Tuesday, 18 May 2021

हिंदी आलोचना//स्वरूप और उद्देश्य// आलोचक के गुणःUGC/NET/JRF HINDI LITRATURE

 स्वरूप और उद्देश्यः

आलोचना को समालोचना भी कहते हैं। समालोचना शब्द दो शब्दों से बना है। सम + आलोचना समालोचना में सम का अर्थ है- सम्यक, संतुलित तथा सांगोपांग और आलोचना का अर्थ है देखना। अतः समालोचना का अर्थ हुआ सम्यक, संतुलित और सांगो पांग दृष्टि से साहित्यिक कृति के गुण दोषों को परखना। समालोचना के लिए अंग्रेजी भाषा में शब्द criticism प्रयुक्त होता है , उसका लगभग अर्थ यही है। अतः चाहे हम हिंदी में समालोचना को लें और चाहे अंग्रेजी में criticism लें, दोनों का अर्थ एक ही होता है साहित्यिक कृति के गुण दोषों का निर्णय कर के उसका मूल्यांकन करना।

'आलोचना' शब्द के कई परिभाषाएँ, विशेष रूप से अंग्रेजी में मिलती हैं । उनका अध्ययन करें तो यही बात सामने आती है कि आलोचना कैसी हो  ? अर्थात् आलोचना में विस्तार पूर्ण दृष्टि , संतुलित मस्तिष्क , मन का सूक्ष्म ज्ञान , सहानुभूति और जागरूक तटस्थता आवश्यक है ।

आलोचना कई कार्य करती हैं - यह कृति का भावन - मात्र करती है , कभी उसकी व्याख्या करती है , कभी कलाकार बन वह अपने या अपने वर्ग के संबंध में नई बातें बताती है कि समाज ने किस प्रकार काल को प्रभाषित किया और कलाओं ने - समान को किस प्रकार परिष्कृत या परिवर्तित किया है । वह समान में नई विचार धारा प्रवाहित करती है । वह हमेशा चिरंतन सत्य की प्रतिष्ठा में सहायक होती है । अनेकानेक परिभाषाओं के आधार पर आलोचना के निम्न लिखित कार्य माने जा सकते हैः-

1.      रचना का भावन और कृतिकार के उद्देश्य का उद्घाटन ।

2.      रचना के गुण दोषों का उद्घाटन। रचना में निहित सौंदर्य का उद्घाटन ।

3.      रचना के दोषों का उद्घाटन आवश्यक है , क्योंकि इससे विकृत साहित्य लेखन को प्रोत्साहन नहीं मिलता । विकृत साहित्य निर्मिति पर प्रतिबंध लगता है ।

4.      रचना के गुण - दोषों के आधार पर उसका मूल्यांकन करना ।

5.      रचना की व्याख्या करना और अपने मन के द्वारा ग्रहण की गई प्रतिक्रिया का अषण करना ।

6.      आलोचना पाठक की अंतर्दृष्टि का उन्मीलन करता है जिससे वह अपना पथ स्वयंखोज सके

7.      विवेक के आलोक में जो दिखाई दे , उसका उद्घाटन करना और सत्य के निर्देश में जो निर्णय हो , उसका आख्यान करना ।

8.      आलोचना करते समय एक को बड़ा और दूसरे को गोटया समझाना उचित नही है ।  साहित्य सृजन हृदय सापेक्ष माना जाता है ।

साहित्यकार और सहदय के बिना साहित्य - सजन क्रमशः असंभव एवं निरर्थक है । मात्र ने कहा है - 'कलाकृति का अस्तित हो तब है , जब कार्ड उस देखता है । " कलाकृति की ओर विभिन्न लोगों के देखने में शिक्षा , वय , मनोदशा आदि के अनुसार भेद हो सकता है । फिर भी कवि अपनी रचना की सार्थकता के लिए समान - धर्मा सहदय की खोज में व्याकुल हो उठता है । सहदय को पाकर ही रचना कृतकृत्य हो उठती है । भालांचक मचि की गानरांतति का ऐसा ही अधिकारी गोचता राहदरा है ।

आलोचक के गुणः

1.      आलोचक के लिए आवश्यक पहला गुण रसिकता या सहदयता है । सहदयता के कारण वह कवि की अनुभूति के रहस्य का दर्शन कर पाता है । रसिकता के अभाव में वह - वह दूसरे रसिक को बातें नहीं समझ सकता ।

2.      आलोचक के लिए दूसरा आवश्यक गुण विद्वत्ता है । जिस प्रकार कविता के लिए व्युत्पत्ति आवश्यक है , उसी प्रकार वह आलोचक के लिए आवश्यक है । व्युत्पन्न व्यक्ति ही दूसरे की रचना को समझ सकता है ।

3.      आलोचक के लिए तीसरा आवश्यक गुण है निष्पक्षता । आलोचक को पाठक वर्ग का निचि बनकर ,अपने पराए के भव मूलाकर निःपक्षता से किसी रचना की आलोचना करनी चाहिए ।

4.      आलोचक के लिए चौथा सहानुभूति शीलता का गुण है । यद्यपि रचना की निः पक्ष आलोचना करते समय रचनाकार की ओर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है , किंतु साहित्य क्षेत्र में पदार्पण करने वाले नवोदित साहित्य कारों के प्रति सहानुभूतिशील होकर उन्हें प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है । छिद्रान्प्रेषक प्रवृत्ति आलोधाक के लिए ठीक नहीं कही जा सकती । दोषों को दिखाते समय उसे संयत शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ।

5.      आलोचक लिए आवश्यक पाँचवा गुण अभिव्यक्ति | सामय है । जिस प्रकार कवि के लिए अभ्यास को आवश्यकता है , उसी प्रकार आलोचक के लिए भी अभ्यास आवश्यक है । अभ्यास से ही उसे अभिव्यक्ति कौशल प्राप्त होता है ।

आलोचना में भी साहित्य की तरह प्रेषणीयता का गुण आवश्यक है । अभिव्यक्ति सौंदर्य भी आलोचना के लिए जरूरी है । उपयुक्त गुणों पर ही आलोचना के क्षेत्र में आना चाहिए । आलोचना करते समय प्रथम रचना की व्याख्या अपेक्षित है । व्याख्या कर सकने की क्षमता के कारण वह कवि और पाठक के बीच दुभाषिए का मर्मतक पहुंचा दे । व्याख्या के बाद आलोचक का दूसरा कार्य है मूल्यांकन करना, इसलिए कि मूल्य दृष्टि ही जीवन को सार्थक एवं सुसंस्कृत बनाती है ।


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