Saturday, 22 May 2021

मैथ्यू आर्नल्ड - आलोचना का स्वरूप और कार्य//ugc net jrf//hindi litrature//पाश्चात्य काव्यशास्त्र

 

मैथ्यू आर्नल्ड एक महान् आधुनिक आलोचक है, क्योंकि आधुनिक अंग्रेजी आलोचना का प्रारम्भ इन्हीं से माना जाता है । यद्यपि इनका साहित्यिक जीवन काव्य रचना से हुआ है , फिर भी स्वभाव और कर्म दोनों से यह पहले आलोचक है ,बाद में कवि । आर्नल्ड का मत है कि साहित्य और उसकी समस्याएँ जीवन की समस्याओं से अविच्छिन्न है । अतः साहित्य का मूल्यांकन जीवन के संदर्भ में होना चाहिए तथा उसे पूर्ण सास्क तिकता के साथ स्थापित करना चाहिए । वस्तुतः कवि की महानता इस बात में है कि उसके साहित्य ने युग की साहित्यिक और सामाजिक आवश्यकताओं को किरा सीमा तक पूरा किया है ।

मैथ्यू आर्नल्ड ने प्रत्येक क्षेत्र में पूर्णता को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है । उनके अनुसार संरक ति पूर्णता काही दूसरा नाम है और काव्य संरक ति का अन्यतम साधन है । उन्होंने काव्य में स्वच्छन्दतावादी ( रोमांटिक ) मान्यताओं का खण्डन किया है और प्राचीन आभिजात्यवादी सिद्धान्तों की पुनः स्थापना पर बल दिया है । यूनान के काव्यशास्त्रियों में अरस्तू उनके आदर्श थे और होमर के महाकाव्य तथा गूनानी नाटककारों के दुसान्त नाटक उनके साहित्यिक प्रविमान के निर्धारक थे । आनल्ड एक ऐसी सीमा रेखा पर खड़े दिखाई देते है जो प्राचीन और नवीन तथा परम्परा और आधुनिकता की केन्द्रबिन्दु है । उन्होंने काव्य में सरलता , स्वाभाविकता आदि अभिजात गुणों का समर्थन किया है और उनका प्रयोग काव्य में नहीं , आलोचना में भी किया है ।

काव्य सम्बन्धी विचारः-

आर्नल्ड की साहित्य समीक्षा उनकी सामाजिक एवं सांस्कतिक समीक्षा का ही अंग है । आर्नल्ड अपने साहित्य में नैतिक और आत्मिक मूल्यों के हास के प्रति चिंतित थे । यह मध्यम और निर्धन वर्ग को अराजकता से बचाकर सुसंस्क त बनाना चाहते थे । इस कार्य के लिए यह काग्य को अत्यन्त शक्तिशाली साधन मानते थे । आर्नल्ड के अनुसार काव्य का स्वतन्त्र उद्देश्य जहाँ आनन्द प्रदान करता है वहीं वह सांस्कृतिक उत्थान का माध्यम भी है । इस दष्टि से आर्नल्ड के विचार अरस्तू के समान है । काव्य की परिभाषा देते हुए आर्नल्ड ने कहा – A Criticism of  under conditions fined for such a criticism by the laws of poetic truth and poetic beauty. "अर्थात् " काव्य जीवन की आलोचना है और यह आलोचना काव्य सत्य एवं काव्य साच्चर्य के नियमों द्वारा निर्धारित परिस्थितियाँ में होती है । इस प्रकार आनंद काग्य और जीवन के वास्तविक अनुभवों में गहन सम्बन्ध मानता है । किन्तु यहाँ प्रश्न उठता है कि जीवन के इस वास्तविक अनुमय को काम्य में कैसे व्यक्त किया जाए? आर्नल्ड का अभिमत है कि यह कार्य अरस्तू के अनुकरण सिद्धान्त के समान सिद्ध होता है । जीवन की आलोचना का अर्थ जीवन का ऐसा प्रस्तुतीकरण है जिसमें वस्तुओं की गहन एवं सार्वभौम महता साकार हो उठती है ।

आलोचना क्या है ?

आर्नल्ड ने साहित्य के मूल रूप में जीवन की आलोचना ' माना है । आलोचना की परिभाषा देते हुए उन्होंने कहा है . 'disinterested endeavour to learn and propagate the best that is known and thought in the world and thus to establish a current of fresh and true ideas. अर्थात् समीक्षा संसार में जो भी उत्तम ज्ञान और चिन्तन है उसके अधिनियम एवं प्रचार का और इस प्रकार खाजा और सम्मे विचारों को प्रभाव के संस्थापन का निस्संग प्रयास है । आलोचक का प्रधान कार्य रचनात्मक क्रियाशीलता के लिए ऐसा वातावरण निर्माण करना है जिसमें सर्वोत्तम विचारों को मानव तक पहुँचाने की क्षमता रखने वाले साहित्य का निर्माण सम्भव है ।

आर्नंल्ड आलोचक का निष्पक्ष होना आवश्यक मानते हैं । यह तमी सम्भव है जब आलोचक वस्तुओं की व्यावहारिकता से दूर रहते हुए दड़तापूर्वक अपने नैसर्गिक नियमों का अनुकरण करता है । बहुत से लोग अपने विचारों पर कोई गूढ , राजनीतिक अथवा व्यावहारिक रंग चढ़ा देते हैं , लेकिन आलोचक को इससे कोई लेना - देना नहीं । आलोचक का इतना कार्य है कि जो बातें संसार में सर्वोत्कष्ट रूप में प्रसिद्ध है अथवा सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है उन्हें समझना और समझकर उनका प्रचार करना जिससे वास्तविक और अभिनव विचारों का प्रचार हो सके । परन्तु इस कार्य में निष्पक्षता और योग्यता की अपेक्षा अधिक रहती है ।

इस प्रकार आर्नल्ड में ' निष्पक्षता ' शब्द को अपने मन एवं विचारों के अनुरूप अर्थ दिया है , जो युग सापेक्ष है । उसमें असत्य , अर्द्ध - सत्य , एकांगी जीवन के अवरोधों से तटस्थ होकर सास्क तिक पूर्णता को आधार मानकर किया जाने वाला मूल्यांकन हैं। उसे पुर्वाग्रह ही समझा जा सकता है।

"यदि वेदना की कार्य में परिणति नहीं होगी तो उससे अब पैदा करने वाली विक त स्थिति उत्पन्न होगी , जो काव्य के लिए उचित नहीं है । इस दृष्टि से मैथ्यू आर्नल्ड शिलर के विचारों के ऋणी हैं ।

काव्य में विषय और उसके चयन का महत्त्व..

मैथ्यू आर्नल्ड की मान्यता है कि कवि को ऐसे उत्कष्ट विषय का चयन करना चाहिए जो स्वयं में रमणीय हो, जिससे प्रस्तुतीकरण में मानवीय स्थायी भावों का सशक्त स्पर्श करके पाठकों को प्रेरणा दी जा सके, क्योंकि समस्त महत्त्व कार्य , उसके चयन एवं निर्माण का है ।

प्रश्न उठता है कि काव्य के शाश्यत विषय क्या है ?

आर्नल्ड का मत है , " मानव के कार्य - व्यापार " उनका कथन है कि " सब है । उपुर्यक्त कार्य चुन लो। उसकी स्थितियों के मूल में निहित भावना से । कर लो । यदि वह हो गया तो अन्य प्रत्येक बात अपने आप हो जाएगी । " An depends upon the subject , choose a fitting action. Penerate yourself with feeling of it's situations, this done , everything else will follow, " प्रश्न उठता है कि जब ड्राइडन ने इनसे सी वर्ष पूर्व कथानक के महत्त्व का निषेध कर चरित्र और शैली के महत्त्व की स्थापना की तो आर्नल्ड कथानक को क्यों अतिशय महत्त्व देते हैं ? उत्तर स्वरूप कहा जा सकता है कि आर्नल्ड की द प्टि मात्र काव्य तक सीमित न होकर समकालीन समस्याओं के समाधान के विधार पर आध त है । इस दिशाहीनता तनाव , संघर्ष की अवस्था में कवि मानव - मूल्यों के निर्माण में अपना योगदान दे सकता है क्योंकि जो सामाजिक सुधार कविता द्वारा सम्भव है वह प्रगीत द्वारा नहीं , उसके लिए कार्य - व्यापार को अपरिहार्य के रूप में महत्त्व देना पड़ेगा ।

मैथ्यू आर्नल्ड कार्य व्यापार द्वारा मानव - स्वभाव शाश्वत भायों और अनुभूतियों के उद्बोधन की घोषणा करते हैं , जो आचार्य शुक्ल के विचारों के निकट है । आचार्य शुक्ल भी ' कविता क्या है ? ' निबन्ध में मूल रूप से और मूल व्यापार की प्रतिष्ठा करते हैं । अन्तर केवल इतना है कि जहाँ आर्नल्ड प्राचीन काव्य परम्परा के महत्त्व पर बल देते हैं , यहाँ आचार्य शुक्ल समकालीन कार्य व्यापारों पर उतना ही बल देकर संतुलन उपस्थित करते हैं ।

अब समस्या यह है कि काव्य का यह विषय किस युग से चुना जाए ? आर्नल्ड का मत है कि कवि मानव की मूल अनुभूतियों को छू सकने वाली ' वस्तु ' का चयन कहीं से भी एवं किसी भी युग से कर सकता है , किन्तु इसके लिए ' वर्तमान ' की अपेक्षा ' अतीत ' अधिक उपयुक्त है- " A great human action of a thousand years ago is more interesting to it than a smaller human action of today . "वस्तुतः आर्नल्ड यह मानते हैं कि समकालीन जीवन से श्रेष्ठ कार्य व्यापार की उपलब्धि सम्भव नहीं है । उनकी मान्यता है कि समकालीन विघटन और अराजकता भरे युग से उत्कष्ट कार्य व्यापार प्राप्ति सम्भव नहीं है ।

किन्तु आर्नल्ड उपरान्त काव्य , कला और साहित्य का जो विकास हुआ है वह इस बात का प्रमाण है कि समकालीन जीवन से विषय ग्रहण करके भी उत्कृष्ट काव्य का निर्माण सम्भव है । नाटक के क्षेत्र में जार्ज बर्नाड शॉ , उपन्यास में जोला तथा नई कविता के विकास में आर्नल्ड के इस मत को असत्य सिद्ध कर दिया है ।

काव्य में नैतिकता-

मैथ्यू आर्नल्ड काव्य के उद्देश्य में मानवतावादी हैं । वे काल को मानव जीवन के उत्थान का एक साधन मानते हैं । यह उत्थान काव्य में नीति - तत्त्व के समावेश से भी सम्भव है । काव्य की सम्पूर्ण विशेषताओं के मध्य नीति तत्त्व पाठकों का आनन्द का आस्वादन कराने के साथ ही नैतिक उत्थान का सन्देश भी दे सके । इसी प्रकार का काव्य लोक कल्याणकारी हो सकता है । उनके अनुसार नीतियुक्त जीवन की अभिव्यक्ति ही काव्य है । उनका कथन है- " The best Poetry will be found to have a power of forming and delighting us as nothing else can . " अर्थात् सर्वोत्तम कविता वह है जिसमें हमारे निर्माण और आनन्द प्रदान करने की ऐसी शक्ति हो जो अन्य में नहीं हो सकती । अतः मान्यता के अनुसार , " जिस काव्य में नीति के विरुद्ध विद्रोह है उसमें जीवन के विरुद्ध विद्रोह है आर जो काव्य नीति के प्रति उदासीन है , वह जीवन के प्रति भी उदासीन है । उनके इस कथन से स्पष्ट है कि वे नीतियुक्त जीवन को ही जीवन मानते हैं और काव्य इसी जीवन का प्रतिबिम्ब है ।

निष्कर्ष-

मैथ्यू आर्नल्ड का समग चिन्तन और आलोचना सम्बन्धी विधार जीवन में एकांगिता के स्थान पर पूर्णता एवं सन्तुलन को स्थापित करने में संलग्न है । इस प्रवृत्ति से उनके चिन्तन में दुर्बलता भी प्रविष्ट हुई है । जैसे सर्जना को द्वितीय श्रेणी का साहित्य मानना , समकालीन जीवन की अपेक्षा प्राचीन काव्यों के काव्य सृजन का आधार मानना आदि । इतना होने पर भी आर्नल्ड का महत्त्व असंदिग्ध है ।

मैथ्यू आर्नल्ड का प्रभाव काफी समय तक पाश्चात्य आलोचना - जगत पर छाया रहा है । जैसे ड्राइडन के समय में अरस्तू को प्रमाण माना जाता था वैसे ही 19 वीं सदी में आर्नल्ड को माना जाता रहा है ।

 

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