Tuesday, 11 May 2021

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हिंदी साहित्य के इतिहास दर्शन और पद्धतियां

हिंदी इतिहास लेखन के प्रति भारतीय दृष्टिकोण आदर्शमूलक एवं अध्यात्मवादी रहा है वहीं दूसरी ओर पाश्चात्य इतिहास दर्शन विकास वादी दृष्टिकोण कोमान्यता देता है।

पाश्चात्य समीक्षक कलिंगवुड के अनुसार--

 इतिहास का सम्बन्धन केवल अतीत से होता है , वर्तमान से। इतिहास का निर्माता स्वयं मनुष्य है चाहे जिस युग का हो उस की मूलभूत प्रवृतिया एक सी रहती है।

पाश्चात्य समीक्षक हीगल के अनुसार -

इतिहास केवल घटनाओ का अन्वेषण एवं संकलन मात्र नहीं है, अपितु उस के भीतर कार्य-कारण शृंखला विद्यमान है।

पाश्चात्य समीक्षक तेन के अनुसार- साहित्य के लिए तीन तत्व प्रमुख है -जाति,वातावरण और क्षण विशेष।

अंततःहिंदी साहित्य के इतिहास दर्शन के अंतर्गत निम्न तथ्यों का समावेश किया जा सकता है -

युगीन साहित्यकारों की प्रतिभा और व्यक्तित्व का अध्ययन

युगीन प्रवृत्ति व चेतना का अध्ययन

युगीन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं का अध्ययन

युगीन साहित्यकार की नैसर्गिक प्रतिभा एवं परम्परा का द्वन्द एवं उसके स्त्रोत का अध्ययन

युगीन साहित्यकार द्वारा अभीष्ट की प्राप्ति

 

 

 

00 साहित्य इतिहास लेखन की परम्परा

वर्णानुक्रम पद्धति

कालानुक्रमी पद्धति

वैज्ञानिक पद्धति

विधेयवादी पद्धति

 

वर्णानुक्रम पद्धति

इस पद्धति में कवियों लेखको का परिचय उनके नाम के वर्णानुक्रमानुसार किया जाता है | जैसे क,ख,ग। यह सर्वाधिक दोषपूर्ण प्राचीन पद्धति है

गार्सा तासी शिवसिंह सेंगर ने अपने ग्रंथो में इसी पद्धति का प्रयोग किया है |

यह साहित्य इतिहास लेखन की सर्वाधिक दोषपूर्ण पद्धति हैइस प्रणाली पर आधारित ग्रंथो को साहित्येतिहास की अपेक्षा साहित्यकार कोश कहना उपर्युक्त है

कोश ग्रंथो के लिए यह प्रणाली उपर्युक्त है |

 

कालानुक्रमी पद्धति

जॉर्ज ग्रियर्सन ने “द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान” इतिहास ग्रंथ इसी पद्धति को आधार बनाकर लिखा है।

मिश्रबंधुओ ने इसी पद्धति का अनुसरण अपने इतिहास ग्रंथो के लिए किया।

इस पद्धति पर या इसके आधार पर लिखे गये ग्रंथो को साहित्येतिहास कहने की अपेक्षा कवि वृत्त संग्रह कहना उपर्युक्त होगा |

 

वैज्ञानिकपद्धति

डॉ गणपति चंद्र गुप्त ने हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास इसी पद्धति को आधार बनाकर लिखा है।

इस पद्धति में तथ्यों का संग्रहण कर विश्लेषण किया जाता है निष्कर्ष प्रस्तुत किये जाते है

इसमें इतिहास लेखक पूर्णतः निरपेक्ष एवं तटस्थ रहकर तथ्य संकलनकरता है और उन्हें क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत कर देता है।

साहित्येतिहास लेखन की अपेक्षा कोड लेखन के लिए उपर्युक्त |

 

विधेयवादी पद्धति

साहित्य इतिहास लेखन की सर्वाधिक उपर्युक्तविधि |

इस विधि के जन्मदाता तेन  मानेजातेहै |

इस पद्धति में साहित्येतिहास प्रवृतियों का अध्ययन युगीन परिस्थितियों के संदर्भ में किया जाता है |

आचार्य शुक्ल ने अपने साहित्येतिहास लेखन में इसी पद्धति का उपयोग किया है

इसी कारण उनके इतिहास ग्रन्थ को सच्चे अर्थो में हिदी साहित्य का प्रथम इतिहास ग्रन्थ कहा जाता है |

रामचंद्रशुक्लकेअनुसार -

साहित्य के इतिहास को जनता की चित्तवृत्ति का इतिहास मानते है जनता की चितवृति तत्कालीन परिस्थितियों से परिवर्तित होती है अतःसाहित्यकास्वरूप भी इन परिस्थितियों के अनुरूप बदलता है।

शुक्ल की यह भी धारणा है कि साहित्यक वि योंका वृत्तसंग्रहन होकर साहित्य की प्रवृति का इतिहास होता है

 

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