Thursday, 27 May 2021

आधे-अधूरे:UGC/NET JRF/HINDI



आधे-अधूरे मोहन राकेश जी का तीसरा और सबसे अधिक चर्चित नाटक है । इस नाटक में उन्होंने अपने अन्य नाटकों की भाँति ऐतिहासिकता की जगह वर्तमानकालिक प्रासंगिकता को कथानक के रूप में लिया गया है । इसमें उन्होंने पति पत्नी के गृह कलह को आधार बनाकर लिखा गया है ।

आधे-अधूरे नाटक का प्रारंभ पुरूष एक महेन्द्रनाथ से होता है । वह अपने जीवन में ही उलझा हुआ है । महेन्द्रनाथ की पत्नी सावित्री है जो हर समय अपने पति को भलाबुरा कहती है । वह कहती है कि आज उनके बॉस सिंघानिया खाने पर आनेवाले हैं जो पुरूष एक को अच्छा नहीं लगता । उसकी राय में जुनेजा अच्छा आदमी है । पत्नी को लगता है कि ऐसे दोस्तों ने ही उसका घर बर्बाद किया है । वह अपने बड़े लड़के अशोक की नौकरी की बात सिंघानिया ( पुरूष दो ) से करना चाहती है । इसी समय पुरूष एक जगमोहन ( पुरूष तीन ) की भी बात करता है । बड़ी लड़की बिन्नी मनोज की 13 प्रेयसी है जो शादी के बाद भी खुश नहीं है । घर में छोटी लड़की किन्नी है जो सीधे मुँह कभी किसी से बात नहीं करती । छोटी लड़की और अशोक दोनों हमेशा लड़ते रहते हैं ।

पुरूष एक को लगता है कि घर के सभी लोग मेरे साथ दुर्व्यवहार करते हैं । बड़ा लड़का अशोक किन्नी को बुरी तरह इपटता है क्योंकि उसने किन्नी को पड़ोसी की लड़की सुरेखा के साथ कुछ अश्लील बातें करते हुए सुना था । अपना बचाव करती हुई छोटी लड़की भी लड़के की प्रेमलीला की ओर संकेत कर देती है । स्त्री बड़ी लड़की से कह देती है कि उसने अंतिम निर्णय कर लिया है । अब वह जगमोहन के साथ कहीं जा रही है । यहाँ तक एक प्रकार से नाटक का दूसरा अंक समाप्त होता है यहाँ हमें परिवार का पूरा जीवन पता चलता है । सब के सब प्रेमलीला में मस्त हैं । बड़ी लड़की मनोज के साथ भाग चुकी है , छोटी लड़की सुरेखा के साथ गंदी बातों में रस लेती है , लड़का अशोक उद्योग सेण्टरवाली किसी लड़की के पीछे दीवाना है और गृह - लक्ष्मी सावित्री जगमोहन के साथ नया ब्याह रचाने की तैयारी कर चुकी है । जुनेजा बड़ी लड़की बिन्नी को बताता है कि महेन्द्रनाथ सावित्री को बहुत प्यार करता है । सावित्री जब घर आती है तो जुनेजा से कहती है कि तुम्हारे जैसे दोस्तों ने ही महेन्द्रनाथ को बिगाड़ दिया है । जुनेजा सावित्री को बताता है कि वह सदैव कामपीड़ित एवं भोग की भूखी रही है । आगे वह यह भी कहता है कि मैं बता सकता हूँ कि तुम जगमोहन के पास ही गई थी । उसने तुम्हें स्वीकार नहीं किया होगा । इसी बीच महेन्द्रनाथ वापस आ जाता है और नाटक समाप्त होता है ।

मोहन राकेश के नाटक ' आधे अधूरे ' से संबंधित इस इकाई में आपने नाटक के विभिन्न पक्षों का विवेचन पदा है । इससे पूर्व की इकाई में आपने मोहन राकेश के नाटक संबंधी विचारों और उनके नाठा लेखन के बारे में अध्ययन किया था । इसका कथ्य कुछ खास हालात में कुछ खास लोगों की अजीबोगरीब सी जिंदगी से जुमा होने के बावजूद हमारे समकालीन समाज के एक बड़े वर्ग के आम लोगों की स्वाभाविक जिंदगी का प्रामाणिक दस्तावेज़ बन जाता है । राकेश की दृष्टि से देखने पर ऐसा प्रतीत हो सकता है कि किसी भी परिस्थिति में स्त्री - पुरुष संबंधों में कभी कोई सामंजस्य और स्थावी तालमेल हो ही नहीं सकता । इनके रिश्ते एक ऐसी अंतर्विरोधी स्थिति को पैदा करते है जिसमें न वह शांतिपूर्वक साथ रह सकते हैं और न ही अलग हो सकते हैं । वह इस नारकीय जीवन को जीने के लिए अभिशप्त है।

राकेश ने समाज के इन धुन लगे , पुटते , जूझते , टूटते , बिखरते चरित्रों का चित्रण इस खूबी से किया है कि ये वर्ग- पात्र होने के साथ-साथ अपनी व्यक्तिगत और निजी पहचान भी बनाए रखते हैं । चारों पुरुष पात्रों के अलग अलग चरित्र सरलीकृत और एकायागीगो प्रतीत होते हैं किंतु वे मिलकर जिस एक व्यक्ति का चरित्र प्रस्तुत करते हैं , वह अपने आप में काफी जटिल और बहुआयामी है । सावित्री के चरित्र में भी आज की पढ़ी लिखी , स्वतंत्र और आत्म- निर्भर स्त्री की कई रंगते मिलीजुली नज़र आती है । बिन्नी में घुटन , झुंझालाहट और असमंजरा है तो जिवी अशोक नई पीढ़ी के दिशाभ्रम , आक्रोश और अग्य विष को प्रस्तुत करता है । इसका परिवेश समकालीन शहरी मध्यवर्गीय जीवन के यथार्थ से जुड़ा है ।

अपने पूर्व नाटकों में वसंस्कृत की तस्याम शब्दावली वाली अलंकृत और साहित्यिक भाषा के प्रयोग को बाद राकेश ने 'आधे - अधूरे' में आज के मुहावरे और बोलचाल की भाषा को ' जीने की भाषा ' बनाकर ऐसे रचनात्मक , अंतरंग और स्वतःस्फूर्त रूप में प्रस्तुत किया है कि यह आधुनिक हिंदी नाटक की एक महत्वपूर्ण उपलभि ई है । शाब्दिक संवादों के अलावा राकेश ने मुखमुद्रा और रंग र्याओं को भी नाटकीय संवाद का स्तर प्रदान किया है । चरित्रों की आंतरिकता से जुड़े विशिष्ट लयपूर्ण संवाद राकेश के इस नाटक की अत्यंत उल्लेखनीय विशेषता है । कुल मिलाकर कथ्य, चरित्रांकन और भाषा संवाद इत्यादि की दृष्टि से 'आधे अधूरे' आधुनिक हिंदी और भारतीय रेगकर्म की एक अत्यंत महत्वपूर्ण नाट्य - रचना है ।

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