Saturday, 22 May 2021

ugc/net/hindi litrature//pyQ अमीर खुसरों की मुकरियाः-

 

ð  रात समय वह मेरे आवे, भोर भये वह घर उठि जावे

यह अचरज है सबसे न्यारा ऐ सखि साजन? ना सखि तारा !

 

ð  नंगे पाँव फिरन नहिं देत, पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत

पाँव का चूमा लेत निपूता ऐ सखि साजन ? ना सखि जूता !

 

ð  ऊंची अटारी पलंग बिछायो,मैं सोई मेरे सिर पर आयो

खुल गई अंखियां भयी आनंद ऐ सखि साजन ? ना सखि चांद !

 

ð  जब माँगू तब जल भरि लावे, मेरे मन की तपन बुझावे

मन का भारी तन का छोटा, ऐ सखि साजन ? ना सखि लोटा !

 

ð  वो आवे तो दी होय, उस बिन दूजा और न कोय

मीठे लागे वा के बोल ऐ सखि साजन ? ना सखि ढोल !

 

ð  बरे बरे सोवतहिं जगावे, ना जायूँ तो काटे खावे

व्याकुल हुई मैं हक्की,बक्की ऐ सखि साजन ? ना सखि मक्खी !

 

ð  अति सुरंग है रंग रंगीले है,

गुणवंत बहुत चटकीलो, राम भजन बिन कभी न सोता

ऐ सखि साजन ? ना सखि तोता !

 

ð  आप हिले और मोहे हिलाए वा का हिलना मोए

मन भाए हिल हिल के वो हुआ निसंखा ऐ सखि साजन ? ना सखि पंखा !

 

ð  अर्ध निशा वह आया भौन,सुंदरता बरने कवि कौन

निरखत ही मन भयो अनंद ऐ सखि साजन ? ना सखि चंद !

 

ð  शोभा सदा बढ़ावन हारा, आँखिन से छिन होत न न्यारा

आठ पहर मेरो मनरंजन ऐ सखि सजन ? ना सखि अंजन !

 

ð  जीवन सब जग जासों कहै वा बिनु नेक

न धीरज रहै हरै छिनक में हिय की पीर ऐ सखि साजन ? ना सखि नीर !

 

ð  बिन आये सबहीं सुख भूले आये ते अँगे - अंग सब फूल

सीरी भई लगावत छाती ऐ सखि साजन ? ना सखि पाती !

 

ð  सगरी रैन छतियां पर राख,रूप रंग सब वा का चाख

भोर भई जब दिया उतार ऐ सखि साजन ? ना सखि हार !

 

ð  पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो जब उतरयो तो पसीनो आयो सहम गई नहीं सकी पुकार ऐ सखि साजन ? ना सखि बुखार !

ð  सेज पड़ी मोरे आंखों आए डाल सेज मोहे मजा दिखा

ए किस से कहूं अब मजा में अपना ऐ सखि साजन ? ना सखि अपना !

 

ð  बखत बखत मोए वा की आस रात दिना ऊ रह

त मो पास मेरे मन को सब करत है काम ऐ सखि साजन ? ना सखि राम !

 

ð  सरब सलोना सब गुन नीका वा बिन सब जग लागे फीका वा के सर पर होवे कोन ऐ सखि ' साजन ' ना सखि ! लोन ( नमक )

 

ð  सगरी रैन मिही संग जागा भोर भई तब बिछुडन लागा उसके बिछुडत फाटे हिया ' ए सखि ' साजन ' ना , सखि ! दिया ( दीपक )

 

 

ð  राह चलत मोरा अंचरा गहे । मेरी सुने न अपनी कहे ना कुछ मोसे झगडा - टंटा ऐ सखि साजन ना सखि कांटा ! बरसा –

 

ð  बारस वह देस में आवे , मुँह से मुँह लाग रस प्यावे , वा खातिर मैं खरचे दाम , ऐ सखि साजन न सखि ! आम ।।

 

ð  नित मेरे घर आवत है , रात गए फिर जावत है । मानस फसत काऊ के फंदा , ऐ सखि साजन न सखि ! चंदा ।।

 

ð  आठ आहर मेरे संग रहे , मीठी प्यारी बातें करे । याम बरन और राती नैना , ऐ सखि साजन न सखि ! मैंना ।।

 

ð  श्याम बरन और दाँत अनेक लचकत जैसे नारी । छोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ री ।। उत्तर - आरी

 

ð  हाड़ की देही उज् रंग , लिपटा रहे नारी के संग ।

चेरी की ना खून किया वाका सर क्यों काट लिया ।


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