अमीर खुसरो के मुकरियाः-ugc//net jrf//hindi literature//
जिस काव्य या कविता
में प्रश्नों के साथ उत्तर भी दिए जाते है, ऐसे काव्य को मुकरियाँ कहते है ।
मुकरियों के
लिए विकास का कार्य सर्वाधिक अमीर खुसरो के द्वारा किया गया है अमीर खुसरो द्वारा
रचीत प्रमुख मुकरियाँ इस प्रकार है :-
ð रात समय वह
मेरे आवे । भोर भये वह घर उठि जावे ।।
यह अचरज है
सबसे न्यारा । ऐ सखि साजन ? ना सखि...तारा ।।
ð नंगे पाँव फिरन
नहिं देत । पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत ।।
पाँव का चूमा
लेत निपूता । ऐ सखि साजन ?
ना सखि...जूता ।।
ð वह आवे तब शादी
होय । उस बिन दूजा और न कोय ।।
मीठे लागें
वाके बोल । ऐ सखि साजन ?
ना सखि...ढोल ।।
ð जब माँगू तब जल
भरि लावे । मेरे मन की तपन बुझावे ।।
मन का भारी तन
का छोटा । ऐ सखि साजन ?
ना सखि...लोटा ।।
ð बेर - बेर
सोवतहिं जगावे । ना जायूँ तो काटे खावे ।।
व्याकुल हुई
मैं हक्की बक्की । ऐ सखि साजन ? ना सखि...मक्खि ।।
ð अति सुरंग है
रंग रंगीलो । है गुणवंत बहुत चटकीलो ।।
राम भजन बिन
कभी न सोता । क्यों सखि साजन ? ना सखि...तोता ।।
ð अर्ध निशा वह
आया भौन । सुंदरता बरने कवि कौन ।।
निरखत ही मन
भयो अनंद । क्यों सखि साजन ? ना सखि...चंदा ।।
ð शोभा सदा
बढ़ावन हारा । आँखिन से छिन होत न न्यारा ।।
आठ पहर मेरो
मनरंजन । क्यों सखि साजन ?
ना सखि...अंजन ।।
ð जीवन सब जग
जासों कहै । वा बिनु नेक न धीरज रहै ।।
हरै छिनक में
हिय की पीर । क्यों सखि साजन ? ना सखि...नीर ।।
ð बिन आये सबहीं
सुख भूले । आये ते अँग - अँग सब फूले ।।
सीरी भई लगावत
छाती । क्यों सखि साजन ?
ना सखि...पाति ।।
ð लिपट लिपट के
वा के सोई, छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत
बजे तो ताड़ा ऐ सखि साजन ?
ना सखि...जाड़ा !.
ð बाला था जब
सबको भाया,
बड़ा हुआ कछ काम न आया ।
खुसरो कह दिया
उसका नाव ,
अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव ।। उत्तर - दिया ।
ð नारी से तू नर
भई और याम बरन भई सोय ।
गली - गली कूकत
फिरे कोइलो - कोइलो लोय ।। उत्तर - कोयल ।
ð एक नार तरवर से
उतरी , सर पर वाके
पांव
ऐसी नार कुनार
को , मैं ना देखन
जाँव ।। उत्तर - मैना ।
ð सावन भादों
बहुत चलत है माघ पूस में थोरी ।
अमीर खुसरो यूँ
कहें तू बुझ पहेली मोरी । उत्तर - मोरी ( नाली )
ð श्याम बरन की
है एक नारी,
माथे ऊपर लागै प्यारी ।
जे मानुस इस
अरथ को खोले,
कुत्ते की वह बोली बोले ।। उत्तर- भौं ( भौंए आँख के ऊपर
होती हैं । )
ð एक गुनी ने यह
गुन कीना ,
हरियल पिंजरे में दे दीना ।
देखा जादूगर का
हाल , डाले हरा
निकाले लाल । उत्तर- पान
ð एक थाल मोतियाँ
से भरा , सबके सर पर
औंधा धरा ।
चरों ओर वह
थाली फिरे ,
मोती उससे एक न गिरे । उत्तर - आसमान
ð गोली मटोल और
छोटा - मोटा ,
हर दम वह तो जमीं पर लोटा ।
खुसरो कहे नहीं
है झूठा ,
जो न बूझे अकिल को खोटा ।। उत्तर- लोटा ।
ð एक नार कुँए
में रहे ,
वका नीर खेत में बहे ।
जे कोई वाके
नीर को चाखे ,
फिर जीवन की आस न राखे ।। उत्तर - तलवार
ð एक जानवर रंग
रंगीला , बिना मारे वह
रोवे ।
डस के सिर पर
तीन तिलाके ,
बिन बताए सोवे ।। उत्तर
ð चाम मांस वाके
नहीं नेक ,
हाड़ मास में वाके छेद ।
मेहि अचंभो आवत
ऐसे , वामे जीव बसत
है कैसे ।। उत्तर - पिंजड़ा ।
ð कभू करत है
मीठे बैन,
कभी करत है रूखे नैंन ।
ऐसा जग में कोऊ
होता , ऐ सखि साजन न
सखि ! उत्तर- तोता ।।
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