शब्द– शक्ति hindi kavyashastra...Ugc net jrf
शब्द – शक्ति मनुष्य अपने मनोगत विचारों को दूसरो पर जिस भाषा
के माध्यम से लिखकर या बोलकर प्रकट करते है , वह भाषा
शब्दों के समूह से मिलकर बनती है ।
शब्द दो प्रकार के होते है 1. सार्थक 2. निरर्थक..
साहित्य या काव्य में सार्थक शब्द ही अपेक्षित है । सार्थक शब्द
के कई अर्थ साहित्यिक दृष्टि से निकलते है जैसे वाचक , लक्षण
और व्यंजक । ये तीन सार्थक शब्द है । शब्द के विभिन्न अर्थ बताने वाले व्यापार अथवा
साधन को शब्द शक्ति कहते है ।
यह तीन प्रकार की होती है ।
1. अभिधा शक्ति जिस शब्द के श्रवण मात्र से उसका परस्पर प्रसिद्ध
अर्थ सरलता से समझ में आ जाए उसे अभिधा शब्द शक्ति कहते है । जैसे : बैल बड़ा उपयोगी
पशु है । रमेश के कान में पीड़ा है । इन वाक्यों में बैल का अर्थ पशु विशेष और कान
का अर्थश्रवण इन्दियों से ही होता है , जो इन
शब्दों के प्रचलित अर्थ है ।
2. लक्षणा शक्ति - लक्षणा शक्ति , शब्द
के वाच्यार्थ या मुख्यार्थ से भिन्न है परन्तु उनके समान अन्य अर्थ को प्रकट करती है
। जब किसी शब्द का अभिधा के द्वारा मुख्यार्थ का बोध नही हो पाता अथवा मुख्यार्थ समझने
में बाधा हो जाती है तब उस शब्द के अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति को लक्षणा शक्ति कहते
है । जैसे- सुदेश बैल है । रमेश के कान नही है इन वाक्यों में सुदेश मनुष्य है पशु
नही हैं किन्तु उसे बैल कहने का तात्पर्य है बैल के समान बुद्धि शून्य है जो दूसरे
के नियंत्रण में रहा है । इसी प्रकार रमेश के कान नही है इसका मतलब होता है कि वह सुनता
नही है । यहां उक्त शब्दों का अर्थ अभिधा शक्ति द्वारा प्रकट न हो कर लक्षणा शक्ति
द्वारा प्रकट होता है ।
3. व्यंजना शक्ति : - जब अभिधा और लक्षणा से अर्थ व्यक्त नहीं
होता है तब व्यंजना शब्द शक्ति की सहायता से व्यंग्यार्थ निकलता है इसको ध्वनि कहते
है । श्रेष्ठ कवियों और साहित्यकारों की रचनाओं में ध्वनि के कारण ही विशेष चमत्कार
होता है । जैसे गंगा में घर है । इसका तात्पर्य है कि गंगा के समान घर की पवित्रता
है । इन्दौर म.प्र . की मुंबई है । इसमें मुंबई शब्द में ऐश्वर्य छिपा है , सम्पन्नता
की जो ध्वनि है वही इंदौर के लिए भी प्रतीत होती है ।
शब्द गुण
शब्द गुण कविता कामिनी को अंलकारों से सुसज्जित करके भी विद्वानों
ने उसके आन्तरिक रूप को ही महत्व दिया है। अलंकार, छंद, से काव्य
का बाहय रूप, सुसज्जित है किन्तु सुन्दर संजीला तन भावपूर्ण मन के बिना तथा
गुण रहित होने से व्यर्थ होता । है अतः मानवोचित गुणों के अनुकूल ही काव्य गुण भी होते
है।
आचार्य दण्डी ने 10 काव्य गुणों का उल्लेख किया है और भोज ने
24 गुणों का । किन्तु साहित्य में काव्य के तीन गुण ही प्रमुख माने गए है । उसी वर्गीकरण
के अन्तर्गत इन्ही तीनों में अन्य सभी गुण समाहित कर लिए है । मुख्य तीन गुण : ( 1
) माधुर्य गुण ( 2 ) ओज गुण ( 3 ) प्रसाद गुण
1. मधुरता के भाव को माधुर्य कहते है मिठास अर्थात् कर्ण प्रियता
ही इसका मुख्य भाव है जिस काव्य के श्रवण से आत्मा द्रवित हो जाए और कानों में मधु
घुल जाए वही माधुर्य गुण युक्त है। यह गुण विशेष रूप से श्रृंगार , शांत
एवं करूण रस में पाया जाता है । माधुर्य गुण की विशेषताएं :
1. कठोर वर्ण यानि सम्पूर्ण ट वर्ण ( ट , ठ , ड , ढ , ण )
के शब्द नही होने चाहिए ।
2.अनुनासिक वर्णों से युक्त असत्य दीर्घ संयुक्त अक्षर नही होने
चाहिए ।
3. लम्बे-लम्बे सामायिक पदों का प्रयोग भी वर्जित है ।
4. कोमलाकांत , मृदु
पदावली एवं मधुर वर्णो ( क , ग , ज , द ) का प्रयोग होना चाहिए । उदाहरण. अ. छाया करती रहे सदा, तुझ
पर सुहाग की छाँह ।
सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे हो, प्रियतम
की बाँह ।।
ब. बसो, मोरे
नैनन में नंदलाल। मोहिनी सूरत , साँवरी सूरत नैना बने बिसाल ।।
2. ओज गुण : जिस काव्य रचना को सुनने से मन में उत्तेजना पैदा
होती है उस कविता में ओज गुण होता है । ओज का सम्बन्ध चित्त की उत्तेजना वृत्ति से
है । इसलिए हृदय जिस काव्य के पढ़ने से या सुनने से हृदय में उत्तेजना आ जाती है, वही
ओज गुण प्रधान रचना होती है । वीर रस रचना के लिए इस गुण की आवश्यकता होती है इस गुण
को उत्पन्न करने के लिए विद्वानों ने निम्न गुणों का विधान किया
1.रचना की शैली एवं शब्द योजना दोनों का ही सुगठित एवं सुनियोजित
होना आवश्यक है ।
2. पंक्ति अथवा छंद की रचना में कही भी शिथिलता होना नही चाहिये
3. रचना में कठोर वर्ण एवं ट वर्ण का आधिक्य होना चाहिए ।
4. लम्बे-लम्बे समासों से युक्त शब्द का प्रयोग होना चाहिए ।
अधिकाधिक संयुक्त अक्षरों का प्रयोग होना चाहिए ।
उदाहरण 1. महलों ने दी आग, झोपडियों
में ज्वाला सुलगाई थी।
वह
स्वतंत्रता की , चिनगारी , अन्तरतम से आई थी ।।
2. हिमाद्री तुंग श्रृंग पर, प्रबुद्ध
शुद्ध भारती ।
स्वयंप्रभा
समुज्वला , स्वतंत्रता पुकारती ।।-
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