.
एरे वीर
पौन तेरा सर्वे और गौन वीरी,तो सो और कौन मनै डरकाँही बानि दै।
जगत के प्रान छोटे
बड़े सौ समान, धन
आनंद -विधान - सुखदान दुखियानि दै ।।
घनानंद को
स्वच्छनंदतावादी कवि इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने उस समय के बंधी बंधाई
परिपाटि को टोड़कर अपने स्वच्छन्द भावधारा को अपने काव्य का विषय बनाया।
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