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litrature//pyQ अमीर खुसरों की मुकरियाः-
ð रात समय वह
मेरे आवे, भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है
सबसे न्यारा ऐ सखि साजन?
ना सखि तारा !
ð नंगे पाँव फिरन
नहिं देत, पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाँव का चूमा
लेत निपूता ऐ सखि साजन ?
ना सखि जूता !
ð ऊंची अटारी
पलंग बिछायो,मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां
भयी आनंद ऐ सखि साजन ?
ना सखि चांद !
ð जब माँगू तब जल
भरि लावे, मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन
का छोटा, ऐ सखि साजन ?
ना सखि लोटा !
ð वो आवे तो दी
होय, उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागे वा
के बोल ऐ सखि साजन ?
ना सखि ढोल !
ð बरे बरे
सोवतहिं जगावे, ना जायूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई
मैं हक्की,बक्की ऐ सखि साजन ? ना सखि मक्खी !
ð अति सुरंग है
रंग रंगीले है,
गुणवंत बहुत
चटकीलो, राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन ? ना सखि तोता !
ð आप हिले और
मोहे हिलाए वा का हिलना मोए
मन भाए हिल हिल
के वो हुआ निसंखा ऐ सखि साजन ? ना सखि पंखा !
ð अर्ध निशा वह
आया भौन,सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन
भयो अनंद ऐ सखि साजन ?
ना सखि चंद !
ð शोभा सदा
बढ़ावन हारा, आँखिन से छिन होत न न्यारा
आठ पहर मेरो
मनरंजन ऐ सखि सजन ?
ना सखि अंजन !
ð जीवन सब जग
जासों कहै वा बिनु नेक
न धीरज रहै हरै
छिनक में हिय की पीर ऐ सखि साजन ? ना सखि नीर !
ð बिन आये सबहीं
सुख भूले आये ते अँगे - अंग सब फूल
सीरी भई लगावत
छाती ऐ सखि साजन ?
ना सखि पाती !
ð सगरी रैन
छतियां पर राख,रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया
उतार ऐ सखि साजन ?
ना सखि हार !
ð पड़ी थी मैं
अचानक चढ़ आयो जब उतरयो तो पसीनो आयो सहम गई नहीं सकी पुकार ऐ सखि साजन ? ना सखि बुखार !
ð सेज पड़ी मोरे
आंखों आए डाल सेज मोहे मजा दिखा
ए किस से कहूं
अब मजा में अपना ऐ सखि साजन ? ना सखि अपना !
ð बखत बखत मोए वा
की आस रात दिना ऊ रह
त मो पास मेरे मन को सब करत है काम ऐ सखि साजन ? ना सखि राम !
ð सरब सलोना सब
गुन नीका वा बिन सब जग लागे फीका वा के सर पर होवे कोन ऐ सखि ' साजन ' ना सखि ! लोन (
नमक )
ð सगरी रैन मिही
संग जागा भोर भई तब बिछुडन लागा उसके बिछुडत फाटे हिया ' ए सखि ' साजन ' ना , सखि ! दिया (
दीपक )
ð राह चलत मोरा
अंचरा गहे । मेरी सुने न अपनी कहे ना कुछ मोसे झगडा - टंटा ऐ सखि साजन ना सखि
कांटा ! बरसा –
ð बारस वह देस
में आवे ,
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे , वा खातिर मैं
खरचे दाम ,
ऐ सखि साजन न सखि ! आम ।।
ð नित मेरे घर
आवत है , रात गए फिर
जावत है । मानस फसत काऊ के फंदा , ऐ सखि साजन न सखि ! चंदा ।।
ð आठ आहर मेरे
संग रहे ,
मीठी प्यारी बातें करे । याम बरन और राती नैना , ऐ सखि साजन न
सखि ! मैंना ।।
ð श्याम बरन और
दाँत अनेक लचकत जैसे नारी । छोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ री ।। उत्तर -
आरी
ð हाड़ की देही
उज् रंग ,
लिपटा रहे नारी के संग ।
चेरी की ना खून
किया वाका सर क्यों काट लिया ।
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