Saturday, 22 May 2021

 डॉ० रामविलास शर्मा//मार्क्सवादी आलोचक//प्रगतिवाद हिंदी साहित्य//ugc//net//jrf//

 

डॉ ० रामविलास शर्मा मार्क्सवादी आलोचक हैं । उनके सम्बन्ध में डॉ० बच्चन सिंह ने लिखा है कि "मार्क्सवादी आलोचकों में रामविलास शर्मा की द ष्टि सबसे पैनी , स्वच्छ और तलस्पी है । विचारों के स्तर पर वे कहीं भी समझातावादी नहीं होते । ये बहुत ही खरे , दो टूक बात कहनेवाले निर्मीक आलोचक है ।" मार्क्सवादी आलोचना का प्रादुर्भाव शर्मा जी से पूर्व ही हो चुका था । 'हंस' के सम्पादन के रूप में डा० शिवदान सिंह चौहान उसके सद्धान्तिक पक्ष पर बहुत कुछ लिख चुके थे । प्रकाशचन्द्र गुप्त ने भी इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किए थे ।

आरम्भ में प्रगतिवाद साहित्य की व्यापक प्रगतिशील चेतना के उन्मेष को लेकर अवतीर्ण हुआ था , किन्तु बाद में उसका आशय कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों का उद्घोषणा मात्र रह गया था । मार्क्सवादी साहित्यकार केवल उस साहित्य को उत्तम मानते हैं जिससे सर्वहारा वर्ग के धर्म - संघर्ष का चित्रण पार्टी की नीतियों के आधार पर जनता को सशस्त्र क्रान्ति की चेतना प्रदान की गई हो । इस संकीर्णता की कटु आलोचना भी हुई । शनैः शनैः साहित्यकारों ने इन संकीर्णताओं से मुक्त होने का प्रयास भी किया । जहाँ तक डॉ ० रामविलास शर्मा का प्रश्न है , वे माक्र्सवादी आलोचक होने के कारण साहित्य में सर्वहारा वर्ग के चित्रण पर बल देते हैं । ' साहित्य संदेश में प्रकाशित अपने एक लेख में उन्होंने कहा है , " साहित्य लिखते समय साहित्यकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह ' सर्वहारा ' का सहयोगी साहित्य निर्मित करे । " पर यह एक संकीर्ण मनोव ति है । समाज में केवल सर्वहारा वर्ग की समस्याएँ नहीं हैं । वर्ग - वैमनस्य से पीड़ित जनता भी है । क्या प्रगतिशील साहित्य को उनके विषय में नहीं सोचना चाहिए । केवल ' सर्वहारा वर्ग की बात कहना साहित्य को संकीर्ण परिधि में आवद्ध कर देता है ।

रामविलास शर्मा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उन्होंने हर नये का समर्थन और हर प्राचीन का विरोध नहीं किया । उन्होंने उन मार्क्सवादी आलोचकों पर आरोप लगाया , जिन्होंने पंक्तियों खोज - खोजकर तुलसीदास को प्रतिक्रियावादी , ब्राह्मणवादी आदि सब कुछ कहा है । उनका मत है " यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने साहित्य की पुरानी परम्पराओं से परिचित हों । परिचित होने के साथ साथ हमें उनके श्रेष्ठ तत्त्वों को भी ग्रहण करना चाहिए । " ( संस्कृति और साहित्य की भूमिका ) समीक्षा शैली रामविलास शर्मा की समीक्षा शैली की प्रमुख विशेषता है- व्यंग्य की मार करना ।

डॉ ० नगेन्द्र की ' विचार और अनुभूति ' नामक पुस्तक पर चुटकी लेते हुए वे कहते है कि " नगेन्द्र जी के विचार उन्हें एक कदम आगे ढकेलते हैं तो उनकी अनुभूति उन्हें चार कदम पीछे घसीट ले जाती है । इस पुस्तक का नाम ' एक कदम आगे और चार कदम पीछे ' भी हो सकता था । " शर्मा जी की समीक्षा शैली की एक अन्य विशेषता यह है कि उसमें उदाहरण विद्यमान रहते हैं । इससे आलोचना में बल आ जाता है । उन्होंने जब महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन की विचारधारा की आलोचना की थी तो साहित्य में जैसे एक भूचाल आ गया था , किन्तु उन्होंने प्रमाण देकर अपनी बात कही थी , इसलिए आनेवाले तूफान से अप्रभावित रहे ।

सफल आलोचक-

शर्मा जी एक सफल आलोचक हैं । उनके जिन गुणों ने उन्हें सफल आलोचक बनाया है , वे हैं- विद्वता . भाषाधिकार , प्रामाणिक बात कहने की आदत , वैज्ञानिक द ष्टि , निष्पक्षता । निष्पक्षता के गुण में जहाँ एक और उनसे किसी भी बेहिचक आलोचना कराई है , वहीं दूसरी ओर छोटे - छोटे लेखकों को यथोचित सम्मान भी दिलवाया है । उनकी विशेषता है कि उनमें अहंकार नाममात्र को भी नहीं है । प्रायः जाने माने विद्वान् नयोदित साहित्यकारों की उपेक्षा करते हैं , किन्तु शर्मा जी किसी भी नये रचनाकार का उद्धरण बड़ी उदारता से अपनी रचना में दे देते हैं । यह उनकी निष्पक्षता ही है जो वे एक ओर पन्त और राहुल जैसे ख्यातिलब्ध साहित्यकारों को नहीं बख्शते और दूसरी ओर नये रचनाकारों की वांछनीय सराहना करते हैं ।

रामविलास शर्मा ने हिन्दी सन्त साहित्य , भारतेन्दु युग , छायावाद , प्रेमचन्द , निराला आदि पर अत्यन्त सुलझे हुए विचार व्यक्त किए हैं । नवीनता का अभिनन्दन छायावादी काग्यधारा का उन्होंने अमिनन्दन किया और नई रोमांटिक कविता की दाद देते हुए कहा " नई रोमांटिक कविता में नायक - नायिकाओं की क्रीडा के स्थान पर व्यक्ति और उसके भावों - विचारों को प्रतिष्ठापित किया । निष्प्राण प्रतीकों के बदले सजीव भायों के द्वारा वे साहित्य को जीवन के निकट लाए । " निराला के वे प्रशंसक है । उन्होंने ईमानदारी के साथ स्वीकार किया- " बारह वर्ष तक इतने निकट - संपर्क में रहने के कारण उन पर पूर्ण तटस्थता से लिखना मेरे लिए प्रायः असम्भव है । किन्तु उन्होंने अपने प्रयास के विषय में घोषित किया है ।

डॉ० रामविलास शर्मा आमतौर पर छन्दोबद्ध कविता के समर्थक हैं । फिर भी उन्होंने निराला के मुक्त छंद की प्रशंसा की है । कारण यह है कि निराला के मुक्त छन्द में गेयता , ध्वनि , साम्य , सानुप्रासिकता , काय्य गुणों की सत्ता आदि विशेषताएं रहती हैं । इसके विपरीत जिन कवियों के मुक्त छन्द कोरे गद्य में बदल जाते हैं , उनकी उन्होंने कटु आलोचना की है ।

डॉ० रामविलास शर्मा की विचारधारा में काव्यशास्त्र की परम्परागत मान्यताओं के लिए कोई स्थान नहीं है । वे रस तथा अलंकारविषयक प्राचीन मान्यताओं के विरुद्ध है । निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि डॉ० रामविलास शर्मा आधुनिक हिन्दी आलोचना में अग्रणीय है ।

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