पल्लवन क्या है ?proyojanmulak hindi/rajbhasha/official
संक्षेपण से उलटी लेखन प्रक्रिया का नाम पल्लवन है ।
संक्षेपण में एक बड़ी और लंबी सी रचना को छोटा ( संक्षिप्त ) करना होता है, तो इसके ठीक विपरीत पल्लवन में एक संक्षिप्त सी रचना या
उक्ति को विस्तार से बताना पड़ता है ।
पल्लवन का अर्थ है फलना-फूलना, पनपना । पेड़ पौधे कैसे फलते फूलते या पनपते हैं ?
एक बीज में सब कुछ रहता है- रूप, रस, गंध आदि । बस, उसे रोपने की आवश्यकता है, उपयुक्त हवा, पानी, धूप लगने से वह बढ़ता है, पनपता है, फलता फूलता है । उस बीज में निहित सब गुण बाहर आ जाते हैं ।
ठीक इसी प्रकार एक छोटे सूत्र , सूक्त , फार्मूला या सुभाषित में इतने गहन भाव या विचार निहित रहते
हैं कि वे आसानी से समझ में नहीं आते । जब आप चिंतन - मनन द्वारा अपना ध्यान लगाते
हैं तो उनके अर्थ खुलते हैं पौधे के पत्तों और फल - फूलों की तरह , और फिर फूलों की पंखुड़ियों की तरह अनेक सहचर भाव तथा विचार
आने लगते हैं । प्रायः सिद्धहस्त लेखक और मनीषी वक्ता कम से कम शब्दों में ऐसी
गूढ़ बातें कह जाते हैं जो उस भाषा की सूक्तियां बन जाती है । प्रायः कवि जैसे
रहीम अपने दोहों में , कबीर अपनी साखियों और सबदों में, तुलसी अपनी चौपाइयों या दूसरे छंदों में , कुछ अन्य लेखक अपनी कृतियों में , कोई महापुरूष अपने प्रवचनों या भाषणों में एक - आध वाक्य
में इतनी बड़ी बात कह जाते हैं कि उसकी व्याख्या करने की गुंजायश रहती है- उस
उक्ति के भाव को स्पष्ट करना पड़ता है । इसी प्रक्रिया को पल्लव कहते है , अर्थात् किसी सूत्रबद्ध और सुगठित भाव या विचार को विस्तार
से प्रस्तुत करना ।
इस प्रकार पल्लवित गद्यांश एक छोटा सा निबंध हो जाता है । पल्लवन
- लेखन में यह परीक्षण किया जाता है कि परीक्षार्थी किसी विशिष्ट उक्ति को अच्छी
तरह समझ पाया है या नहीं और यदि समझ पाया हो तो वह उसका स्पष्टीकरण अच्छी शुद्ध
हिन्दी में कर सका है या नहीं ।
पल्लवन लेखन की विधि
1. दिये गए वाक्य सुभाषित को अच्छी तरह पढ़िए और उस पर
चिंतन - मनन कीजिए ताकि उसका अर्थ और अभिप्राय पूरी तरह से समझ में आ जाए ।
2. सोचिए कि इस उक्ति के अंतर्गत क्या क्या विचार या भाव आ
गए हैं और आपने मन में इसके पक्ष में क्या - क्या विचार प्रस्फुटित होते हैं ।
क्या आप इस मूल कथन की पुष्टि में कोई उदाहरण, दृष्टान्त या प्रमाण दे सकते हैं ?
3. विस्तार उसी बात का होना चाहिए जो मूल में हों ; जोड़ना उतना है जो निश्चित रूप से उसी विषय के अनुकूल हो ।
4. आप यह समझ लीजिए कि मूल उक्ति किसी लंबी - चौड़ी बात का
निष्कर्ष स्वरूप है । सोचिए कि विचारों के किस क्रम से यह बात अंत कही गई होगी ।
5. इसके बाद लिखना शुरू कर दें । आपका लेख कितना बड़ा हो , इस बारे में कोई नियम नहीं है । एक पैराग्राफ भी हो सकता है
,
दो - तीन भी । आप अलग -
अलग छोटे - छोटे पैराग्राफ लिखिए और देखते जाइए कि मूल की सब बातें आ गई हैं । यदि
परीक्षक कहे कि इतने शब्दों में पल्लवन करें तो इस सीमा - निर्धारण का ध्यान रहे ।
यदि कोई निर्देश न हो तो तीन - साढ़े तीन सौ शब्द काफी समझे जाएं ।
6. आप अपने लेख की पुष्टि में ऐसे उद्धरण भी दे सकते हैं
जिनकी संगति उस विषय से निश्चित हो ।
7. अप्रासंगित बातें मत उठाएं , उक्ति की आलोचना या टीका - टिप्पणी या विरोध न करें ।
8. मैं और हम का प्रयोग भूलकर भी न करें । अन्य पुरुष में
बात करें ।
9. भाषा सरल , शुद्ध और स्पष्ट होनी चाहिए । अलंकृत भाषा से बचें । छोटे -
छोटे वाक्य अच्छे होते हैं ।
10. अपना लेख एक बार दोहरा लें । कोई शब्द , कोई अक्षर या मात्रा या विराम - चिन्ह छूट गये हों तो ठीक
कर लें ।
11. लेख में कोई विचार , वाक्य या वाक्यांश दोहराया न जाए ।
12. परीक्षा से पहले घर पर अभ्यास करते रहिए तो आपको कोई
कठिनाई नहीं होगी । निर्धारित समय से पहले आप अपना काम कर लेंगे ।
पल्लवन पल्लवन की विशेषताएँ :
1. पल्लवन, लोकोक्ति , मुहावरा अथवा महापुरुषों के कथन या सार का किया जा सकता है
।
2. पल्लवन में प्रत्यक्ष कथन तथा पुनरावृत्ति के लिए कोई स्थान
नहीं होता ।
3. पल्लवन में निवंधात्मकता के गुण होते हैं ।
4. कथन में छिपे हुये प्रमुख और गौण विचार समझने के उपरान्त ही
कथन का विस्तार किया जाता है ।
5. पल्लवन व्यास, शैली में ( विस्तार शैली ) में लिखा जाता है ।
6. पल्लवन की भाषा कथन के अनुकूल होनी चाहिए ।
7. पल्लवन उत्तम व मध्यम पुरूष की अपेक्षा अन्य पुरुष में करना
चाहिए ।
8. पल्लवन की भाषा सरल , सहज व सुगम होनी चाहिए । पल्लवन करते समय कथन की मूल भावना
से नहीं भटकना चाहिए ।
9. विचारों में क्रम बद्धता होनी चाहिए ।
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