Saturday, 15 May 2021

 पाश्चात्य काव्यशास्त्र/स्वच्छन्दतावाद/( Romanticism )/UGC/NET/JRF/HINDI

'स्वच्छन्दतावाद' शब्द अंग्रेजी शब्द 'Romanticism' का अनुवाद है । हिन्दी में इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रन्थ ' हिन्दी साहित्य का इतिहास में किया, जबकि उन्होंने पं. श्रीधर पाठक की कविता के सन्दर्भ में उन्हें 'स्वच्छन्दतावाद' का प्रवर्तक माना है.

रोमाण्टिसिज्म के मूल रूप Romance अथवा Romanz हैं, जिसका अर्थ होता है वह कपोल- कल्पना - प्रधान अपकर्षी आख्यान अथवा साहित्य जो मध्ययुगीन स्वच्छन्द वृत्ति का परिचायक है । वस्तुतः यूरोप के मध्ययुगीन साहित्य में रोमांस का प्राधान्य रहा । रोमांस - साहित्य प्रेम , शौर्य , छल - कपट एवं उद्दाम वासनाओं से परिपूर्ण था ।

शिपले के अनुसार विश्वकोश में रोमांटिक शब्द का अंग्रेजी में सर्वप्रथम प्रयोग सन् 1654 ई . के लगभग किया गया , जिसका अर्थ Like aromance के समान किया गया है । रोमाण्टिक शब्द को एक काव्य - प्रवृत्ति या वाद के रूप में सर्वप्रथम प्रयुक्त करने वाले थे , जर्मन आलोचक फ्रेड्रिक श्लेगल, जिन्होंने 1798-1800 के मध्य इस शब्द का प्रयोग ' क्लासिसिज्म ' के विरोधी अर्थों में ' एथेन्डम ' Athendum में किया । तब से लेकर इस शब्द के विभिन्न प्रकार से अर्थ किये जा चुके हैं ।

स्वच्छन्दतावाद का उद्भव और विकास - स्वच्छन्दतावाद के उद्भव और विकास में सामाजिक , राजनीतिक और दार्शनिक तथा साहित्यिक कारण रहे हैं । ( सामाजिक दृष्टि से स्वच्छन्दतावाद का उदय सामन्ती समाज - व्यवस्था का अन्त तथा औद्योगीकरण के कारण उत्पन्न पूँजीवादी अर्थ - व्यवस्था के उद्भव से माना जा सकता है । चूंकि उपयुक्त घटनाएँ विभित्र देशों में विभित्र समयों पर हुई हैं , अतः स्वच्छन्दतावाद का उदय भी विभित्र देशों में अलग - अलग समय पर हुआ है । राजनीतिक दृष्टि से स्वच्छन्दतावाद के समय उदय में अमेरिकन स्वातन्त्र्य - युद्ध और उसके बाद सन् 1789 में फ्रांसीसी क्रान्ति का महत्वपूर्ण योग रहा है । )

दार्शनिक दृष्टि से स्वच्छन्दतावाद साहित्यिक प्रवृत्ति पर रोक्ट्सबरी , वर्क , मोरिटज आदि दार्शनिकों का प्रभाव पड़ा है । स्वच्छन्दतावाद को प्रभावित एवं पुष्ट करने वाले सशक्त फ्रांसीसी साहित्यकारों के नाम हैं - लॉनजाइ यंग , पर्सी , रूसो , कपूर , थॉमस . ग्रे आदि । इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम है रूसों का , जिसने मानव स्वातन्त्र्य पर सम्पूर्ण बल देते हुए यह नारा प्रदान किया- " Man is born free but is bound everywhere in chains . " एक विश्वव्यापी आन्दोलन - स्वच्छन्दतावाद एक विश्वव्यापी आन्दोलन रहा है । ( क ) शाश्वत तत्व के रूप में , तथा ( ख ) ऐतिहासिक आन्दोलन के रूप में । दोनों ही वर्गों के विद्वानों के मन्तव्यों का सार यह है कि स्वच्छन्दतावादी तत्व संसार के प्रत्येक साहित्य में आदिकाल से अब तक बराबर विद्यमान रहे है । किसी समय विशेष में इन तत्वों की साहित्य - विशेष में विशेष प्रबलता हो जाती है । कविता में इन तत्वों की सर्वाधिक प्रबलता पाई जाती है तथा अन्य विधाओं में इसकी मात्रा कम हो जाती है ।

हिन्दी में स्वच्छन्दतावादी आन्दोलन - स्वच्छन्दतावादी काव्य - लहर सर्वप्रथम सन् 1789-1805 में इंग्लैण्ड और जर्मनी में आई । इंग्लैण्ड में स्वच्छन्दतावादी आन्दोलन का मार्ग प्रशस्त करने वाले दो विदेशी स्कॉच , कवि राबर्ट बर्न्स तथा विलियम ब्लैक थे । इनके बाद विलियम वर्ड्सवर्थ , कोलरिज , बायरन , कीट्स , सर वाल्टर स्कॉट आदि के द्वारा इस आन्दोलन को पल्लवित एवं विकसित किया गया ।

भारत में स्वच्छन्दतावादी प्रभाव अंग्रेजी के माध्यम से सर्वप्रथम बंगला साहित्य में गृहित हुआ । बंगला के माध्यम से यह आन्दोलन हिन्दी में 20 वीं शती के द्वितीय दशक में आया । इस आन्दोलन पर अंग्रेजी और बंगला का मिला - जुला प्रभाव था । हिन्दी में यह छायावाद कहलाया । इसकी कालावधि सन् 1920 से सन् 1936 तक मानी जाती है । सूर्यकान्त त्रिपाठी ' निराला ' , जयशंकर प्रसाद ' , सुमित्रानन्दन पन्त , महादेवी वर्मा , डॉ . रामकुमार वर्मा , इसके प्रमुख कवि हैं । अंग्रेजी के स्वच्छन्दतावाद और हिन्दी के छायावाद की प्रवृत्तियों में पर्याप्त साम्य है । स्वच्छन्दतावाद की विशेषताएँ - विद्वानों ने स्वच्छन्दतावाद की अनेक प्रकार से परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं तथा उसके अनेक लक्षण बताने का प्रयास किया है । समग्र रूप में स्वच्छन्दतावाद की विशेषताएँ एवं लक्षण अग्रांकित हैं (1) व्यक्तिवाद और आत्मनिष्ठता - स्वच्छन्दतावादी कवि - कर्म को उपयोगितावादी अथवा परान्त - सुखायवादी दृष्टिकोण से नहीं देखते हैं , वे काव्य को आत्म - तुष्टि एवं आत्माभिव्यक्ति का मात्र हेतु मानते हैं ।

(2) कल्पना विलास - ये कवि कल्पना के स्वच्छन्द प्रवाह में विश्वास करते हैं और कल्पना पर विवेक के अंकुश की आवश्यकता नहीं मानते हैं । इनके मतानुसार कल्पना मानव मस्तिष्क की श्रेष्ठतम प्रक्रिया है। (3) भावातिरेक अथवा भाव - प्रवणता ये कवि कल्पनाशीलता के साथ भाव - प्रवणता सम्पृक्त करते हैं तथा स्वच्छन्द भावाभिव्यंजना तथा भावों के सहज उच्छरण पर बल को देते हैं । भावाभिव्यंजनावादी विचारधारा के कारण ही यह साहित्य एक प्रकार से अवसाद , निराशा , उदासी , करूणा , वेदना एवं दुखानुभव की प्रचुरता से ओत - प्रोत है । प्रसादजी की कविताएँ विशाद एवं आँसू , महादेवीजी का गीत - ' पीड़ा मैं तुमको ढूँढूँ , तुममें ढूँढूंगी पीड़ा , पन्त की यह कविता - ' वियोगी होगा पहला कवि , आह से उपजा होगा गान ' आदि 86 पाश्चात्य काव्यशास्त्र इस कोटि की भावाभिव्यंजना के उदाहरण है ।

(4) अतीत प्रेम और भविष्योन्मुखी दृष्टि - इन कवियों के लिए कल्पना - जगत् अधिक सुन्दर और सत्य है । (5) प्रकृति के प्रति अनुराग - स्वच्छन्दतावादी कवियों ने प्रकृति के रम्य रूपों का उद्घाटन बहुत मनोयोग के साथ किया है ।

(6) रहस्योन्मुखी दृष्टि तथा विराट् के प्रति आकर्षण - स्वच्छन्दतावादी काव्य - धारा कल्पनातिरेक के कारण रहस्योन्मुखी है । ये कवि प्रकृति और मनुष्य के विराट् पहलुओं को उद्घाटित करने में निरन्तर प्रयत्नशील दिखाई देते हैं ।

(7) राष्ट्र - प्रेम एवं मानवतावादी दृष्टिकोण - स्वच्छन्दतावादी कवियों का राष्ट्र प्रेम सच्चे अर्थों में राष्ट्र की आत्मा का प्रेम है । इनका राष्ट्र - प्रेम मानवतावादी आधारभूमि पर प्रतिष्ठित है । इनका प्रेम देश की मिट्टी से, देश की प्रकृति से , देश के पशु - पक्षियों से , देश के निवासियों से सच्चा प्रेम है । निराला और प्रसाद के काव्यों में राष्ट्र प्रेम की बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति हुई है । ( 8 ) अभिव्यंजनावादी पद्धति एवं विद्रोही दृष्टिकोण - विषय - वस्तु और शिल्प ( भाषा - शैली ) दोनों ही क्षेत्रों में इन कवियों ने परम्पराओं को अस्वीकार किया है । विषय - वस्तु में क्षेत्र ये अभिजात्यवादी विषयों के स्थान पर सामान्य विषयों को ही वरीयता देते हैं - इनके लिये कथा - वस्तु का उदात्त होना अनिवार्य नहीं है । भाषा शैली के सन्दर्भ में इन कवियों ने प्राचीन शास्त्रवादी समस्त परम्पराओं को नकारा है । अपने काव्य में प्रतीक विधान , लाक्षणिक - प्रयोग , रूपक , बिम्ब , नाद - सौन्दर्य , नवीन छन्दों का प्रयोग , नये उपमानों का प्रयोग आदि के द्वारा ये कवि अपने कल्पना - लोक को रँगते हुए देखे जा सकते हैं ।

(9) सौन्दर्यमयी दृष्टि एवं ऐन्द्रियपरकता सौन्दर्य का अर्थ रमणीयता है । जिस वस्तु या व्यक्ति को देखकर हम आत्म विस्मृत हो जाएँ , हमें अपनी सुधि - बुधि न रह जाये , वह वस्तु सुन्दर कही जाती है । जिस वस्तु के कारण आत्म विस्मृति जितनी देर तक हो, वह वस्तु उतनी ही सुन्दर कही जाती है । इस प्रकार सुन्दरता का अर्थ आत्म  विस्मृति कराने की , अपने साथ तादात्य कराने की दृष्टा को तल्लीन कराने की विशेषता ठहरता है ।

सुन्दरता व्यक्ति सापेक्ष भी होती है तथा वस्तु सापेक्ष भी होती है । सौन्दर्य विषयीगत भी होता है और विषयगत भी । विषयगत सौन्दर्य में दृष्टि वस्तु के बाह्य पक्ष पर केन्द्रित रहती है , जबकि विषयीगतता में दृष्टि प्रधानता वस्तु के आभ्यन्तर पक्ष पर जाकर टिकती है । सौन्दर्यमयी दृष्टि प्रायः वस्तु के आभ्यन्तर पक्ष को देखती है , उसमें वासना की गन्ध नहीं रहती है जबकि विषयगत सौन्दर्य - वासना पक्ष तक सीमित रह जाता है । कवि बिहारी ने ठीक ही लिखा है कि

रूप रिझावनहार वे , ये नैना रिझवार ।

तल्लीनता की अवस्था द्वैत भाव का अतिक्रमण करने पर प्राप्त होती है ।

उपसंहार - डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में, ( विषयगत लक्षण ) "राष्ट्रीय अतीत तथा मध्य युग , से सम्बन्धित दृश्यों , घटनाओं एवं पात्रों का चित्रण , अमूर्त की अपेक्षा मूर्त की स्वीकृति , प्राकृतिक दृश्यावली तथा तज्जनित प्रबल रागात्मक , अद्भुत तथा विस्मयोत्पादक व्यापार , आत्मा और परमात्मा , स्वप्न तथा अवचेतन - ये सभी स्वच्छन्दतावादी साहित्यकार के प्रिय विषय रहे हैं । xxx ( शैलीगत लक्षण ) उत्प्रेरणा तथा कल्पना - शक्ति को काव्य का उत्स मानने वाले साहित्यकारों के लिये शिल्प के नियमों तथा रूढ़ि सम्मत आदेशों की अवहेलना करना स्वाभाविक है ।

अभिजात्यवाद और स्वच्छन्दतावाद का पारस्परिक सम्बन्ध स्पष्ट करते हुए एक विद्वान ने लिखा है कि स्वच्छन्दतावाद जहाँ पूर्ण सृजन  स्वच्छन्दता देता है , वहीं अभिजात्यवाद सृजन  स्वच्छन्दतावाद को अपने निश्चित एवं पूर्व परम्परित नियमों से रेखांकित करता है । अभिजात्यवादी साहित्यकार निजी व्यक्तित्त्व को बाधक मानता है और समाज  कल्याण को काव्य का सर्वोपरि प्रयोजन मानता है ; जबकि स्वच्छन्दतावादी साहित्यकार की दृष्टि में व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति का अत्यधिक महत्त्व है , उसके लिये आत्म - प्रकाशन ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । साहित्यकार सृजन के क्षणों में एक समाज को बराबर दृष्टिपथ में रखता है , जबकि दूसरा व्यक्ति पर दृष्टि केन्द्रित रखता है । स्वच्छन्दतावादी के लिये व्यक्तिगत मानदण्डों का बहुत महत्व होता है ।

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