डॉ० रामविलास शर्मा//मार्क्सवादी आलोचक//प्रगतिवाद हिंदी साहित्य//ugc//net//jrf//
डॉ ० रामविलास
शर्मा मार्क्सवादी आलोचक हैं । उनके सम्बन्ध में डॉ० बच्चन सिंह ने लिखा है कि
"मार्क्सवादी आलोचकों में रामविलास शर्मा की द ष्टि सबसे पैनी , स्वच्छ और
तलस्पी है । विचारों के स्तर पर वे कहीं भी समझातावादी नहीं होते । ये बहुत ही खरे
, दो टूक बात
कहनेवाले निर्मीक आलोचक है ।" मार्क्सवादी आलोचना का प्रादुर्भाव शर्मा जी से
पूर्व ही हो चुका था । 'हंस' के सम्पादन के
रूप में डा० शिवदान सिंह चौहान उसके सद्धान्तिक पक्ष पर बहुत कुछ लिख चुके थे ।
प्रकाशचन्द्र गुप्त ने भी इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किए थे ।
आरम्भ में
प्रगतिवाद साहित्य की व्यापक प्रगतिशील चेतना के उन्मेष को लेकर अवतीर्ण हुआ था , किन्तु बाद में
उसका आशय कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों का उद्घोषणा मात्र रह गया था । मार्क्सवादी
साहित्यकार केवल उस साहित्य को उत्तम मानते हैं जिससे सर्वहारा वर्ग के धर्म -
संघर्ष का चित्रण पार्टी की नीतियों के आधार पर जनता को सशस्त्र क्रान्ति की चेतना
प्रदान की गई हो । इस संकीर्णता की कटु आलोचना भी हुई । शनैः शनैः साहित्यकारों ने
इन संकीर्णताओं से मुक्त होने का प्रयास भी किया । जहाँ तक डॉ ० रामविलास शर्मा का
प्रश्न है ,
वे माक्र्सवादी आलोचक होने के कारण साहित्य में सर्वहारा
वर्ग के चित्रण पर बल देते हैं । ' साहित्य संदेश में प्रकाशित अपने एक लेख
में उन्होंने कहा है ,
" साहित्य लिखते समय साहित्यकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह
' सर्वहारा ' का सहयोगी
साहित्य निर्मित करे । " पर यह एक संकीर्ण मनोव ति है । समाज में केवल
सर्वहारा वर्ग की समस्याएँ नहीं हैं । वर्ग - वैमनस्य से पीड़ित जनता भी है । क्या
प्रगतिशील साहित्य को उनके विषय में नहीं सोचना चाहिए । केवल ' सर्वहारा वर्ग
की बात कहना साहित्य को संकीर्ण परिधि में आवद्ध कर देता है ।
रामविलास शर्मा
की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उन्होंने हर नये का समर्थन और हर प्राचीन का
विरोध नहीं किया । उन्होंने उन मार्क्सवादी आलोचकों पर आरोप लगाया , जिन्होंने
पंक्तियों खोज - खोजकर तुलसीदास को प्रतिक्रियावादी , ब्राह्मणवादी
आदि सब कुछ कहा है । उनका मत है " यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने साहित्य की
पुरानी परम्पराओं से परिचित हों । परिचित होने के साथ साथ हमें उनके श्रेष्ठ
तत्त्वों को भी ग्रहण करना चाहिए । " ( संस्कृति और साहित्य की भूमिका )
समीक्षा शैली रामविलास शर्मा की समीक्षा शैली की प्रमुख विशेषता है- व्यंग्य की
मार करना ।
डॉ ० नगेन्द्र
की ' विचार और
अनुभूति '
नामक पुस्तक पर चुटकी लेते हुए वे कहते है कि "
नगेन्द्र जी के विचार उन्हें एक कदम आगे ढकेलते हैं तो उनकी अनुभूति उन्हें चार
कदम पीछे घसीट ले जाती है । इस पुस्तक का नाम ' एक कदम आगे और
चार कदम पीछे '
भी हो सकता था । " शर्मा जी की समीक्षा शैली की एक
अन्य विशेषता यह है कि उसमें उदाहरण विद्यमान रहते हैं । इससे आलोचना में बल आ जाता
है । उन्होंने जब महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन की विचारधारा की आलोचना की थी तो
साहित्य में जैसे एक भूचाल आ गया था , किन्तु उन्होंने प्रमाण देकर अपनी बात
कही थी , इसलिए आनेवाले
तूफान से अप्रभावित रहे ।
सफल आलोचक-
शर्मा जी एक
सफल आलोचक हैं । उनके जिन गुणों ने उन्हें सफल आलोचक बनाया है , वे हैं-
विद्वता . भाषाधिकार ,
प्रामाणिक बात कहने की आदत , वैज्ञानिक द
ष्टि , निष्पक्षता ।
निष्पक्षता के गुण में जहाँ एक और उनसे किसी भी बेहिचक आलोचना कराई है , वहीं दूसरी ओर
छोटे - छोटे लेखकों को यथोचित सम्मान भी दिलवाया है । उनकी विशेषता है कि उनमें
अहंकार नाममात्र को भी नहीं है । प्रायः जाने माने विद्वान् नयोदित साहित्यकारों
की उपेक्षा करते हैं ,
किन्तु शर्मा जी किसी भी नये रचनाकार का उद्धरण बड़ी उदारता
से अपनी रचना में दे देते हैं । यह उनकी निष्पक्षता ही है जो वे एक ओर पन्त और
राहुल जैसे ख्यातिलब्ध साहित्यकारों को नहीं बख्शते और दूसरी ओर नये रचनाकारों की
वांछनीय सराहना करते हैं ।
रामविलास शर्मा
ने हिन्दी सन्त साहित्य ,
भारतेन्दु युग , छायावाद , प्रेमचन्द , निराला आदि पर
अत्यन्त सुलझे हुए विचार व्यक्त किए हैं । नवीनता का अभिनन्दन छायावादी काग्यधारा
का उन्होंने अमिनन्दन किया और नई रोमांटिक कविता की दाद देते हुए कहा " नई
रोमांटिक कविता में नायक - नायिकाओं की क्रीडा के स्थान पर व्यक्ति और उसके भावों
- विचारों को प्रतिष्ठापित किया । निष्प्राण प्रतीकों के बदले सजीव भायों के
द्वारा वे साहित्य को जीवन के निकट लाए । " निराला के वे प्रशंसक है ।
उन्होंने ईमानदारी के साथ स्वीकार किया- " बारह वर्ष तक इतने निकट - संपर्क
में रहने के कारण उन पर पूर्ण तटस्थता से लिखना मेरे लिए प्रायः असम्भव है । किन्तु
उन्होंने अपने प्रयास के विषय में घोषित किया है ।
डॉ० रामविलास
शर्मा आमतौर पर छन्दोबद्ध कविता के समर्थक हैं । फिर भी उन्होंने निराला के मुक्त
छंद की प्रशंसा की है । कारण यह है कि निराला के मुक्त छन्द में गेयता , ध्वनि , साम्य , सानुप्रासिकता , काय्य गुणों की
सत्ता आदि विशेषताएं रहती हैं । इसके विपरीत जिन कवियों के मुक्त छन्द कोरे गद्य
में बदल जाते हैं ,
उनकी उन्होंने कटु आलोचना की है ।
डॉ० रामविलास
शर्मा की विचारधारा में काव्यशास्त्र की परम्परागत मान्यताओं के लिए कोई स्थान
नहीं है । वे रस तथा अलंकारविषयक प्राचीन मान्यताओं के विरुद्ध है । निष्कर्ष रूप
में कहा जा सकता है कि डॉ० रामविलास शर्मा आधुनिक हिन्दी आलोचना में अग्रणीय है ।
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