आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने आदिकाल के अन्तर्गत नौ कवियों को शामिल किया।
हेमचन्द्र गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह और उनके
भतीजे कुमार पाल के राजदरबार में रहते थे।
आचार्य के व्याकरण का नाम '
सिद्ध हेमचन्द्र
शब्दानुशासन ' था ।
हेमचन्द्र का व्याकरण 'सिद्ध हेम' नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
'सिद्ध हेम' में संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों का समावेश किया गया है ।
हेमचन्द्र प्रसिद्ध जैन आचार्य थे और इनका जन्म 1088 ई ०
में हुआ ।
हेमचन्द्र के अन्य पुस्तकों का नाम निम्न है - '
कुमार पाल चरित्र '
, ' योगशास्त्र '
, ' प्राकृत व्याकरण '
, ' छन्दोनुशासन '
और '
देशी नाममाला कोष '
।
हेमचन्द्र को प्राकृत का पाणिनी माना जाता है । अपने
व्याकरण के उदाहरणों के लिए हेमचन्द्र ने भट्टी के समान एक '
द्वयाश्रय काव्य '
की भी रचना की है ।
सोमप्रभ सूरी गुजरात के एक प्रसिद्ध जैन साधु थे जिनका
आविर्भाव 1252 वि ० स ० में माना जाता है ।
सोमप्रभ सूरी ने ' कुमारपाल प्रतिबोध ' ( 1241 वि ० सं ० ) नाम एक गद्य - पद्य मय संस्कृत - प्राकृत
काव्य लिखा ।
जैनाचार्य मेरुतुंग ने संवत् 1361 में '
प्रबन्धचिन्तामणि '
नामक एक ग्रन्थ की
रचना संस्कृत भाषा में की ।
'प्रबन्ध चिन्तामणि ' में कुछ दोहे मालवा नरेश राजा भोज के चाचा मुंज के कहे हुए 'प्रबन्ध- चिन्तामणि' में 'दूहा विद्या' में विवाद करने वाले दो चारणों की कथा आई है इसीलिए अपभ्रंश
काव्य को 'दूहा विद्या' भी कहा जाने लगा ।
अपभ्रंश से पूर्व दोहा का प्रयोग नहीं होता था ।
लक्ष्मीधर ने 14 वीं शताब्दी के अन्त में 'प्राकृत पैंगलम' नामक एक ग्रन्थ का संग्रह किया ।
'प्राकृत पैंगलम्' में विद्याधर, शार्डगधर, जज्जल, बब्बर आदि कवियों की रचनाओं को संकलित किया गया है ।'
प्राकृत पैंगलम ' में प्राकृत और अपभ्रंश छन्दों की विवेचना की गई है ।
'बज्जिय घोर निसान रान चौहान चहाँ दिस । " - पृथ्वीराज रासो से
"उट्टि राज प्रिथिराज बाग मनो लग वीर नट"
-पृथ्वीराज रासो से ।
'बारह बरिस लै कूकर जीऐं औ तेरह लौ जिऐं सियार ।
बरिस अठारह छत्री जीऐं , आगे जीवन को धिक्कार ॥ " -जगनिक
"एक थाल मोती से भरा " -अमीर खुसरो "
एक नार ने अचरज किया " -अमीर खुसरो "
गोरी सोवै सेज पर , मुख पर डारै केस " -अमीर खुसरो
'मेरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल " -अमीर खुसरो
"जे हाल मिसकी मकुन तगाफुल दुराय नैना, बनाय बतियाँ " -अमीर खुसरो.
“सरस वसंत समय भल पावलि" -विद्यापति ( पदावली से )
" कालि कहल पिय साँझहिरे , जाइब मइ मारू देस " -विद्यापति (
पदावली से )।
No comments:
Post a Comment